अब भी अधूरी है शहीद बिरसा मुंडा का सपना


9 जून, शहादत दिवस पर विशेष
अंग्रेजों की शोषण नीति और असह्म परतंत्रता से भारत वर्ष को मुक्त कराने में अनेक महपुरूषों ने अपनी शक्ति और सामथ्र्य के अनुसार योगदान दिया. इन्हीं महापुरूषों की कड़ी का नाम है - 'भगवान बिरसा मुंडा'. 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' अर्थात हमारे देश में हमारा शासन का नारा देकर भारत वर्ष के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की हुकुमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके, सर नहीं झुकाया बल्कि जल, जंगल और जमीन के हक के लिए अंग्रेजी के खिलाफ 'उलगुलान' अर्थात क्रांति का आह्वान किया. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को चालकद ग्राम में हुआ. बिरसा मुंडा का पैतृक गांव उलिहातु था. इनके जन्म स्थान को लेकर यद्यपि इतिहासकारों में मतभेद है कि उनका जन्म स्थान चालकद है या उलिहातु. बिरसा का बचपन अपने दादा के गांव चालकद में ही बीता. सन 1886 ई0 से जर्मन ईसाई मिशन द्वारा संचालित चाईबासा के एक उच्च विद्यालय में बिरसा दाउद के नाम से दाखिल कराये गए क्योंकि इनके माता-पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था. बिरसा मुंडा को अपने भूमि, संस्कृति पर गहरा लगाव था. उन दिनों मुण्डाओं/मुंडा सरदारों के छिनी गई भूमि पर उन्हें दु:ख था या कह सकते हैं कि बिरसा मुण्डा आदिवासियों के भूमि आंदोलन के समर्थक थे तथा वे वाद-विवाद में हमेशा प्रखरता के साथ आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर हक की वकालत करते थे. पादरी डॉ0 नोट्रेट ने स्वर्ण का राज्य का हवाला देते हुए कहा कि यदि वे लोग ईसाई बने रहे तो और उनका अनुदेशों का पालन करते रहे तो मुंडा सरदारों की छिनी हुई भूमि को वापस करा देंगे. लेकिन 1886-87 में मुंडा सरदारों ने जब भूमि वापसी का आंदोलन किया तो इस आंदोलन को न केवल दबा दिया गया बलिक ईसाई मिशनरियों द्वारा इसकी भत्र्सना की गई जिससे बिरसा मुंडा को गहरा आघात लगा. उनकी बगावत को देखते हुए उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया. फलत: 1890 में बिरसा तथा उसके पिता चाईबासा से वापस आ गए.
1886 से 1890 तक बिरसा का चाईबासा मिशन के साथ रहना उनके व्यक्तितत्व का निर्माण काल था. 1890 में चाईबासा छोडऩे के बाद बिरसा और उसके परिवार ने जर्मन ईसाई मिशन की सदस्यता छोड़ दी क्योंकि मुंडाओं/सरदारों का आंदोलन मिशन के विरूद्ध था और लूथरन चर्च तथा कैथालिक मिशन ने आंदोलन का विरोध किया था. मुंडाओं ने ईसाई धर्म इसलिए अपनाया कि ईसाईयों ने यह भरोसा दिलाया था कि यदि वे ईसाई धर्म अपना लेंगे तो उनकी छिनी गई भूमि व विरासत उन्हें वापस दिला दी जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बिरसा मुंडा का संथाल विद्रोह, चुआर आंदोलन, कोल विद्रोह का भी व्यापक प्रभाव पड़ा. अपने जाति की दुर्दशा, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अस्मिता को खतरे में देख उनके मन में क्रांति की भावना जाग उठी. उन्होंने मन ही मन यह संकल्प लिया कि मुंडाओं का शासनव वे लायेंगे तथा अपने लोगों में जागृति पैदा करेंगे.
बिरसा मुंडा न केवल राजनीतिक जागृति के बारे में संकल्प लिया बल्कि अपने लोगों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागृति पैदा करने का भी संकल्प लिया. बिरसा ने गांव-गांव घुमकर लोगों को अपना संकल्प बताया. उन्होंने 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राजÓ (हमारे देश में हमार शासन) का बिगुल फूंका.
बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ उलगुलान का आह्वान किया. वे उग्र हो गये. शोषकों, ठेकेदारों और अंग्रेजी चाटुकारों को मार भगाने का आह्वान किया. पुलिस को भगाने की इस घटना से आदिवासियों का विश्वास बिरसा मुंडा पर होने लगा. विद्रोह की आग धीरे-धीरे पूरे छोटानागपुर में फैलने लगी. कोल लोग भी विद्रोह में शामिल हुए. लोगों को विश्वास होने लगा कि बिरसा मुंडा भगवान के दूत के रूप में शोषकों से मुक्ति के लिए स्वर्ग से यहां पहुंचे हैं. अब दिकुओं का राज समाप्त हो जाएगा एवं 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' कायम होगा. आदिवासी को यह पूर्ण रूप से विश्वास हो गया कि यदि वे सरकार के खिलाफ खड़े होंगे, सरकार का विद्रोह करेंगे तो उनका खोया हुआ राज भी वापस मिलेगा.
इस विद्रोह ने अंग्रेजी हुकूमत को झकझोर दिया. 22 अगस्त 1895 अंग्रेजी हुकूमत ने बिरसा मुंडा को किसी भी तरह गिरफ्तार करने का निर्णय लिया. जिला अधिकारियों ने बिरसा के गिरफ्तारी के संबंध में विचार-विमर्श किया. जिला पुलिस अधीक्षक, जीआरके मेयर्स को दंड प्रक्रिया संहिता 353 और 505 के तहत बिरसा मुंडा का गिरफ्तारी वारंट का तामिला करने का आदेश दिया गया. दूसरे दिन सुबह मेयर्स, बाबु जगमोहन सिंह तथा बीस सशस्त्र पुलिस बल के साथ बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करने चल पड़े. पुलिस पार्टी 8.30 बजे सुबह बंदगांव से निकली एवं 3 बजे शाम को चालकद पहुंची. बिरसा के घर को उन्होंने चुपके से घेर लिया. एक कमरे में बिरसा मुंडा आराम से सो रहे थे. काफी मशक्कत के बाद बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया. उन्हें संध्या 4 बजे रांची में डिप्टी कलक्टर के सामने पेश किया गया. रास्ते में उनके पीछे भीड़ का सैलाब थी. भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी. ब्रिटिश अधिकारी को आशंका थी उग्र भीड़ कोई उपद्रव न कर बैठे. लेकिन बिरसा मुंडा ने भीड़ को समझाया. बिरसा मुंडा के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. मुकदमा चलाने का स्थान रांची से बदलकर खूंटी कर दिया गया. बिरसा को राजद्रोह के लिए लोगों को उकसाने के आरोप में 50/- रुपये का जुर्माना तथा दो वर्ष सश्रम कारावास की सजा दी गई. उलगुलान की आग जरूर दब गई लेकिन यह चिंगारी बनकर रह गई जो आगे चलकर विस्फोटक रूप धारण किया. 30 नवम्बर 1897 के दिन बिरसा को रांची जले से छोड़ दिया गया.सारांश यहाँ
24 दिसम्बर 1899 को 'उलगुलान' पुन: प्रारंभ कर दिया गया. सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर थाने और रांची जिले के खूंटी, करी, तोरपा, तमाड़ और बसिया थाना क्षेत्रों में उलगुलान की आग दहक उठी. क्रांतिकारियों ने ईसाईयों की भीड़ और गिरजा घरों में तीन चलाये. बसिया में ईसाई मिशन पर तीरों की बौछार की गई. इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र बिंदू खूंटी थाना क्षेत्र था. 07 जनवरी 1900 की बैठक के बाद विद्रोही करीब दस बजे दिन में खूंटी के लिए रवाना हो गये. विद्रोहियों ने खूंटी थाना में हमला कर दिया. थाने में घिरे कांस्टेबलों ने आगे बढ़ते भीड़ पर दो राउंड गोली चलाई पर गोली किसी को नहीं लगी. इससे बिरसा के अनुयायियों को यह विश्वास हो गया कि बिरसा की वाणी सत्य है. गोली नाकामयाब हो जाएगी. इससे विद्रोहियों की हिम्मत बढ़ी और उन्होंने पुलिस पर सिपाही की हत्या भीड़ ने कर दी. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को अंदर से झकझोर दिया. 9 जनवरी 1900 को डोम्बारी से कुछ दूर सैंको से करीब तीन मील उत्तर में सईल रैकब पहाड़ी पर विद्रोहियों की सभा हो रही थी. सभा में तीन, धनुष, भाला, टांगी, गुलेलों से लैस बिरसा के अनुयायियों एवं विद्रोहियों के अंदर अंग्रेजों एवं शोषकों के खिलाफ लड़ाई लडऩे का जज्बा अंतिम चरण में था. तभी पुलिस पार्टी ने उस सभा के सामने आकर विद्राहियों को आत्म समर्पण एवं हथियार डालने को कहा. इतने में ही बिरसा मुंडा का दूसरे सबसे बड़े भक्त नरसिंह मुंडा सामने आकर ललकारते हुए कहा कि 'हमलोगों का राज है, अंग्रेजों का नहींÓ 'अगर हथियार रख देने का सवाल है तो मुण्डाओं को नहीं, अंग्रेजों को हथियार रख देना चाहिए. और अगर लडऩे की बात है तो वे खून के आखिरी बूंद तक लडऩे को तैयार है.Ó तब अंग्रेजी सेना ने भीड़ पर आक्रमण किया और विद्रोहियों को अंग्रेजों ने क्रुरता के साथ दमन किया. लेकिन विद्रोहियों ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये. सईल रकब रकब पहाड़ी पर इस आक्रमण में 40 से लेकर 400 की संख्या में मुंडा लोग लड़ाई में मारे गये. विद्रोहियों पर इस घटना के बाद दमन और तेज हो गया. विद्रोहियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. 03 फरवरी 1900 ई को 500/- रुपये के सरकारी ईनाम के लालच में जीराकेल गांवों के सात व्यक्तियों ने बिरसा मुंडा के गुप्त स्थान के बारे में अंग्रेजों को बताकर धोखे से पकड़ लिया गया. बिरसा को पैदल ही खूंटी के रास्ते रांची पहुंचा दिया गया. हजारों की भीड़ ने तथा बिरसा के अनुयायियों ने बिरसा जिस रास्ते से ले जाया गया उनका अभिवादन किया. 1 जून 1900 को डिप्टी कमिश्नर ने ऐलान किया कि बिरसा मुंडा को हैजास हो गया तथा उनके जीवित रहने की कोई संभावना नहीं है. अंतत: 9 जून 1900 को बिरसा ने जेल में अंतिम सांस ली. बिरसा मुंडा के सपनों की भूमि पर आज विस्थापन का दंश लोग झेल रहे हैं. विकास के नाम पर औद्योगिकीकरण का रास्ता खुल रहा है लेकिन जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए कोई नीति या मसौदा तैयार नहीं है. सामाजिक परम्पराएं, सांस्कृतिक धरोहर बिखने लगी है. समाजवादी ढांचे का आदिवासी समाज पूंजीवादी ताकतों का दंश झेलने पर विवश है. क्या यहां आत्ममंथन करना जरूरी नहीं कि वर्तमान झारखण्ड की स्थिति और बिरसा मुंडा के सपना 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राजÓ कितना प्रासांगिक है? आगे पढ़ें के आगे यहाँ
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बच्ची से बलात्कार के आरोप में इटली में एक और भारतीय पादरी धराया…

स्वामी नित्यानन्द भी इसे पढ़कर शर्मा जायेंगे, क्योंकि वे तो बालिग और सोच-समझ रखने वाली लड़कियों से उनकी मर्जी से सम्बन्ध बनाते थे, जबकि पूरे यूरोप में चर्च के पादरी एक के बाद छोटे-छोटे बच्चों (खासकर लड़कों) के साथ यौन शोषण में लिप्त हैं… उन सभी के पापा यानी “पोप” खुद इन मामलों को दबाने-छिपाने के दोषी पाए गये हैं… और फ़िर भी इधर भारत में सेकुलर गधे, हिन्दुओं को ही नैतिकता का पाठ पढ़ाये जा रहे हैं… पूरी खबर यहाँ पढ़िये…

http://timesofindia.indiatimes.com/india/Indian-priest-accused-of-paedophilia-under-house-arrest-in-Italy-/articleshow/5820083.cms
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सेवा भावना नही सेक्स भावना से काम करता हैं चर्च

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च की दया, शाति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गई। जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च का क्रूर-अनैतिक चेहरा सामने आया, तब 'विशेषाधिकार' का कवच उठाया गया।


कैथोलिक चर्च ने नई परिभाषा गढ़ दी कि उनके धर्मगुरु पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर न तो मुकदमा चल सकता है और न ही उनकी गिरफ्तारी संभव हो सकती है। इसलिए कि पोप बेनेडिक्ट न केवल ईसाइयों के धर्मगुरु हैं, बल्कि वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। एक राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी हो ही नहीं सकती है। जबकि अमेरिका और यूरोप में कैथलिक चर्च और पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी को लेकर जोरदार मुहिम चल रही है। न्यायालयों में दर्जनों मुकदमें दर्ज करा दिए गए हैं और न्यायालयों में उपस्थित होकर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें को आरोपों का जवाब देने के लिए कहा जा रहा है।


यह सही है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के पास वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष का कवच है। इसलिए वे न्यायालयों में उपस्थित होने या फिर पापों के परिणाम भुगतने से बच जाएंगे, लेकिन कैथोलिक चर्च और पोप की छवि तो धूल में मिली ही है। इसके अलावा चर्च में दया, शाति और कल्याण की भावना जागृत करने की जगह दुष्कर्मो की पाठशाला कायम हुई है, इसकी भी पोल खुल चुकी है।

चर्च पादरियों द्वारा यौन शोषण के शिकार बच्चों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया गया और न ही यौन शोषण के आरोपी पादरियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है। इस पूरे घटनाक्रम को अमेरिका-यूरोप की मीडिया ने 'वैटिकन सेक्स स्कैंडल' का नाम दिया हैं।

कुछ दिन पूर्व ही पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड में चर्च पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामले प्रकाश में आने पर इस कुकृत्य के लिए माफी मागी थी।


पोप पर आरोप

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर कोई सतही नहीं, बल्कि गंभीर और प्रमाणित आरोप हैं, जो उनकी एक धर्माचार्य और राष्ट्राध्यक्ष की छवि को तार-तार करते हैं।


अब सवाल यह है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर आरोप हैं क्या? पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर दुष्कर्मी पादरियों को संरक्षण देने और उन्हें कानूनी प्रक्रिया से छुटकारा दिलाने के आरोप हैं। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने कई पादरियों को यौन शोषण के अपराधों से बचाने जैसे कुकृत्य किए हैं, लेकिन सर्वाधिक अमानवीय, लोमहर्षक व चर्चित पादरी लारेंस मर्फी का प्रकरण है। लारेंस मर्फी 1990 के दशक में अमेरिका के एक कैथोलिक चर्च में पादरी थे। उस कैथलिक चर्च में अनाथ, विकलाग और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए एक आश्रम भी था।


पादरी लारेंस मर्फी पर 230 से अधिक बच्चों का यौन शोषण का आरोप है। सभी 230 बच्चे अपाहिज और मानसिक रूप से विकलाग थे। इनमें से अधिकतर बच्चे बहरे भी थे। मानिसक रूप से बीमार और अपाहिज बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की धटना सामने आने पर अमेरिका में तहलका मच गया था। कैथोलिक चर्च की छवि के साथ ही साख पर संकट खड़ा हो गया था। कैथोलिक चर्च में विश्वास करने वाली आबादी इस घिनौने कृत्य से न केवल आक्रोशित थी, बल्कि कैथोलिक चर्च से उनका विश्वास भी डोल रहा था।


कैथोलिक चर्च को बच्चों के यौन उत्पीड़न पर संज्ञान लेना चाहिए था और सच्चाई उजागर कर आरोपित पादरी पर अपराधिक दंड संहिता चलाने में मदद करनी चाहिए थी, लेकिन कैथोलिक चर्च ने ऐसा किया नहीं। कैथोलिक चर्च को इसमें अमेरिकी सत्ता की सहायता मिली। विवाद के पाव लंबे होने से कैथलिक चर्च की नींद उड़ी और उसने आरोपित पादरी लारेंस मर्फी पर कार्रवाई के लिए वेटिकन सिटी और पोप को अग्रसारित किया था।


पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उस समय नाम कार्डिनल जोसेफ था और वैटिकन सिटी के उस विभाग के अध्यक्ष थे, जिनके पास पादरियों द्वारा बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न किए जाने की जाच का जिम्मा था। पोप बेनेडिक्ट ने पादरी लारेंस मर्फी को सजा दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। बात इतनी भर थी नहीं। बात इससे आगे की थी। मामले को रफा-दफा करने की पूरी कोशिश हुई। लारेंस मर्फी को अमेरिकी काूननों के तहत गिरफ्तारी और दंड की सजा में रुकावटें डाली गई।


वेटिकन सिटी का कहना था कि पादरी लारेंस मर्फी भले आदमी हैं और उन पर दुर्भावनावश यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं। इसमें कैथोलिक चर्च विरोधी लोगों का हाथ है, जबकि मर्फी पर लगे आरोपों की जाच कैथोलिक चर्च के दो वरिष्ठ आर्चविशपों ने की थी। सिर्फ अमेरिका तक ही कैथोलिक चर्च में यौन शोषण का मामला चर्चा में नहीं है, बल्कि वैटिकन सिटी में भी यौन शोषण के कई किस्से चर्चे में रहे हैं।

पुरुष वेश्यावृति के मामले में भी वेटिकन सिटी घिरी हुई है। वैटिकन सिटी में पादरियों द्वारा पुरुष वैश्यावृति के राज पुलिस ने खोले थे। वेटिकन धार्मिक संगीत मंडली के मुख्य गायक टामस हीमेह और पोप बेनेडिक्ट के निजी सहायक एंजलो बालडोची पर पुरुष वैश्या के साथ संबंध बनाने के आरोप लगे थे।


दुष्कर्मी पादरी भारत में भी!

यौन शोषण के आरोपित पादरियों के नाम बदले गए। उन्हें अमेरिका-यूरोप से बाहर भेजकर छिपाया गया, तकि वे आपराधिक कानूनों के जद में आने से बच सकें। खासकर अफ्रीका और एशिया में ऐसे दर्जनों पादरियों को अमेरिका-यूरोप से निकालकर भेजा गया, जिन पर बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप थे। एक ऐसा ही पादरी भारत में कई सालों से रह रहा है। रेवरेंड जोसेफ फ्लानिवेल जयपाल नामक पादरी भारत में कार्यरत है। जयपाल पर एक चौदह वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म करने सहित ऐसे दो अन्य आरोप हैं। अमेरिका के एक चर्च में जयपाल ने वर्ष 2004 में एक अन्य ग्रामीण युवती के साथ बलात्कार किया था। वेटिकन और पोप की कृपा से जयपाल भाग कर भारत आ गया। इसलिए कि बलात्कार की सजा से छुटकारा पाया जा सके। अमेरिकी प्रशासन को जयपाल का अता-पता खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। अमेरिकी प्रशासन के दबाव में वेटिकन ने जयपाल का पता जाहिर किया। वेटिकन ने मामला आगे बढ़ता देख जयपाल को कैथोलिक चर्च से बाहर निकालने की सिफारिश की थी, लेकिन भारत स्थित आर्चविशप परिषद ने जयपाल की बर्खास्ती रोक दी। अमेरिकी प्रशासन जयपाल के प्रत्यर्पण की कोशिश कर रहा है, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन पर मानवाधिकारवादियों का भारी दबाव है, लेकिन जयपाल ने अमेरिका जाकर यौन अपराधों का सामना करने से इनकार कर दिया है।


कैथलिक चर्च के भारतीय आर्चविशपों द्वारा बलात्कारी पादरी जयपाल का संरक्षण देना क्या उचित ठहराया जा सकता है? क्या इसमें भारतीय आर्चविशपों की सरंक्षणवादी नीति की आलोचना नहीं होनी चाहिए। कथित तौर पर कुकुरमुत्ते की तरह फैले मानवाधिकार संगठनों के लिए भी जयपाल कोई मुद्दा क्यों नहीं बना?


रंग लाएगी जनता की मुहिम

अमेरिका-यूरोप में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे की माग जोर से उठ रही है। जगह-जगह प्रदर्शन भी हुए हैं। इंग्लैंड सहित अन्य यूरोपीय देशों में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की यात्राओं में भारी विरोध हुआ है। अनैतिक कृत्य को संरक्षण देने के लिए पोप से इस्तीफा देकर पश्चाताप करने का जनमत तेजी से बन रहा है। पोप के खिलाफ जनमत की इच्छा शायद ही कामयाब होगी। पोप के इस्तीफे का कोई निश्चित संविधान नहीं है। पर इस्तीफे जुड़े कुछ तथ्य हैं, लेकिन ये स्पष्ट नहीं हैं। वर्ष 1943 में पोप पायस बारहवें ने एक लिखित संविधान बनाया था, जिसका मसौदा था कि अगर पोप का अपहरण नाजियों ने कर लिया तो माना जाना चाहिए कि पोप ने त्यागपत्र दे दिया है और नए पोप के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। अब तक न तो नाजियों और न ही किसी अन्य ने किसी पोप का अपहरण किया है। इसलिए पोप पायस बारहवें के सिद्धात को अमल में नहीं लाया जा सका है।


पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर यह निर्भर करता है कि वे त्यागपत्र देंगे या नहीं, पर वेटिकन सिटी की विभिन्न इकाइयों और विभिन्न देशों के कैथोलिक चर्च इकाइयों में अंदर ही अंदर आग धधक रही है। कैथोलिक चर्च की छवि बचाने के लिए कुर्बानी देने के सिद्धात पर जोर दिया जा रहा है। जर्मन रोमन चर्च ने भी पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।


जर्मन रोमन चर्च का कहना है कि वेटिकन सिटी और पोप बेनेडिक्ट ने यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और उनके परिजनो के लिए कुछ नहीं किया है। वेटिकन सिटी में भी यौन शोषण के शिकार बच्चों के परिजनों ने प्रदर्शन और प्रेसवार्ता कर पोप बेनेडिक्ट के आचरणों की निंदा करने के साथ ही साथ न्याय का सामना करने के लिए ललकारा है।


दलदल में कैथोलिक चर्च

आरएल फ्रांसिस। आजकल कैथोलिक धर्मासन पर विराजमान लोग गहन चिंतन में पड़े हुए हैं। उनकी चिंता का मुख्य कारण है वर्तमान चर्च के 'पुरोहितों में व्याप्त यौनाचार'। पुरोहितों में यौन कुंठाओं के पनपते रहने से वे मानसिक रूप से चर्च की अनिवार्य सेवाओं से मुंह मोड़ने लगे हैं। इसका असर कैथोलिक विश्वासियों में बढ़ते आक्रोश के रूप में देखा जा सकता है। विश्वासियों द्वारा चर्च की मर्यादाओं को बरकरार रखने की माग बढ़ती जा रही है और इस आदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप हासिल कर लिया है। इस आदोलन में कैथोलिक युवा वर्ग अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

अमेरिका के रोमन कैथोलिक चर्च के छह करोड़ 30 लाख अनुयायी हैं यानी अमेरिका की कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग कैथोलिक अनुयायियों का है। साथ ही यहा के बिशपों एवं कार्डीनलों का वेटिकन [पोप] पर सबसे अधिक प्रभाव है। जब कभी नए पोप का चुनाव होता है तो यहा के कार्डीनलों के प्रभाव को साफ देखा जा सकता है। यहा के कैथोलिक विश्वासी चर्च अधिकारियों की कारगुजारियों के प्रति अधिक सचेत रहते हैं। वर्तमान समय में विश्वभर के कैथोलिक धर्माधिकारियों, पुरोहितों में तीन 'डब्ल्यू' यानी वैल्थ, वाइन एंड वूमेन का बोलबाला है। इस प्रकार का अनाचार कैथोलिक चर्च के अंदर लगातार घर कर रहा है।


चारों और से सेक्स स्कैंडलों में घिरते वेटिकन ने अपने बचाव के लिए अमेरिका की यहूदी लाबी और इस्लामिक संगठनों को अपने निशाने पर ले लिया है। अब यह प्रश्न भी उठने लगा है कि वेटिकन एक राज्य है या केवल उपासना पंथ का एक मुख्यालय? क्यों पोप को एक धार्मिक नेता के साथ-साथ राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा दिया जाता है? क्यों वेटिकन संयुक्त राष्ट्र संघ में पर्यवेक्षक है? क्यों वेटिकन को दूसरे देशों में अपने राजदूत नियुक्त करने का अधिकार मिला है? क्यों वेटिकन किसी भी देश के कानून से ऊपर है?


अब समय आ गया है कि वेटिकन को अपने साम्राज्यवाद को रोककर आत्मशुद्धि की तरफ बढ़ना चाहिए। आतीत में की गई अपनी गलतियों को मानते हुए भविष्य में उसे न दोहराने का कार्य करना चाहिए। अपने को राष्ट्र की बजाय धार्मिक मामलों तक सीमित रखना चाहिए।

सभार दैनिक जागरण

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इलेक्ट्रोनिक मीडिया का काम समझ में नहीं आता

आजकल एक चैनल दिनभर ब्रकिंग न्यूज ही दिखाता रहता है. समझ में तो ये नहीं आता कि ये न्यूज चैनल 'समाचार किसे कहते हैं. समय समय पर मीडिया के रोल पर सवाल भी उठते रहते हैं. सवाल उठना भी वाजिब है. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि मैं प्रिंट मीडिया की नहीं मैं तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात कर रहा हूं. भारत में प्रिंट मीडिया का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी शैशवकाल में हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया हमारे समाज के आइने के समान है. लेकिन पिछले 8 सालों में जितने भी इलेक्ट्रोनिक मीडिया खुले है. उससे तो एक बात साफ है कुछ को छाड़ दे तो सभी का काम पैसा कमाना ही है. आज मीडिया का काम पैसा कमाना ही है.
आज मीडिया अपना असल काम ही भूल गई है. सानिया और शोएब की शादी ने जितने न्यूज बटोरे है और इस कंट्रोवर्सी को सभी न्यूज चैनल ने 24 घंटे दिखाया. लेकिन इस बीच दंतेवाड़ा में 80 से ज्यादा जवान शहीद हो गये तो किसी भी न्यूज चैनल ने ऐसी रिपोर्टिंग नहीं कि जैसी की जानी थी. आप ही बोलिए जितने समय में आपने सानिया-शोएब का ड्रामा देखा, जितने उनके बारे में जाना क्या आप दंतेवाड़ा में मारे गए शहीदों के बारे में जान पाए हैं? नहीं ना. मैं स्पष्ट भी कर सकता हूं आप किसी एक शहीद का नाम बताइये आप नहीं बता पायेंगे.
आप न्यूज चैनल किसे कहेंगे. उस चैनल को जो भूतों पर भी एक घंटे का स्पेशल एपीसोड चलाते हैं. हद तो तब लगती है जब एक न्यूज चैनल ने अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा की स्वास्थ्य यानी सेहत का राज वाला एक अफ्रिकी सेब खोज निकाला फिर क्या दिन भर में 20 बार हमने वो समाचार देखें. हाल ही में अखण्ड भारत का सबसे बड़ा महाकुंभ का समापन हुआ करोड़ों लोग इसमें शामिल हुए. फिर भी इसे सारे मीडिया ने नजर अंदाज किया. थोड़े-थोड़े समाचार और विशेष बुलेटिन को छोड़कर किसी ने इसकी गहराई से आम जनता तक लाने की कोशिश भी नहीं की खैर आम जनता तो जानती है फिर भी दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से कई गुणा बड़ा यह कुंभ था बगैर किसी सुख सुविधा के यह कुंभ संपन्न हो गया ओर सफल भी रहा. खबरो का चुनाव कैसे करना है या खबर कौन सी लेनी है यह मीडया अच्छी तरह जानती है. लेकिन शायद विज्ञापन और टीआरपी के पीछे मीडिया भाग रही है. खबर का असर किस पर होता है उसका आप पर या सरकार पर. मीडिया का काम सच उजागर करना है और वो कहां तक सफल हुए है आप ही जानते हैं. लेकिन भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी सफल नहीं हुई है शहर से गांवों तक मीडिया को जाना होगा. टोना टोटका, जादू, भूत और साधु महात्मा वाले प्रोग्राम को बंद कर असल बिंदू पर आना होगा.
-चंदन कुमार साहू
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जमशेदपुर में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् का अपमान

जमशेदपुर। 'वंदे मातरम्', एक ऐसा शब्द जिसके ओजपूर्ण स्वर से ही रग-रग में देशभक्ति का जोश पैदा हो जाता है। इस गीत का गान करते हुए हजारों देशभक्त देश पर कुर्बान हो गए लेकिन विग इंग्लिश स्कूल, छोटा गोविंदपुर में बच्चों को जो डायरी दी गई है, उसमें बंकिमचंद्र चटर्जी की कालजयी रचना 'वंदे मातरम्' की पंक्तियों के साथ ऐसा मजाक किया गया है कि बंकिमचंद्र की आत्मा भी कराह उठे। जब यह मामला प्रकाश में आया तो स्कूल प्रबंधन अब मुंह छिपाए घूम रहा है। उधर, राज्य के शिक्षा मंत्री हेमलाल मुर्मू को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने कहा कि मामले को गंभीरता से लिया जाएगा। यह भारतीयों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। अगर जांच में स्कूल प्रबंधन दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इधर, पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त रबीन्द्र कुमार अग्रवाल ने कहा कि अभी उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। संज्ञान में आते ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
विग इंग्लिश स्कूल के प्राचार्य जेके बनर्जी ने माना कि गंभीर चूक है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि छापने वाला गलत छाप दिया तो मैं क्या करूं। यह जानते हुए कि राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' गलत छपा है, स्कूल प्रबंधन ने छात्रों के बीच डायरी वितरित कर दी। दो महीने बीत जाने के बावजूद स्कूल प्रबंधन को यह पता भी नहीं है कि डायरी में जो राष्ट्रगीत छपा है, वह गलत है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कोल्हान विभाग प्रमुख अमिताभ सेनापति ने कहा कि राष्ट्रगीत का अपमान देशद्रोह के समान है। उन्होंने विद्यालय प्रबंधन को चेताते हुए कहा कि अगर जल्द सुधार नहीं किया गया तो एबीवीपी उग्र आंदोलन करेगा।
डायरी में छपे राष्ट्रगीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं ---
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजभीतलां
भास्यभयामलां मांतरम्
भाुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्-
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल भाोभिनीम्
सुखदां वरदां मातरम्

साभार-दैनिक जागरण
चंदन कुमार
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पाक में हिंदू लड़की को जबरन इस्लाम कुबूल कराए जाने का दावा

इस्लामाबाद ।। पाकिस्तान के प्रमुख वाधिकार कार्यकर्ता अंसामानर बर्नी ने मुल्क के पंजाब प्रान्त में एक हिन्दू लड़की को अगवा करके उससे जबरन इस्लाम कुबूल करवाए जाने का शुक्रवार को दावा किया ।
बर्नी का कहना है कि उनके संगठन अंसार बर्नी ट्रस्ट इंटरनैशनल को रहीम यार खां जिले के लियाकतपुर स्थित काची मंडी में मेंघा राम की 15 साल की बेटी गजरी को 21 दिसम्बर 2009 को उसके मुस्लिम पड़ोसी द्वारा अगवा किए जाने का पता लगा है।
बर्नी ने कहा कि तलाश करने पर गजरी के माता-पिता को मालूम हुआ कि उनकी बेटी की शादी करवाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाया गया है और इस वक्त वह दक्षिणी पंजाब स्थित एक मदरसे में दुश्वारियों भरी जिंदगी जी रही है। उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन लड़की के अपहरण के मामले पर टिप्पणी से इनकार कर रहा है।
देश के मानवाधिकार मंत्री रह चुके बर्नी ने एक गैर मुस्लिम लड़की को जबरन इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करने की घटना की निंदा करते हुए उसे फौरन मुक्त करने की मांग की है
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चूंकि आंध्रप्रदेश में गिराया गया मन्दिर, बाबरी ढाँचा नहीं है, इसलिये सेकुलर रुदालियाँ रोने वाली नहीं है…

विगत 17 मार्च को ईसाईयों के एक समूह ने सेमुअल राजशेखर रेड्डी के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में एक कदम और उठाया। आंध्रप्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के मंगलागुण्टा में एक 100 साल पुराना मन्दिर कुछ ईसाई युवकों द्वारा ढहा दिया गया (यह राम मन्दिर है और दलितों की बस्ती में स्थित है)। स्थानीय लोगों का आरोप है कि तहसीलदार की भी इसमें मिलीभगत है। शुरुआत में तो पुलिस ने भी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी की, फ़िर भी बाकायदा नामजद FIR दर्ज की गई है जिसमें मन्दिर गिराने वाले ईसाई युवकों के नाम दिये गये हैं…। पहले भी मन्दिर गिराने की ऐसी कोशिशों का प्रतिरोध किया गया था, लेकिन इस वर्ष रामनवमी उत्सव (24 मार्च) की तैयारियों के बीच एक हमले में 16 मार्च को यह मन्दिर गिरा दिया गया। ईसाईयों ने न सिर्फ़ मन्दिर गिराया बल्कि राम की मूर्ति भी तोड़ दी। इसके बाद हरिजन रामालय सुरक्षा समिति के सदस्यों पर प्राणघातक हमला भी किया गया।

तेलुगु अखबार की कटिंग



दर्ज की गई FIR की प्रति, जिसमें ईसाई युवकों के नाम दिये गये हैं…





अब दिक्कत यह है कि इस मामले पर रोनाधोना मचाने वाली सेकुलर और वामपंथी रुदालियाँ इसलिये चुप हैं क्योंकि यह बाबरी ढाँचा नहीं है… सिर्फ़ एक मन्दिर है और विधर्मियों द्वारा मन्दिरों के तोड़े जाने पर हल्ला मचाने की परम्परा हमारे यहाँ नहीं है…

खबर यहाँ देखें…
http://www.crusadewatch.org/index.php?option=com_content&task=view&id=1066&Itemid=90
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चर्च लगा है हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने में और मिडीया का है मौन सर्मथन

जिस तरह से कुछ दिन से सिर्फ हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने का काम किया जा रहा है उसका पर्दाफाश मैंगलोर पुलिस ने किया है इस सिलसिले में पुलिस नें तीन आदमी को हिरासत में लिया और उसके चौकस पर डंडा मारने पर उसने जो बातें बताई वह चौकाने बाला था।

पुलिस के द्वारा पकराये गये तीनों आरोपियों ने बताया कि वह किस तरह से चर्च के इशारा पर हिन्दु साधु-सन्यासियों को डुप्लिकेट का सेक्स विडीयों बना कर उन्हें बदनाम करने का कोशिश करता है इस काम के लिये चर्च से उसे पैसा मिलता हैं।

इस सभी घटना कर्म में सबसे चौकाने बाली बात यह है कि जो मिडीया हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने बाला विडीयों दिन भर दिखाता था वही मिडीया इस खबर में चुप्पी साधे बैठा है। मिडीया के इस चुप्पी को चर्च का मैन समर्थन माना जाना चाहिये।

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धर्मनिरपेक्षतावादी बयानों का विरोधाभास देखिये::कांग्रेस पार्टी का असली चेहरा

1.हजारों सिखों का कत्लेआम – एक गलती और कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार – एक राजनैतिक समस्या
2. गुजरात में कुछ हजार लोगों द्वारा मुसलमानों की हत्या – एक विध्वंस और बंगाल में गरीब प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी – गलतफ़हमी
3. गुजरात में “परजानिया” पर प्रतिबन्ध – साम्प्रदायिक, और “दा विंची कोड” और “जो बोले सो निहाल” पर प्रतिबन्ध – धर्मनिरपेक्षता
4. कारगिल हमला – भाजपा सरकार की भूल और चीन का 1962 का हमला – नेहरू को एक धोखा
5. जातिगत आधार पर स्कूल-कालेजों में आरक्षण – सेक्यूलर और अल्पसंख्यक संस्थाओं में भी आरक्षण की भाजपा की मांग – साम्प्रदायिक
6. सोहराबुद्दीन की फ़र्जी मुठभेड़ – भाजपा का सांप्रदायिक चेहरा ओर ख्वाजा यूनुस का महाराष्ट्र में फ़र्जी मुठभेड़ – पुलिसिया अत्याचार
7. गोधरा के बाद के गुजरात दंगे - मोदी का शर्मनाक कांड और मेरठ, मलियाना, मुम्बई, मालेगांव आदि-आदि-आदि दंगे - एक प्रशासनिक विफ़लता
8. हिन्दुओं और हिन्दुत्व के बारे बातें करना – सांप्रदायिक ओर इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बातें करना – सेक्यूलर
9. संसद पर हमला – भाजपा सरकार की कमजोरी और अफ़जल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद फ़ांसी न देना – मानवीयता
10. भाजपा के इस्लाम के बारे में सवाल – सांप्रदायिकता ओर कांग्रेस के “राम” के बारे में सवाल – नौकरशाही की गलती
11. यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीती – सोनिया को जनता ने स्वीकारा ओर मोदी गुजरात में चुनाव जीते – फ़ासिस्टों की जीत
12. सोनिया मोदी को कहती हैं “मौत का सौदागर” – सेक्यूलरिज्म को बढ़ावा ओर जब मोदी अफ़जल गुरु के बारे में बोले – मुस्लिम विरोधी
क्या इससे बड़ी दोमुंही, शर्मनाक, घटिया और जनविरोधी पार्टी कोई और हो सकती है?
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केरल के इदुक्की जिले में दंगा – किसी सेकुलर न्यूज़ चैनल पर कोई खबर नहीं…

केरल के इदुक्की जिले का व्यापारिक मुख्यालय थोडुपुज़ा में गत शुक्रवार को उग्र मुस्लिमों की भीड़ ने जमकर दंगा मचाया, कई दुकानों में आग लगाई और लूटपाट की। जुमे की नमाज़ के बाद मस्जिदों से बाहर निकले सैकड़ों मुसलमान इस बात पर आरोप लगा रहे थे कि स्थानीय न्यूमैन कॉलेज बी कॉम के एक प्रश्नपत्र में पैगम्बर मोहम्मद और अल्लाह के बारे में अपमानजनक प्रश्न पूछा गया है, लेकिन जैसा कि हमेशा होता है मुसलमानों का किसी लोकतान्त्रिक पद्धति पर विश्वास तो है नहीं, न कोई पुलिस रिपोर्ट, न कॉलेज प्रशासन से कोई शिकायत की, बस पागल की तरह उठे और जुमे की नमाज़ के बाद दंगा मचाना शुरु कर दिया।

इस दंगे में कई पुलिसवाले और मासूम राहगीर जख्मी हुए, तथा दंगाईयों ने थोडुपुझा के श्रीकृष्ण स्वामी मन्दिर के मुख्य द्वार को भी तोड़ दिया (यानी शिकायत कॉलेज प्रशासन से, लेकिन निशाना हिन्दुओं पर… इस प्रकार के ठस लोग हैं ये)। सड़क चलती महिलाओं और 12वीं की परीक्षा देने जा रहे विद्यार्थियों को भी नहीं छोड़ा गया और जमकर पीटा गया।


केरल की “कमीनिस्ट” सरकार के पुलिस अधिकारियों ने प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ पर केस दर्ज किया है, जबकि कॉलेज के अन्य प्रोफ़ेसरों का कहना है कि अकेले जोसेफ़ को दोषी ठहराना ठीक नहीं, क्योंकि प्रश्नपत्र तैयार करने वाली एक कमेटी होती है।

इस मामले में पेंच यह है कि न्यूमैन कॉलेज की स्थापना डायोसीज़ ऑफ़ कोठामंगलम द्वारा कार्डिनल न्यूमैन की याद में की गई थी। आशंका व्यक्त की जा रही है कि ईसाईयों के एक ग्रुप ने जानबूझकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच दंगा फ़ैलाने के लिये यह चाल खेली है। दीपिका.कॉम नामक मलयाली वेबसाईट ने चतुराईपूर्ण तरीके से जोसफ़ को सीपीएम का सदस्य बताकर इस मामले से “चर्च” की भूमिका को गायब कर दिया। इस प्रकार की “हरकत” और शरारत लगातार जारी रहेगी… अमूमन अनपढ़ मुस्लिमों में दिमाग तो घुटने से भी नीचे ही होता है, किसी मुल्ला ने शुक्रवार को कुछ बका और ये निकल पड़े हथियार लेकर बिना कुछ सोचे-समझे।

इस मामले में ईसाई बेहद चालाक हैं, पहले मुस्लिम और ईसाई अलग-अलग होकर हिन्दुओं को मारेंगे, फ़िर बाद में आपस में लड़ेंगे…। वैसे तो पूरी दुनिया में ईसाईयों ने मुस्लिमों के पिछवाड़े में डण्डा कर रखा है, लेकिन फ़िलहाल भारत में इन्हें ये हिन्दुओं से लड़वायेंगे… क्योंकि जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है इनमें दिमाग नाम की कोई चीज़ तो होती नहीं… बस “इस्लाम खतरे में है…” सुनाई दे जाये, तो ये निकल पड़ेंगे…।

रही राष्ट्रीय मीडिया की बात, तो पुण्य प्रसून वाजपेयी को अमिताभ-सीलिंक मामले, रवीश कुमार को गुजरात मामले और रजत शर्मा को मूर्खतापूर्ण जादू-टोने वाली खबरों से फ़ुरसत मिले तब ये दिखायें, और उनके “असली मालिक” बरेली के दंगों की तरह, ऐसे किसी भी दंगे को ब्लैक आउट करने को कहते रहें… तो वह भी क्या करें…
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मंदिरों और मुर्तियों को तोड़ना धार्मिक काम मानतें हैं मुस्लमान

मजहब नही सिखाता आपस में बैर करना जिस किसी ने कहा है वह सरासर झूठ कहा हैं अगर इस्लाम कि शिक्षा को देखों तो हमें पता चलता है कि किस तरह से मजहब हमें सिखाता है आपस में बैर करना। विस्तार से जानने के लिये निचे का खबर पढे़।


हिन्दवी से लिया गया
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तुम्हारी बहन बहन दुसरों की बहन माल

सोच सकते हैं कितना घटिया मानसिकता है यैसे लोगों का कितने गिरे लोग हैं ये जो यैसा सोचते हैं कि सिर्फ उनके ही बहू-बेटीयों का इज्जत होता है दुसरों का नही कल मेंरे पास किसी मित्र का एक ई-मेल जिसमें एम.एफ.हूसैन को उसी के अन्दाज में तमाचा मारा गया था देख कर थोडा़ आच्छा लगा खुशी भी हुई अगर हूसैन का ई-मेल आईडी रहता तो उसको भी भेज देता।

आज मेरे एक मित्र ने मुझे एक ब्लाग लिंक भेजा जिसमें हूसैन माँ, बहन और बीबी का नंगा चित्र लगा हुआ था लेकिन ब्लाग ने लेख के द्वारा तर्क या कहिये कुतर्क के द्वारा सभी को यह मनवाने का कोशीश कर रहा था कि जिस किसीने यह चित्र बनाया वह मानसिक दिवालिया या पागल किस्म का आदमी है। मैने उसके पुरे ब्लाग को छान मारा कि शायद यह लेखक हिन्दुओं के भावना को आहत करने वाले हूसैन के चित्र के लिये भी कभी हूसैन को गरियाया होगा लेकिन मुझे सफलता नही मिला उसके द्वारा लिखे गये कई दुसरे लेख को पढा़ तब समझ में आया कि यह लेखक शायद कोई हूसैन कि तरह मानसिक विकृति बाला है जिसे हिन्दूओं के भावना को आहत करने में मान्सिक शुख मिलता है।







आखिर कौन हैं ये लोग जो हूसैन जैसे मानिसक दिवालिया जिहादी मानसिकता वालों के अवाज में अवाज मिला कर उसके साथ खरा नजर आता है इसके लिये हमें थोडा़ फ्लैश बैक में जाना होगा जब इस देश में अंग्रेजो का शासन था।

जब इस देश में अँग्रेज का शासन था उस समय इस देश में दो तरह के लोग थे एक जो अंग्रेज से लडा़ करते थे और दुसरा जो अंग्रेस के साथ खडा़ रहता था और इस देश के जनता को प्रडतारित करने में उसका मदद किया करता था यैसे आदमी को अंग्रेजो के द्वारा फेके गये टुकरे पर पला करते थे और अंग्रेजों को खुश करने के लिये किसी भी हद तक गिर जाया करते थे यहाँ तक अपनी बहन-बेटियों को भी तशतरी में परोस कर अंग्रेजो के सामने भोग लगाने के लिये रख दिया करते थे। उसके बदले में अंग्रेजों के फेके गये रोटी पर अपना पेट पालते थे।

इनका दुर्भाग्य अंग्रेज को इस देश से जाना पारा। यह देश आजाद आजादी के मतबालों ने जम कर खूशी मनाया लेकिन देश के दलालों के शरीर में बहने बाला दलाली का खुन ये नही बदल पायें। दलाली करने कि इनकी आदत जैसी कि तैसी बनी रही जिसका नतिजा यह हूआ कि समय समय पर यह अपने अवैध बाप को खोजने के लिये कभी चीन तो कभी पाकिस्तान कि ओर मूँह उठा कर देखने लगे कि कही से इनके अवैध बाप आयें और हम देशभक्त हिन्दुस्तानियों पर कहर बरपायें जिससे इन्हें मानसिक शुख मिले। ये यैसे दलाल हैं जिन्हें माँ भारता का नंगा चित्र बनाने बाला हूसैन को ये अपने पिता तुल्य मानतें हैं लेकिन माँ भारत के सच्चे सपूत इन्हें नाग कि तरह डसते हैं।

अन्त में

आरती भारत माता की जिसको नहीं सुहाती है
भारत भू की गौरव गाथा जीभ नहीं गा पाती है
हो सकता है बहुत बड़ा हो, पर भारत का भक्त नहीं
आदमी उसको कहने में शर्म बहुत ही आती है
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हमें मजबुर मत करो इस्लाम का बुराई करने के लिये

इधर कई दिनों से कुछ मुस्लिम ब्लागर जो हिन्दु धर्म के बारे में ज्यादा जानते नही हैं अपने अधकचरे जानकारी के द्वारा हिन्दु धर्म को कोसते नजर आते हैं जिनका सिर्फ एक ही काम है हिन्दु धर्म को निचा दिखाना वे अपने अधकचरा जानकारी के द्वारा महान हिन्दु के अच्छाई को भी बुराई बना कर दिखाने का कोशीश कर रहें हैं वैसे ब्लागर को चेतावनी देना चाहता हू हमें मजबुर मत करो इस्लाम का बुराई करने का नही तो यैसे कई ब्लागर हैं जो इस्लाम के कमी को अच्छी तरह जानते है लेकिन अपने अच्छे संस्कार के चलते अपने धर्म के साथ इस्लाम का भी इज्जत करते हैं कही यैसा ना हो कि यैसे हिन्दु ब्लागर भी वही काम करने लगे जो इस्लामिक ब्लागर कर रहें हैं। इसे इस्लामिक ब्लागर चेतावनी के रुप में लें अन्यथा .................................।
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बरेली के दंगे - साँपों को दूध, गिद्ध भोजन और सेकुलर मीडिया

बरेली में मौलाना तौकीर रज़ा खान को माया सरकार ने रिहा कर दिया है और फ़िर से दंगे शुरु हो गये हैं…
बरेली के दंगों को "हरामखोर सेकुलर मीडिया" ने पूरी तरह से ब्लैक आऊट कर दिया है… मूर्ख हिन्दू हमेशा की तरह शान्ति का राग अलाप रहे हैं, भाजपा महिला बिल पास करवाने के लिये कांग्रेस का साथ दे रही है और उत्तरप्रदेश में हिन्दुओं की परवाह करने वाला कोई नहीं है…

http://news.rediff.com/report/2010/mar/12/clashes-in-bareilly-after-accused-cleric-freed.htm

पिछली कुछ खबरों का संकलन इधर पढ़िये…

गिरफ्तार धर्मगुरू के समर्थन में उतरी उलेमा काउंसिल

दो मार्च को जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था

बरेली में बीते सप्ताह हुई सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में गिरफ्तार मुस्लिम धर्मगुरू एवं इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष तौकीर रजा खान को तुरंत रिहा किए जाने की मांग करते हुए उलेमा काउंसिल ने सड़कों पर उतरकर विरोध की धमकी दी है।

काउंसिल के राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद ताहिर मदनी ने बुधवार को आजमगढ़ में संवाददाताओं से कहा कि अगर अगले दो दिनों में बरेली पुलिस ने धर्मगुरू तौकीर रजा को रिहा नहीं किया तो हजारों की संख्या में उनके समर्थक राज्य भर में सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने राज्य सरकार को मुस्लिम विरोधी करार दिया।

मदनी ने कहा कि धर्मगुरू को सलाखों के पीछे डालने से उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस का अल्पसंख्यक विरोधी चेहरा सामने आ गया है। धर्मगुरू पर लगाए गए धार्मिक उन्माद फैलाने जैसे सारे आरोप बेबुनियाद हैं।

उन्होंने कहा कि बरेली शहर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के असली गुनहगारों को पकड़ने के बजाए सरकार और पुलिस अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बना रही है। पुलिस असली गुनहगारों को बचा रही है। उल्लेखनीय है कि बरेली पुलिस ने सोमवार को धर्मगुरू तौकीर रजा खान को गत 2 मार्च को एक धार्मिक जुलूस के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

http://www.youtube.com/watch?v=Jo5u_Wej-PY

http://www.youtube.com/watch?v=9sIafXVSwmc


बरेली: कर्फ्यू हटा फिर भी है तनाव

बरेली. उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दंगा भड़काने के आरोप में इत्तेजाद मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां की गिरफ्तारी के विरोध में दरगाह ए आला हजरत के सज्जादानशी सुब्हानी मियां के नेतृत्व में शुरु किया गया अनिश्चितकालीन धरना आज भी जारी है।


शहर में व्याप्त तनाव के मद्देनजर चारों हिंसाग्रस्त क्षेत्नों में आज कफ्यरू में शाम चार बजे से छह बजे तक केवल दो घंटे की ही ढील दी गई है। एहतियातन शहर के सभी स्कूल कालेज आज भी बंद कर दिए गए हैं और आज सिर्फ बोर्ड परीक्षाएं ही होंगी।


दूसरी ओर स्थिति का जायजा लेने के लिए प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कर्मवीर सिंह और गृह विभाग के प्रमुख सचिव फतेहबहादुर सिंह के दौरे के बाद कल देर रात सरकार ने बरेली के जिलाधिकारी आशीष कुमार गोयल और पुलिस उपमहानिरीक्षक एम.के. बशाल का तबादला कर दिया।


पीलीभीत के जिलाधिकारी अनिल गर्ग ने बरेली के जिलाधिकारी का अतिरिक्त प्रभार और श्री बशाल के स्थान पर ए. टी. एस. इलाहाबाद जोन श्री राजीव सब्बरवाल ने आज बरेली के पुलिस उप महानिरीक्षक का कामकाज संभाल लिया।


गौरतलब है कि बरेली के प्रेमनगर क्षेत्र के भीड़-भाड़ वाले कोहाडापीर इलाके से एक धार्मिक जुलूस निकाले जाने से पहले शहर के संजयनगर, कोहाडापीर, सराय चहाबाई, शाहदाना, कुतुबखाना, किला और बानखना समेत कई स्थानों पर दो संप्रदायों के बीच हिंसक झड़प हुई थी।

बरेली जाते समय रीता बहुगुणा जोशी गिरफ्तार (गिद्धों के दौरे शुरु)

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कर्फ्यूग्रस्त शहर बरेली जाते समय कांग्रेस की राज्य इकाई की अध्यक्ष डा. रीता बहुगुणा जोशी को शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस के अनुसार जोशी बरेली जाना चाहती थीं लेकिन सुरक्षा कारणों के मद्देनजर उन्हें इटौंजा में ही गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ देर बाद पुलिस ने डा. जोशी और अन्य कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया।

इस बीच डा. जोशी ने कहा कि वह घटनास्थल का दौरा करने और शहर में स्थिति का जायजा लेने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बरेली जा रही थीं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी पर रोष व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें बरेली नहीं जाने देना उनके लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात है।

उन्होंने इस घटना की जांच के लिए बरेली के सांसद प्रवीन सिंह ऎरन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच दल का गठन किया है। जांच दल के सदस्य के रूप में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनिल शास्त्री और पूर्व सांसद बेगम नूरबानो शामिल हैं। जांच दल बरेली पहुंचकर अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को देगा।

नहीं पहुंच सके शिवपाल, अहमद हसन (कुछ और गिद्ध आये)

हिंसाग्रस्त इलाकों में दौरा करने आ रहे नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव और नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद अहमद हसन को शहर पहुंचने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया। सैफई से चले शिवपाल सिंह यादव व उनके साथ आ रहे एमएलसी राकेश राना को फतेहगढ़ में गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं लखनऊ से चले अहमद हसन को मलिहाबाद में गिरफ्तार किया गया।



बरेली में फ्लैगमार्च के साथ क‌र्फ्यू में ढील

बरेली। जुलूस-ए-मुहम्मदी के मार्ग विवाद को लेकर भड़की हिंसा पर काबू के साथ अब शहर बरेली में जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। गुरुवार को प्रशासन ने नरमी तो बरती लेकिन, फ्लैगमार्च की चौकसी में ही क‌र्फ्यू में चार घंटे ढील दी गई। इस दौरान लोग खरीददारी के लिए बाजार में उमड़ पड़े। गनीमत रही कि ढील के दौरान कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं है।

गौरतलब है कि जुलूस-ए-मुहम्मदी के बाद हुए उपद्रव में शहर का बड़ा हिस्सा जल उठा था। दर्जनों घर और दुकानें फूंक दी गई। महिलाओं और बच्चों तक को भी उपद्रवियों ने नहीं बख्शा। पुलिस के जवानों समेत तमाम लोग घायल भी हुए। पुलिस को सैकड़ों राउंड फायरिंग करनी पड़ी थी। करीब चार घंटे तक तांडव चलता रहा, जिसके बाद प्रशासन को बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर और किला में क‌र्फ्यू लगा दिया। बुधवार को शहर के मुअज्जिज लोगों के साथ मीटिंग के बाद प्रशासन ने गुरुवार को प्रभावित क्षेत्र में चार और अन्य इलाकों में शाम पांच बजे तक क‌र्फ्यू में ढील का ऐलान कर दिया।

गुरुवार छह बजे जैसे ही क‌र्फ्यू हटा तो 36 घंटों से घरों में कैद लोग सड़कों पर निकल आए। जरूरत की चीजें खरीदने के लिए दुकानों पर कतारें लग गईं।

उपद्रव में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए इलाकों चाहबाई, गुद्दड़बाग, कोहाड़ापीर, बानखाना में हालात सामान्य रहे। काफी तादाद में लोग घरों से निकले। कोहाड़ापीर और कुतुबखाना पर चंद घंटों में ही रोज की तरह ही जाम की स्थिति बन गई। मेयर सुप्रिय ऐरन, राज्यसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव, पूर्व सासंद संतोष गंगवार, विधायक अता उर रहमान, तमाम व्यापारी नेता और समाजसेवी भी पहुंचे।



तौकीर रजा की रिहाई फिर टली

बरेली। आईएमसी के प्रमुख तौकीर रजा खां की जमानत अर्जी पर फैसला फिर से गुरुवार पर टल गया है। बुधवार को एडीजे प्रथम अश्रि्वनी कुमार की अदालत में मौलाना की जमानत अर्जी पर सुनवाई शुरू हुई तो दंगा पीड़ित पक्षकारों की ओर से 17 अधिवक्ताओं ने अर्जी दी कि फैसला देने से पहले उनका पक्ष भी सुन लिया जाए। यह भी कहा गया कि इसके लिए पीड़ित पक्ष को दो दिन की मोहलत चाहिए। इस पर अदालत ने एक दिन का समय देने का आदेश दिया। इसीलिए अब सुनवाई गुरुवार 11 मार्च को होगी और पीड़ित पक्ष अपना हलफनामा प्रस्तुत करेगा। बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने जमानत अर्जी पर बहस करते हुए दलीलें दी कि अभियुक्त तौकीर रजा खां इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामजद मुल्जिम नहीं हैं। यदि वह घटनास्थल पर मौजूद होते तो उन्हें भी नामजद किया गया होता। वह निर्दोष हैं और पूरे प्रकरण में उनका कोई रोल प्रमाणित नहीं है इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए।

अभियोजन पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता [फौजदारी] राजेश कुमार यादव ने जमानत अर्जी का विरोध किया। सुनवाई के दौरान 17 अधिवक्ताओं ने अदालत में जो अर्जी प्रस्तुत कीं वे पूरनलाल, सीमा मौर्य, जमुना प्रसाद मौर्य, उमाकांत मौर्य, रामकृष्ण आकाश सक्सेना, पुष्पेंदु शर्मा की ओर से थी। इन लोगों का दावा है कि इनकी करोड़ों की सम्पत्ति इस दंगे में नष्ट हो चुकी है और उनके पास जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं बचा है। पीड़ित पक्ष ने तौकीर रजा खां के खिलाफ लंबित फौजदारी के आधा दर्जन मुकदमों का विवरण देकर उनका आपराधिक इतिहास भी तलब करने का अनुरोध किया।

बरेली शहर क‌र्फ्यू और फोर्स के हवाले

बरेली। शहर के बिगड़े हालात फिलहाल सुधरते नहीं दिख रहें हैं। खासकर आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां की गिरफ्तारी के बाद तनाव और बढ़ गया है। प्रशासन किसी हाल में नया बवाल नहीं लेना चाहता। लिहाजा उसने नया सेक्योरिटी प्लान लागू कर दिया है। अब तकरीबन पूरा शहर ही क‌र्फ्यू की जद में आ चुका है। मेन रोड पर सन्नाटा पसरा है तो गलियों में सख्ती बढ़ा दी गई है। मंगलवार को पूरा शहर ही छावनी बना दिया गया।

दो मार्च को उपद्रव के बाद जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी। क‌र्फ्यू में भी ढील लगातार बढ़ रही थी और लोग सड़कों पर निकलने लगे थे। एकाएक दंगा भड़काने के आरोप में मौलाना तौकीर की गिरफ्तारी के बाद शहर पुराने ढर्रे पर लौट गया। कोतवाली, बारादरी, प्रेमनगर, किला थाना क्षेत्र ही नहीं। अब तकरीबन पूरा शहर क‌र्फ्यू के जद में आ गया है। सीबीगंज, इज्जतनगर, सुभाषनगर, कैंट और बिथरी इलाके में भी मार्केट पूरी तरह बंद हो गए। इक्का-दुक्का दुकानें ही खुलीं। सभी प्रमुख सड़कों को पीएसी और आरएएफ के हवाले कर दिया गया। किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। लोकल पुलिस के अलावा पीएसी के जवान चप्पे-चप्पे पर नजर रखे हुए हैं।

चूंकि मौलाना तौकीर के समर्थक देहात क्षेत्र में भी हैं। लिहाजा शहर के बाहरी इलाकों में भी गश्त बढ़ा दी गई है। आईटीबीपी और बीएसएफ की टुकड़ियां भी प्रशासन ने मांग ली हैं। अगर जल्द हालात सामान्य नहीं हुए तो कुछ आरएएफ और बुलाई जाएगी। डीएम आशीष कुमार गोयल, डीआईजी एमके बशाल समेत पूरा अमला शहर में गश्त करता रहा। विरोध की रणनीति बना रहे लोग गांधीगिरी पर उतर आए और छिटपुट जगह गिरफ्तारियां भी दी गर्ई। डीआईजी एमके बशाल ने बताया कि क‌र्फ्यू में सख्ती बरकरार रहेगी।
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अखिर ये किसका पैदाईस है।

मैं ब्लागर नही हू ब्लागिग नही करता हू लेकिन बिकाउ मिडीया के समाचार देखने और पढ़ने से ज्यादा अच्छा ब्लागरों के ब्लाग को पढ़ना लेकिन कुछ दिन से देख रहा हू कि ब्लागर जगत में एक भूचाल सा दिख रहा है गालि-गलैज के द्वारा अपने अपने खानदान के व्यक्तित्व का प्रर्दशन करने बाले मुर्ख ब्लागरों का संख्या कुछ दिनों में कुछ ज्यादा हो गया है जो अपने धर्म से ज्यादा दुसरों के धर्म में रुची दिखातें हैं। उसमें भी दुसरे के धर्म कि बुराईयों को खोजने में कुछ ज्यादा व्यस्त रहतें है शायद उन्हें पता नही है चाँद पर थुकने बाले के मूँह पर ही थुक गीरता है। नाम बदल कर या दुसरे धर्म के अनुसार नाम रख कर धर्म को गाली देने या धर्म के बुराई खोजने बाले इतना तो बतादे उनके शरीर में खुन किसका वह रहा है नाम का या का.............. का।

ब्लाग कोई थुकने की जगह नही है इसे स्वच्छ बनाये रखें या फिर यह बता कि आप पैदाईस किसके है।
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समान नागरिक संहिता के पक्ष में है उच्चतम न्यालय

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खुदीराम बोस की समाधि पर बना शौचालय


पटना : विधानसभा में विधायक किशोर कुमार ने शुक्रवार को आजादी की लडाई के अमर सेनानी शहीद खुदीराम बोस से जुडे ऐतिहासिक स्थलो की बदहाली का मामला उठाया और सरकार से उन स्थलो को राष्‍टीय स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग की. विधानसभा में शून्य काल कें दौरान निर्दलीय किशोर कुमार ने कहा कि फांसी के बाद शहीद खुदीराम बोस का मुजफ्‌फरपुर के बर्निंगघाट पर अंतिम संस्कार किया गया था लेकिन उस स्थल पर शौचालय बना दिया गया है. इसी तरह किंग्सफोर्ड को जिस स्थल पर बम मारा गया था उस स्थल पर मुर्गा काटने और बेचने का धंधा हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह शहीदों के प्रति घोर अपमान और अपराध है. विधायक ने राज्य सरकार से इस मामले को गंभीरता से लेने और शहीद खुदीराम बोस से जुडे ऐतिहासिक स्थलो को संरक्षित कर पर्यटक धरोहर और राज्‍कीय स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग की ताकि आने वाली पीढी इससे प्रेरणा ले.
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ये हिन्‍दूस्‍तान के खिलाफ है।

भारत में रहकर यहां की संस्कृति को समझना काफी मुश्किल है. जहां भारत में विभिन्न जाति के लोग समय-समय पर आरक्षण की बात करते हैं. वहीं एक समुदाय ऐसा है जो बगैर किसी प्रयास के आरक्षण का लाभ उठाता आ रहा है. कहने को तो आरक्षण सिर्फ उन्हें ही मिलती है जो वर्ग पिछड़ा हुआ है या उपेक्षा का शिकार है. मुस्लिम आरक्षण पर काफी बवाल मचा हुआ है. भाजपा सहित कई राजनीतिक पार्टियां इसके विरोध में हैं. एक बात सोचनीय है कि जिस राज्य में मुस्लिम पिछड़े हुए हैं या कम है वहां उन्हें अल्प संख्यक का दर्जा प्राप्त है. वो सारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. लेकिन आज तक ये किसी ने नहीं सोचा कि उन हिन्दुओं का क्या, जो कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय में रहते और उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है.
विश्व में लगभग 57 इस्लामिक देश है आप एक देश बताएं जो हज पर राजसहायता यानि सब्सिडी देता हो?उल्टे भारत में हिन्दूओं के साथ अन्याय हो रहा है. हज पर सब्सिडी और अमरनाथ यात्रा, या वैष्णव देवी जैसे यात्राओं पर कोई छूट नहीं दी जाती है. हिन्दूस्तान में रहकर हिन्दूओं से सौतेला व्यवहार करते हैं हमारे देश के नेता. क्या आप एक ऐसा इस्लामिक देश बता सकते हैं जहां हिन्दूओं को विशेषाधिकार दिए गए हो जैसे भारत में प्राप्त है. एक बात और भारत के आजादी से लेकर आज तक के इतिहास पर नजर डाले तो मालूम पड़ता है कि कई ऐसे नेता जो हिन्दू नहीं थे. फिर भी राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक के पद उन्हें दिए गए. ऐसा केवल भारत में ही संभव है. परन्तु आप एक भी मुस्लिम देश नहीं बता सकते जहां पद प्राप्त हुआ हो. क्या कोई गैर मुस्लिम कश्मीर का मुख्यमंत्री बन सकता है नहीं?. आज भारतीय मुसलमान विश्व पट पर छा रहे हैं. ऐसा तभी संभव है जब उन्हें सुविधाएं प्राप्त होते हैं. क्या कोई गैर मुस्लिम, मुस्लिम देश में रहकर ऐसा सोच सकता है. आज जब हमारे नेता आरक्षण की बात करते हैं तो शायद उन्हें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. आरक्षण गरीबी दूर करने का माध्यम नहीं है बल्कि लोगों और समाज में द्वेष फैलाने का माध्यम भर है
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आंतकवादी को पदम श्री सम्मान

यह सिर्फ कांग्रेस के शासन काल में समभ्व हो सकता है कि किसी भी यैरु-गैरु को पदम श्री का पुरस्कार दे दिया गया इसी का ताजा मिशाल है आंतकवादी को पदम श्री सम्मान पुरी खबर के लिये पढे़।


यह खबर http://hindvi.com से लिया गया है।
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नेपाल में भारतीय मूल के प्रकाशक की हत्या

विद्रोही गुटों ने ली जिम्मेदारी
काठमांडू । नेपाल की राजधानी काठमांडू के एक बेहद सुरक्षित क्षेत्र में दिनदहाड़े मीडिया से जुड़े एक विवादास्पद व्यक्ति की हत्या के एक महीने से भी कम समय बाद दक्षिणी नेपाल में सोमवार को भारतीय मूल के एक प्रकाशक की अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। दो स्थानीय विद्रोही गुटों ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली है। पुलिस ने मंगलवार को बताया कि नेपाली दैनिक 'जनकरपुर टुडे' के प्रकाशक अरुण सिंघानिया (50) पर हमलावरों ने सोमवार शाम गोली चलाई थी। उस समय अरुण होली का त्योहार मनाकर घर लौट रहे थे। पुलिस के अनुसार हमलावर मोटरसाइकिल से आए थे और उन्होंने अरुण पर नजदीक से गोली चलाई। उन्हें तीन गोलियां लगी थी। सिंघानिया का मीडिया समूह एक एफएम रेडियो स्टेशन और एक इंटरनेट पोर्टल भी चलाता है। वह एक महीने की भारत यात्रा के बाद रविवार को धनुषा जिले के जनकपुर लौटे थे। रिपोर्ट के मुताबिक नई दिल्ली में उनका बेटा राहुल एमबीए की पढ़ाई कर रहा है। उसी से मुलाकात के लिए वह वहां पहुंचे थे। काठमांडू में उद्योगपतियों ने प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल से मुलाकात कर उन्हें चेतावनी दी है कि यदि एक महीने के अंदर सुरक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं होता है तो देश के सभी उद्योग और व्यापार बंद कर दिए जाएंगे। भारतीय मूल के प्रकाशक की हत्या के खिलाफ व्यापारिक संगठनों ने मंगलवार को जनकपुर बंद का आह्वान किया है। नेपाली पत्रकार संघ ने भी हत्या की निंदा की है। संघ ने कहा कि हमलावारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जनकरपुर में प्रदर्शन किया जाएगा। तराई इलाके में सक्रिय दो हथियारबंद गुटों, पूर्व माओवादियों के एक दल तराई जनतांत्रिक मुक्ति मोर्चा (राजन मुक्ति) और तराई जनतांत्रिक पार्टी-मधेस ने हत्या की जिम्मेदारी ली है.
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पंजाब के कई शहरों में ईसाईयों द्वारा दंगा-फ़साद…

कथित रूप से ईसा मसीह के अपमानजनक चित्र को लेकर पंजाब के कई शहरों में ईसाई युवकों ने जबरन दुकानें बन्द करवाईं और वे हथियारों तथा लाठियों से लैस थे… फ़रीदकोट, बटाला और जालन्धर आदि शहरों में "नव-धर्मान्तरित" ईसाई युवकों ने जमकर उत्पात मचाया… तुरन्त ऑल इंडिया क्रिश्चियन कमेटी के सदस्य भी पहुँच गये, जिसमें धर्म पतिवर्तन के लिये कुख्यात जॉन दयाल भी शामिल थे… पूरी की पूरी रिपोर्ट भारत के ईसाई मीडिया द्वारा दबा दी गई… और यह सब हम नहीं कह रहे… बल्कि ईसाईयों की ही एक वेबसाईट पर यह दिया है… इसे पढ़िये…

http://www.bosnewslife.com/11630-churches-shops-destroyed-in-indias-punjab-state
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एक तरफ़ हुंकार, दूसरी तरफ़ गद्दार…

पाकिस्तान से मोहम्मद हाफ़िज़ सईद ने कहा कि यदि भारत बात नहीं करता तो उससे युद्ध करना चाहिये…


वहीं दूसरी तरफ़ हमारे ट्विटर प्रिय 5 सितारा शशि थरूर नामक गद्दार कहते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच में सहमति बनाने के लिये सऊदी अरब की मदद लेना चाहिये… (यानी 60 साल बाद अब "तीसरा पक्ष" बीच में ले आओ)…


मूर्खतापूर्ण बातें करने का ठेका अकेले हाफ़िज़ सईद ने नहीं ले रखा, शशि थरूर भी ऐसा कर सकते हैं…
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केरल में एक लाख स्वयंसेवकों का सांघिक कार्यक्रम सम्पन्न

केरल के कोल्लम जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वार्षिक "संघिक" कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, जिसमें सरसंघचालक मोहन जी भागवत के सान्निध्य में एक लाख स्वयंसेवकों ने केरल में अपनी ताकत, अनुशासन और संगठन का परिचय दिया… उल्लेखनीय बात यह रही कि "वामपंथी शासकीय असहयोग" के बावजूद यह पूरा कार्यक्रम अनुशासित रूप से सम्पन्न हुआ… पेश हैं कुछ उत्साहवर्धक चित्र…





 

 

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हिन्दू विरोधी पेंटर हुसैन को कतर की नागरिकता मिली…

चलो कहीं से कोई तो अच्छी खबर आई… हिन्दू देवी देवताओं के नंगे चित्र बनाने वाला पेंटर MF हुसैन को कतर की सरकार ने वहां की नागरिकता प्रदान कर दी है… इधर भारत सरकार ने तसलीमा नसरीन को वीज़ा देने से मना कर दिया है… सेकुलरों के इस नंगे नाच के बीच होली के अवसर पर हुसैन की यह खुशखबरी लीजिये… अन्तिम वक्त वहीं कतर में बीतेगा शायद…

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लोक लुभावन रेल बजट

लोकसभा में पेश ममता बनर्जी के लोक लुभावन रेल बजट को विपक्ष के नेताओं ने भले ही पश्चिम बंगाल केन्द्रित कह कर उसका विरोध किया हो पर वे भी इसे 'जन विरोधीÓ बजट नहीं कह सके. निश्चय ही यह रेल मंत्री ममता बनर्जी के लिये एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने सीमित संसाधनों के बाद भी बिना यात्री तथा माल भाड़ा बढ़ाए न सिर्फ समाज के लगभग सभी तबके के हितों की चिंता की, बल्कि उसकी झलक को व्यापक करने का प्रयास भी किया.
दरअसल, ममता बनर्जी के सामने एक कठिन चुनौती थी. मंदी के दौर से उबर रहे देश व बढ़ती महंगाई के बीच सीमित संसाधनों में उन्हें ऐसा बजट पेश करना था जो सत्ता पक्ष को बेहतर राजनीतिक फायदा दिला सके. बजट का पश्चिम बंगाल केन्द्रित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लोकसभा चुनाव में बेहतर सफलता हासिल कर रेल मंत्रालय पर उनके काबिज होने के बाद ही यह कयास लगाये जाने लगे थे कि ममता बनर्जी की निगाहें कहीं और हैं. वस्तुत: वे पश्चिम बंगाल की सत्ता से विगत 30 वर्षों से आरूढ़ माकपानीत वाम मोर्चा को सत्ताच्युत कर खुद उस पर काबिज होना चाहती है. पश्चिम बंगाल में विपक्ष की भूमिका में रहते हुए मतदाताओं को लुभान की बहुत अधिक गुंजाइश नहीं थी. उग्र आंदोलन के जरिये उन्होंने लगातार वहां अपनी पार्टी को ताकतवर बनाया. अब रेल बजट के जरिये उन्होंने वहां के मतदाताओं को लुभान का काम तेज कर दिया है. अगले वर्ष वहां विधानसभा चुनाव हैं. इससे उनकी मंशा जाहिर हो जाती है. इस क्रम में भाकपा नता गुरुदास दासगुप्ता की यह टिप्पणी गौरतलब है कि 'बंगाल मं आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए बजट तैयार किया गया है. ऐसा लगता है कि यह राजनीतिक इरादे से तैयार किया गया है.Ó कहते हैं कि जाकी रही भावना जैसी... इसके पूर्व लालू प्रसाद व नीतीश कुमार के रेल बजट को भी 'बिहार केन्द्रितÓ कह कर उसकी आलोचना की गयी थी. काफी दबाव के बाद भी यात्री व माल भाड़े में बढ़ोत्तरी नहीं करना बल्कि खाद्यान्न किरासन एवं उर्वरकों के किराये में प्रतीकात्मक ही सही थोड़ी कटौती कर राहत देना उनकी मंशा को उजागर कर देता है. 'मातृभूमि स्पेशलÓ के नाम से 21 विशेष रेल गाडिय़ों का परिचालन, 'महिला वाहिनीÓ नाम से महिला रेल सुरक्षाकर्मियों की 12 कंपनियां गठित करने, महिला हॉस्टल व महिला रेल कर्मियों के बच्चों के लिये क्रेज खोले जाने, रेलवे परीक्षाओं में शामिल होने वाली महिलाओं के लिये फॉर्म फीस माफी की घोषणा कर उन्होंने देश ीक आधी आबादी के हितों की वाजिब चिंता की है.
दूरंतों टे्रन की संख्या बढ़ाने, ई-टिकट पर सरचार्ज घटाने, पर्यटकों के लिए विशेष रेल चलाने, कैंसर रोगियों के लिये किराया माफ करने, युवाओं के लिये रोजगार का अवसर बढ़ाने एवं मुंबई उप नगरीय रेल सेवा को व्यापक बनाने समेत समाज के विभिन्न वर्गों के लिये उन्होंने रेल बजट में जो प्रावधान किया है उससे आम यात्रियों को राहत ही मिली है. अत: इसमेें राजनीति की बू देखते हुए इसके विरोध का कोई औचित्य नहीं है. रेल लाइनों का विस्तार, रेलवे की खाली पड़ी जमीनों पर स्कूल अस्पताल खोलने की दिशा में पहल समेत अन्य कई घोषणाओं की बरसात कर ममता बनर्जी ने आम लोगों का मन जीत लिया है.
स्वभावत: इसमें कई घोषणाएं पूर्व का दोहराव होगी. कई घोषणाओं को लेकर यह सवाल पूछा जा सकता है कि उसके लिये संसाधन कहां से जुटाये जाएंगे तथा इसके बिना उसे जमीन पर कैसे उतारा जा सकेगा. ऐसे अनेक किन्तु-परन्तु से जुड़े सवाल उठाकर रेल मंत्री को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है. किसी भी घोषणा से देश के सभी क्षेत्र के लोगों को खुश कर पाना संभव नहीं है. बिहार व झारखंड की अपेक्षाएं उनसे कहीं अधिक थी. यह उम्मीद की जा रही थी कि पूर्व रेलमंत्रियों द्वारा पहले की जा चुकी घोषणाओं को लागू करना जारी रखते हुए वह कुछ और उसमें अपनी ओर से जोड़ेंगी पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ. झारखंड को तो सचमुच अपेक्षा से काफी कम मिला बल्कि कहें कि इसे महज झुनझुना थमा दिया गया अकूत प्राकृतिक संसाधनों ेस मुक्त बन, खदान, उद्योग बहुल इस क्षेत्र ेक तेज विकास के लिये रेलमंत्री से काफी अपेक्षाएं थीं पर ऐसा कुछ नहीं मिला और जो मिला उससे 'ऊंट के मुंह में जीराÓ वाली उक्ति ही चरितार्थ होती है. इससे झारखंड वासियों की नाराजगी स्वाभाविक है. बल्कि सच तो यह है कि झारखंड को कुछ लाभ मिला भी तो वह महज पश्चिम बंगाल का पड़ोसी होने के कारण मिला. अब कुछ और गाडिय़ां यहां से होकर गुजरेंगी, निश्चय ही यह पर्याप्त नहीं है. रेलमंत्री को अपना राजनीतिक हित साधने से अधिक विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते ही बजट प्रावधान तय करना चाहिए था. अब भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है. महज मनमोहक रेल बजट काफी नहीं है यह रेलवे के दीर्घकालिक हितों एवं तेज गति से विकास पथ पर अग्रसर देश की जरूरतों के अनुरूप हो, यह भी जरूरी है. पल लगता है मौजूदा आर्थिक, राजनीतिक हालातों के मद्देनजर रेलमंत्री ने राजनीतिक हितों को अधिक अहमियत दी क्यों? इसे समझना कठिन नहीं है.
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एक सेकुलर की सच्चाई ----- महेश भट्ट की असलियत

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कश्मीर में भारत विरोधी प्रदर्शन जारी… पाकिस्तान से बातचीत भी जारी…

कश्मीर में लगातार भारत विरोधी प्रदर्शन जारी हैं… हाल ही में एक प्रदर्शन के दौरान कई लोग घायल हुए और कई पुलिस वालों को चोटें आईं, लेकिन भारतीय मीडिया अब इसे पूरी तरह ब्लैक आऊट करने पर तुला है, जबकि खाड़ी देशों के अखबार इसे जोरशोर से उछालने में लगे है…


http://gulfnews.com/news/world/india/12-injured-during-anti-india-protests-in-kashmir-1.586844
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जमीन भारत का इजाजत बंगलादेश से

ढाका। भारतीय सीमा में स्थित बांग्लादेश के दाहाग्राम और अंगारपोटा क्षेत्र में बिजली पहुंचाने के लिए सीमा-पार केबल बिछाने पर सहमति बन गई है। यह भारत के कब्‍जे में है. लेकिन इसका पटटा बंगलादेश के पास है. बांग्लादेश की सरकारी समाचार एजेंसी के अनुसार, तीन बीघा गलियारे के रास्ते से भूमिगत बिजली केबल बिछाने का काम एक मार्च से शुरू हो जाएगा।
बांग्लादेश के लालमोनीरहाट जिले में स्थित दाहाग्राम और अंगारपोटा क्षेत्र तीन बीघा गलियारे के रास्ते से बांग्लादेश के बाकी हिस्सों से जुड़े हैं। इस छोटे से गलियारे पर भारत का अधिकार है,लेकिन इसे बांग्लादेश को पट्टे पर दिया गया है।
यह गलियारा भारत के कूच बिहार जिले में है और रोजाना दिन में हर दूसरे घंटे के अंतराल पर खुलता है।
पिछले महीने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान इस बिजली समझौते पर दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर हुआ था।
बांग्लादेश की एक निजी कंपनी 16 मार्च तक बिजली केबल बिछाने का काम पूरा करेगी।
बीएसएस के अधिकारी ने कहा कि जरूरत पड़ने पर यह काम 20 मार्च तक भी जारी रखा जाएगा।
इससे पहले लालमोनीरहाट के जिलाधिकारी और उपायुक्त मोहम्मद अलाउद्दीन फकीर की अगुवाई वाले पांच सदस्यीय बांग्लादेशी प्रतिनिधिमंडल और कूच बिहार के जिलाधिकारी स्रीमोती महापात्रा की अगुवाई वाले पांच सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल की बैठक के बाद इस पर सहमति बनी।
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बड़ा अपराध हो गया भाई… भारत में तो सिर्फ़ हिन्दू देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाई जा सकती हैं…

प्रभु यीशु की तस्वीर में हाथ में सिगरेट और बीयर का कैन… अरे रे रे रे रे रे… ये क्या हो गया… इसका घोर विरोध होना चाहिये… मेघालय (जहाँ 70% ईसाई बन चुके हैं) के स्कूलों और कैथोलिक चर्च में विरोध किया गया और इसके पब्लिशर को सारे देश में प्रतिबन्धित किया जायेगा…। आखिर इस देश में उनकी ऐसी हिम्मत कैसे हुई… इस देश में तो सिर्फ़ हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाई जा सकती हैं… और उस आदमी को भारत रत्न के लिये प्रपोज़ भी किया जा सकता है…

खबर पढ़ें…
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यदि कोई हिन्दू किसी मस्जिद में ऐसा करता तो???

इस खबर पर नज़र डालिये, इसमें एक मुस्लिम महिला फ़ौज़िया ने एक शिव मन्दिर में जमकर हंगामा मचाया और तोड़फ़ोड़ की, उसका कहना था कि इस मन्दिर की जगह पहले किसी बाबा की मज़ार थी… (शायद वह कहना चाहती होगी की शिव मन्दिर तोड़कर जो मज़ार बनाई थी वह कहाँ गई?)।

इस हंगामे पर स्थानीय निवासियों और भाजपा पार्षद ने विरोध किया और महिला को पुलिस के हवाले किया… यहाँ सवाल है कि यदि कोई हिन्दू महिला किसी मस्जिद में घुसकर ऐसा हंगामा करती, क्या तब भी मस्जिद में उपस्थित लोगों का व्यवहार ऐसा ही होता जैसा शिव मन्दिर में उपस्थित लोगों का था? क्या प्रशासन का व्यवहार भी ऐसा ही रहता? और ऐसा किसी मस्जिद में होता तो शहर का माहौल कैसा होता? :)

खबर पर नज़र डालिये…

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नये युग का सूत्रपात

लखनऊ। कतई चौकिएगा नहीं, अगर मिलाद के आयोजनों में आपको राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोग मंच पर बैठे दिख जाएं या संघ की शाखाओं में दाढ़ी, टोपी वाले मुसलमान नजर आ जायें। दरअसल एक नई पहल हो रही है, एक दूसरे को लेकर पैदा गलत फहमी को दूर करने के लिए। शुरुआत 27 मार्च को मेरठ से।

ईद मिलादुननबी के मौके पर मुहम्मद साहब के बताये रास्ते पर अमन का कारवां आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा ले रहे हैं। आयोजन का मकसद इस्लाम को लेकर पैदा भ्रांतियां दूर करना है। उधर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच मुसलमानों से संघ की शाखाओं से जुड़ने की अपील करने जा रहा है। मकसद यही है कि संघ को लेकर उनके मन में जो गलत फहमियां हैं, वो दूर हो सकें।

राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के अध्यक्ष मुहम्मद अफजाल ने बताया कि ईद मिलादुननबी के मौके पर पूरे महीने प्रदेश के अलग-अलग शहरों में मुहम्मद साहब के बताए रास्तों पर अमल करने के लिए 'पैगाम-ए-अमन' के नाम से कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। इसमें बतौर मुख्य अतिथि संघ के वरिष्ठ प्रचारकों को आमंत्रित किये जाने की योजना है। उन्होंने कहा कि मंच मुसलमानों से यह कह रहा है कि वे शाखाओं में जाकर खुद जानें कि संघ में किसी जाति, धर्म के खिलाफ कुछ नहीं होता। संघ की नजर में केवल राष्ट्र महत्वपूर्ण है।
पूरे समाचार के लिये निचे चटका (click) लगायें

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'खान' में नहीं है जान!

जनमानस में इस्लाम के जेहादी स्वरूप को भुलाने के लिए छवि सुधारक अभियान के तहत बनाई गयी फिल्म माय नेम इज खान अब चारो खाने चित्त होती नजर आ रही है. 'खान' भयभीत-पोषित मीडिया चाहे कुछ भी दावे कर ले लेकिन जनता ने लगभग इस फिल्म को ठुकरा दिया है और इसका हश्र सैफ अली खान अभिनीत कुर्बान जैसी होने की पूरी उम्मीद है.

शिव सेना के विरोध के कारण शुरूआत में भले ही इस फिल्म ने शाहरुख के अंधभक्तो की भीड़ जुटाई हो लेकिन अब यह खेल लंबा नहीं चल रहा है. क्योंकि लोग झांसे में आकर एक बार फिल्म देखने भले ही चले जाए, बार-बार उन्हें बेवकूफ बनाना मुश्किल है. शायद लोगो की समझ में भी आ गया होगा की माय इज इज खान को पायरेटेड सीडी पर देखना ही मुनासिब है.

पीवीआर सिनेमा में थियेटर की सीट-भराई ९०% गिरकर सोमवार को ५०% हो गयी. वही स्पाइस सिनेमा का कहना है कि, .. खान की टिकट बिक्री में बुधवार को २०% और गुरूवार को ३०% गिरावट आई.
बिना मनोरंजक गुणों के सिर्फ प्रोपेगेंडा के लिए बनाई जाने वाली फिल्मो का हश्र ऐसा ही होता है.

विस्तार से पढने के लिए वन इंडिया पोर्टल पर छपी खबर पर गौर करें. लिंक दिया जा रहा है...

http://entertainment.oneindia.in/bollywood/news/2010/my-name-is-khan-collections-190210.html


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भाजपा की राष्‍ट्रीय परिषद् बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी द्वारा दिए गए अध्यक्षीय भाषण

मेरे प्यारे भाइयों, बहनों और प्रतिनिधि बंधुओं

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की इस बैठक में आपके समक्ष मैं अत्यंत हर्ष, विनम्रता एवं गर्व का अनुभव कर रहा हूं। व्यक्ति के जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब वह अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाता, शब्द कम पड़ जाते हैं। मेरे जीवन में आज यह ऐसा ही एक महत्वपूर्ण क्षण है।

मैं आपके उत्साह एवं जोश की उमड़ती लहरों को महसूस करके प्रसन्न हूं। आप अपने साथ न केवल आशाएं और आकांक्षाएं लेकर आए हैं बल्कि हमारे इस महान देश के कोने-कोने से हमारी पार्टी के लाखों-करोड़ों कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों के समर्पण एवं निश्चय की भावना भी साथ लाए हैं। आपमें मातृभूमि की सेवा करने का वही दृढ़संकल्प मुझे दिख रहा है जो मैंने युवा पार्टी कार्यकर्ता के रूप में 1980 में मुंबई में आयोजित भाजपा के स्थापना सम्मेलन में भाग लेते समय देखा था।

राष्ट्रीय परिषद ने मुझ में अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त करके मुझे अभिभूत कर दिया है। मैंने कभी यह आशा नहीं की थी कि एक दिन मुझे इस महान दल के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व ग्रहण करने के लिए कहा जाएगा। मैं जानता हूं , और मैं बिना किसी संकोच के यह कहना चाहूंगा कि हमारी पार्टी में नेतृत्व की अपेक्षित क्षमता रखने वाले व्यक्तियों की कोई कमी नहीं है। अनेक नेतागण हैं जो इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाल सकते थे फिर भी, पार्टी नेतृत्व और आप ने इस पद के लिए सर्वसम्मति से मुझे चुना। पार्टी के एक अनुशासित सिपाही के रूप में, मैें इस उत्तरदायित्व को एक मिशन के रूप में स्वीकार करता हूं।

इस अवसर पर मैं असीम गौरव का अनुभव इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्षता करने का सम्मान एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जो मूलत: एक कार्यकर्ता है। मैं किसी राजनीतिक परिवार से भी नहीं हूं। मेरा जन्म नागपुर में एक साधारण परिवार में हुआ। मैंने राष्ट्रभक्ति एवं समाज सेवा का पहला पाठ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सीखा।




कार्यकर्ताओं की पार्टी

मैं जब यह कहता हूं कि अपनी आरंभिक किशोरावस्था में वार्ड स्तर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में जनसंघ के लिए प्रचार किया करता था, तो इसमें कोई नई बात नहीं है। हमारे बीच यहां उपस्थित बहुत से लोगों ने दीवारों पर नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने जैसी गतिविधियों में शामिल होकर अपने जीवन की शुरूआत की है। याद रहे कि मुम्बई जैसे नगरों में भीड़भरी रेलगाड़ियों में सफर करना आप और मेरे जैसे व्यक्ति के लिए रोजाना का काम है, क्योंकि हम सभी सामान्य नागरिक हैं जो साधारण यात्रियों की दैनिक पीड़ा को दैनिक जीवन में देखते और अनुभव करते रहे हैं।

मेरे राजनीतिक जीवन की यात्रा किसी भी रूप में असाधारण नहीं है। वास्तव में, भाजपा के सभी पूर्ववर्ती अध्यक्ष समर्पित कार्यकर्ता थे जो निचले स्तर से अपने काम के बलबूते पर ऊपर उठे। इसलिए, मैं ऐसा नहीं मानता हूं कि पार्टी का अखिल भारतीय अध्यक्ष बनना व्यक्तिगत रूप से मेरा सम्मान है, बल्कि यह भाजपा की उस गौरवशाली परंपरा का सम्मान है जिसके चलते इसे कार्यकर्ताओं की पार्टी माना जाता है, न कि कोई ऐसी पार्टी जिस पर किसी एक परिवार या खानदान का कब्जा हो। भारत में भाजपा को इसी कारण अधिकतर राजनीतिक पार्टियों से अलग देखा जाता है क्योंकि उन पार्टियों में उच्चतम पद पर कब्जा किसी एक परिवार विशेष के सदस्यों का जन्मसिध्द अधिकार समझा जाता है। भाजपा इसलिए लोकतंत्र के आदर्शों के प्रति दूसरों से अधिक वचनबध्द है। यही वह आधार है, जिससे हम भाजपा को अन्य दलों की तुलना में विशिष्ट पहचान वाली पार्टी कहते हैं।
हमारी शानदार विरासत : डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बलिदान
मैं, सर्वप्रथम डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अमर स्मृति को अपनी हार्दिक एवं भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित करना चाहता हूं, जिनके जीवन और सीखों से हमने उस समय से प्रेरणा पाई है जब 1951 में हमारी राजनीतिक यात्रा भारतीय जनसंघ के जन्म के साथ शुरू हुई थी। उनकी दूरदृष्टि आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रही है और सदा करती रहेगी।

”एकात्म मानव दर्शन” या ”इन्टीग्रल हयुम्निज़म” के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय हमारे दृष्टा संस्थापकों में से एक हैं उन्होंने ही यह स्थापित किया कि राष्ट्रवाद और वंचितों का उत्थान-मिलकर समाज के सभी वर्गों के लिए एक सघन राजनीतिक दर्शन हो सकता है। अपने अथक प्रयासों से उन्हाेंने सभी देशभक्तों के एक राजनीतिक दल के लिए विशिष्ट स्थान निर्माण किया।

आज मैं अपनी पार्टी के दो शीर्षस्थ नेताओं का आशीर्वाद पाना चाहता हूं जिन्हें मैंने हमेशा अपना आदर्श माना है- भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी, जिन्होंने पार्टी के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है। आदरणीय श्री अटलजी अपनी उम्र और स्वास्थ्य के चलते अब पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पा रहे। तथापि, राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति विवेकपूर्ण एवं संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जो समझ उनसे हमें मिली है, उनके व्यक्तित्व को जो व्यापक सराहना प्राप्त है और भारत के सर्वोत्ताम प्रधानमंत्रियों में से एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रनिर्माण में जो विशाल योगदान किया है वह भाजपा के लिए सदैव शक्ति एवं गौरव का स्रोत रहेगा। आप सबके साथ मैं भी उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करता हूं।

यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आदरणीय श्री आडवाणीजी से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता हूं। जनसंघ के गठन के साथ जिनकी राजनीतिक यात्रा आरंभ हुई और जिन्होंने पिछले छह दशकों में राष्ट्रीय राजनीति की लगभग सभी प्रमुख घटनाओं को न केवल देखा है बल्कि उनमें स्वयं सक्रिय रूप से भाग लिया है, वह श्री आडवाणीजी भारतीय जनता पार्टी के अतीत और वर्तमान को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में हमारे साथ हैं, हमारे पास हैं। वे जिस समर्पण, नि:स्वार्थता और अथक सेवा भावना से काम करते हैं, वह राजनीति की नई पीढ़ी के लिए एक अद्वितीय उदाहरण हैं।

मेरे पूर्ववर्ती अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंहजी के प्रति मैं हृदय से अपना आभार एवं सम्मान प्रकट करता हूं। उन्होंने ऐसे समय में पार्टी को सफल नेतृत्व प्रदान किया जब हमारे संगठन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। मैं समस्त पार्टी की ओर से उनकी सराहनीय सेवाओं के प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूं।

आज मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मैं कृतज्ञता के साथ पार्टी के उन अनेक महान नेताओं का स्मरण करूं जो अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जिनसे मुझे प्रेरणा, प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। मैं स्वर्गीय श्री कुशाभाऊ ठाकरे, और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के प्रति सम्मान और आदरांजलि अर्पित करता हूं। मैं उन अनगिनत सामान्य कार्यकत्तर्ााओं को भी श्रध्दासुमन अर्पित करता हूं जिन्होंने पार्टी के हित के लिए अपने जीवन की आहूति दे दी। इस अवसर पर, मैं पार्टी के उन हजारों-हजार कार्यकर्ताओं का भी अभिनन्दन करना चाहता हूं जो अनेक वर्षों से बगैर किसी पद की अपेक्षा रखे पार्टी के कार्य में जुटे हैं।

मैंने सभी बड़े नेताओं एवं आदर्श कार्यकर्ताओं से वह नीति-मंत्र सीखा है जिससे उनका जीवन प्रेरित था: पहले राष्ट्र, फिर पार्टी और अंत में स्वयं। यह मंत्र हमारा मार्गदर्शी सिध्दांत रहा है, और आगे भी रहेगा। मैं पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं से आग्रह करता हूं कि वे इस सिध्दांत का पालन करें, क्योंकि सिर्फ इसी पर चल कर हम लोगों के अधिक अच्छे सेवक बन सकते हैं और भाजपा को राष्ट्र-निर्माण का बेहतर साधन बना सकते हैं। याद रहे राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा है, सुशासन के माध्यम से विकास और अंत्योदय हमारा अंतिम लक्ष्य है।
इंदौर : अहिल्याबाई होल्कर से प्रेरणा
भाजपा की यह मान्यता है कि राजनीतिक पद कोई अलंकरण नहीं है बल्कि, यह किसी भेदभाव के बिना, न्यायपूर्वक एवं निस्वार्थ भाव से लोकसेवा करने केर् कत्ताव्य को निभाने का एक अवसर है। वास्तव में, उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि अपने वह सभी सहयोगियों को समान भाव से देखे। इस न्यायतत्व का स्मरण मुझे इन्दौर की भूमि पर होना स्वाभाविक ही है क्योंकि इस शहर ने भारत के इतिहास के महानतम शासकों में से एक -पुण्यशलोका राजमाता अहिल्याबाई होल्कर की पावन स्मृति को अमर किया है। मालवा राज्य की इस दूरदर्शी महारानी को मैं अपनी श्रध्दांजलि अर्पित करता हूं, जिनका न्याय के प्रति पूर्ण समर्पण सर्वविदित है। उन्होंने घोर आपराधिक कृत्यों में लिप्त अपने ही पुत्र को हाथी के पांव तले कुचलवाने का आदेश देने में कतई संकोच नहीं किया। वह विवेक, अच्छाई, दृढ़ता और सद्गुणों की भव्यमूर्ति थीं; उन्होंने आम लोगों, विशेषकर वनवासी समुदायों के उत्थान के लिए अथक परिश्रम किया। भारत आज एक लोकतंत्र है। फिर भी, अहिल्याबाई होल्कर जैसे शासकों से हमें सुशासन और लोगों के कल्याण की शिक्षा लेनी चाहिए।

इन्दौर पहुंचने के बाद मैंने भारतरत्न डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्मस्थली महू जाकर उनकी स्मृतियों को प्रणाम किया। डॉ. अम्बेडकर सच्चे मानवतावादी थे। उन्हाेंने समाज के कमजोर वर्गों को आवाज दी। उनका जीवन सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता के मूल्यों को चरितार्थ करता है। मैं सबकी ओर से इस महान नेता को अपनी आदरांजलि समर्पित करता हूं।
आइए, अपनी उपलब्धियों पर बेहतर कल का निर्माण करें

मित्रो, राष्ट्रीय परिषद का सम्मेलन एक ऐसे समय पर हो रहा है जब राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय-दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण घटनाएं घट रही हैं। इनमें से कुछ घटनाओं का भारत के लिए दूरगामी महत्व है, जिसमें चुनौतियां भी हैं और अवसर भी।

हमारी पार्टी को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इन चुनौतियों को हमें साफ तौर पर स्वीकार करना होगा, समझना होगा और दृढ़ता से उनका मुकाबला करना होगा। तथापि, भाजपा के सामने जो चुनौतियां हैं उनके कारण हमें उन वास्तविक अवसरों की ओर से आंखे नहीं मूंद लेनी चाहिए जो हमारे पास हैं। हमें एकजुट होकर, तात्कालिक असफलताओं से प्रभावित न होते हुए पुन: नए जोश एवं उत्साह के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी पार्टी इस देश के हर कोने में मौजूद हैं। छह राज्यों में हमारी सरकारें हैं और तीन अन्य राज्यों में हम गठबंधन सरकारों में शामिल हैं। इनके अलावा तीन अन्य राज्यों में हम प्रमुख विपक्षी दल के रूप में मौजूद हैं। आज तक किसी न किसी समय हम लगभग 20 राज्यों में सत्ताा में रहे हैं। आइए, हम अपनी इन उपलब्धियों की नींव पर बेहतर कल का निर्माण करें। अभी भी कुछ ऐसे राज्य है जहां हमें महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में हमें अपने आपको स्थापित करना है। आइए, हम समाज के सभी वर्गों का विश्वास जीतें और अपने देश के लोगों को वह सब देने का भरपूर प्रयास करें जो उन्हें मिलना ही चाहिए : वह है सुशासन!

विश्व व्यवस्था तेजी से एशिया के पक्ष में परिवर्तित हो रही है

भाजपा राष्ट्रवाद का पर्याय है। अपनी मातृभूमि के विस्मृत गौरव को लौटाना हमारा कर्तव्य है। और हमें यह विश्व व्यवस्था में हो रहे प्रमुख परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में करना है। पश्चिम, और विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्वव्यापी प्रभुत्व तेजी से घट रहा है। पश्चिमी देशों में पिछले वर्ष के वित्ताीय दबाव और आर्थिक मंदी को किसी छोटी-मोटी घटनाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस मंदी का उनकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है। पश्चिमी देशों में अब ऊंची-लागत, व्यर्थ एवं अत्याधिक उपभोक्तावादी जीवन शैलियों के बारे में चिंता जताई जा रही है। अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए सैन्य दल-बल एवं आयुध सामग्री के उत्पादन पर खर्च करने की मजबूरी तो अलग ही है।

नतीजा यह कि विश्व अर्थव्यवस्था का केन्द्र अपरिवर्तनीय रूप से पश्चिम से एशिया की ओर खिसक रहा है। निस्संदेह, इस परिवर्तन का चीन को बहुत लाभ मिला है। लेकिन यह भी सच है कि विश्वभर में अधिक से अधिक लोग अब यह मानने लगे हैं कि भारत शीघ्र ही एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकता है। विश्व को प्रभावित कर रही किसी भी बड़ी समस्या पर अब भारत को शामिल किए बिना और भारत का सहयोग लिए बिना चर्चा नहीं की जाती है – चाहे जलवायु परिवर्तन की बात हो, विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का विषय हो, वैश्विक वित्ताीय ढांचे के पुनर्गठन की बात हो, या फिर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के भूत से निपटने का मसला हो। मैं इस परिवर्तन को भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में देखता हूं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह संभवत: सबसे बड़ा अवसर है जब हमारा देश मजबूत एवं समृध्द बन कर उभर सकता है, जिसका अतंर्राष्ट्रीय बिरादरी में मजबूत स्थान और आवाज हो।

हमें इस अवसर को पहचान कर एक ऐसा कार्यक्रम विकसित करना चाहिए जिसमें हमारी राजनीतिक गतिविधियां, हमारी नीतियां प्रतिबिंबित हाें, और हमारी सरकारों के कार्य-संचालन तथा स्वशासी निकायों के कामकाज में भी उसकी झलक मिले। चूंकि हमारी पार्टी ‘राष्ट्र पहले’ के सिध्दांत पर आधारित है, इसलिए हमें केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों को जहां और जब कभी ऐसा लगे कि इन सरकारों द्वारा ऐसे उचित कदम उठाये जा रहे हैं, जो देश को मजबूत कर सकते हैं और इन नए ऐतिहासिक अवसरों की दिशा में आगे ले जा सकते हैं, तो उन्हें समर्थन और सहयोग देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।

नेपाल की स्थिति

भाजपा के लिए नेपाल सिर्फ पड़ोसी राष्ट्र ही नहीं अपितु हमारी ऐतिहासिक सभ्यता का अभिन्न अंग है। यहां विषाल हिमालय बसता है जो हमारी सभ्यता का पालनहार एवं रक्षक है। हम नेपाल की सुरक्षा, समृध्दि और विकास के लिए उतने ही कृतसंकल्प हैं जितने भारत के लिए। भाजपा नेपाल की अषांत स्थिति से चिंतित है। हम सरकार से अपील करते हैं कि वह नेपाल के साथ सम्बन्ध फिर से मजबूत किये जायें और उन शक्तियों को परास्त किया जाए जो दोनों ही देषों के प्रति दुर्भावना रखती हैं।

रणनीतिक विषयों पर एक समान राष्ट्रीय दृष्टिकोण आवश्यक

मैं, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के नेताओं से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वे राष्ट्र के महत्वपूर्ण हितों को प्रभावित करने वाले सभी अहम् विषयों के बारे में, विपक्ष के साथ संवाद और सहयोग पर आधारित, एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाएं। भारत – अमेरिका परमाणु संधि करते समय, वो ऐसा नहीं कर सके। कोपनहेगन सम्मेलन में भारत की नीति निर्धारण करने के समय भी वे विफल हुए। उन्होंने तब भी ऐसा नहीं किया जब पश्चिम में आई आर्थिक मंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। दुर्भाग्य से उनका वही रवैया उन दो नाजुक विषयों के बारे में विपक्ष को विश्वास में न लेने में भी बराबर झलकता है, जिनका सीधा सम्बन्ध राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सुरक्षा से है। प्रसंगवश दोनों समस्याएं कांग्रेस द्वारा की गई घोर गलतियों से जन्मी हैं। इन गलतियों के चलते – जिन्हें आज का कांग्रेस नेतृत्व स्वीकार करने से इंकार करता है – भारत को पिछले कई दशकों से भारी कीमत चुकानी पड़ी है और भारी नुकसान सहना पड़ा है।

पहली भूल का संबंध चीन के साथ भारत के संबंधों को लेकर है। भाजपा चीन के साथ मैत्रीपूर्ण अच्छे पड़ोसी जैसे सम्बन्ध रखने और सहयोग करने के पक्ष में है। क्योंकि दोनों देश प्राचीन एशियाई सभ्यता के अनूठे उदाहरण हैं। किन्तु, अब चीन एक विश्वव्यापी शक्ति के रूप में उभर रहा है, और शायद यही कारण है कि भारत के प्रति उसका रवैया बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं है। चीन की इस नीयत के कारण सीमा विवाद को सुलझाने में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। इसके विपरीत, चीन बार-बार अरूणाचल प्रदेश पर अपने अधिकार का अवैध दावा अनेक आक्रमक तरीकों से व्यक्त करने लगा है। हाल-ही में, हमारी अपनी सरकार ने स्वीकार किया है कि चीन ने सीमा के दूसरे इलाकों में भारतीय क्षेत्र के अन्दर घुसने की कोशिश की है। इसे हल्के तरीके से नहीं लिया जा सकता, जैसाकि सरकार वास्तव में करती दिख रही है। भारत के अड़ोस-पड़ोस में चीनी सेना की बढ़ती मौजूदगी और पाकिस्तान में एक सैन्य अड्डा बनाने के बारे में बीजिंग की योजना चिंता का विषय है। भाजपा मांग करती है कि भारत-चीन सम्बन्धों के बारे में सरकार विपक्ष के साथ विचार-विमर्श कर एक सामरिक नीति अपनाए। हमें विष्वास है कि चीन जानता है कि सन् 2010, 1962 नहीं है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ही इन दो महान सभ्यताओं को आगे ले जा सकता है। इस सम्बन्ध में, मैं आपको यह सूचित करना चाहता हूं कि हमने चीन के साथ लगी अपनी सीमा की सुरक्षा पर मंडराते खतरों का आकलन करने के लिए उत्ताराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भगतसिंह कोश्यारीजी की अध्यक्षता में एक पांच-सदस्यीय अध्ययन-दल गठित किया है।

जम्मू और कश्मीर

दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा जम्मू एवं कश्मीर का है। कष्मीर सभी भारतीयों और विषेषकर भाजपा के लिए बलिदान का प्रतीक है। यही वह भूमि है जहां डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय अखण्डता की सच्ची भावना के लिए अपना जीवन आहूत कर दिया। कश्मीर के मुद्दे पर यूपीए सरकार जिस राह पर बढ़ रही है भारत के लिए खतरनाक सिध्द हो सकता है। ऐसा लगता है कि ये सरकार बाहरी दबावों में आकर भारत के इस दावे के साथ समझौता कर रही है कि पाक अधिकृत कश्मीर सहित समूचा जम्मू एवं कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू एवं कश्मीर में नेशनल कान्फं्रेस – कांग्रेस गठबंधन सरकार पाक-समर्थित अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया अपना रही है। जम्मू एवं कश्मीर की भारत के साथ सम्पूर्ण संवैधानिक एकात्मता करने हेतु उपाय करने के बजाय, यूपीए सरकार ऐसा दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश कर रही है कि मानों कश्मीर पर विशेष ढंग से बात करने की जरूरत है। अगर सरकार इसी नीति पर चलने वाली है, तो कश्मीर को वास्तव में अलग करने की मांग के आगे घुटने टेकने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। मैं यह बात मुख्य रूप से यूपीए को चेताने तथा कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों में सही सोच रखने वाले लोगों सहित अपने देशवासियों को सचेत करने के लिए कह रहा हूं कि वर्तमान घटनाक्रम यूं ही चलता रहा तो इसका नतीजा वही होगा जो 1947 की भारी भूल के कारण हुआ था। भारतीय जनता पार्टी ऐसा कभी नहीं होने देगी। जम्मू व कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए हम कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार हैं। इस संदर्भ में, पार्टी पाकिस्तान के साथ आज की स्थिति में, किसी भी तरह की समग्र वार्ता पर अपना सख्त विरोध दर्ज कराना चाहती है।

जम्मू व कश्मीर के सम्बन्ध में, एक और महत्वपूर्ण बात मैं कहना चाहता हूं। हाल में, इस मुद्दे पर काफी बहस हो चुकी है कि मुम्बई शहर सभी भारतीय लोगों का है या नहीं। यह एक अनावश्यक विवाद है। मेरी धारणा और भाजपा की धारणा इस बारे में स्पष्ट है कि समूचा भारत, बगैर जाति, मज़हब, नस्ल और भाषाई भेदभाव के सभी भारतीयों के लिए है। हमारा विश्वास है कि संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ई) हम सभी को भारत के किसी भी भाग में रहने और बसने की संवैधानिक गारंटी देता है जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता मजबूत होती है। इसी सिध्दांत के आधार पर हम कष्मीर के, भारत में सम्पूर्ण संवैधानिक एकात्मकता की बात करते है। हमने हमेशा भाषायी, क्षेत्रीय और मजहबी पहचानों को भारत की वास्तविकता मानते हुए कहा है कि ये सभी पहचान, अंतत: भारतीयपन की वृहत राष्ट्रीय पहचान में जुड़ जाती हैं। निस्संदेह इनमें संघर्ष का कोई सवाल नहीं है। फिर भी, मैं इस बात से चकित एवं दु:खी हूं कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी नेता निश्चयपूर्वक यह कहने के लिए आगे नहीं आया कि मुम्बई सहित अन्य भारतीय शहरों की तरह, श्रीनगर भी सभी भारतीयों का है और यहां भी भारत के अन्य भागों से आए भारतीय लोगों को कश्मीर में बसने और रोजगार पाने का बराबर का अधिकार है। इस दिशा में पहल करने के लिए, कांग्रेस पार्टी – जो केन्द्र और जम्मू व कश्मीर दोनों स्थानों पर सत्ता में है – को चाहिए कि उन लाखों कश्मीरी पंडितों को वापस वहां बसाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जिन्हें कश्मीर में उनके अपने घरों से जबरन बाहर निकाल दिया गया था।

वोट बैंक राजनीति, भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा

भारतीय जनता पार्टी का यह मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा चाहे बाहरी सुरक्षा हो या आन्तरिक, संकीर्ण राजनीतिक या सामाजिक विवादों से ऊपर है। भारत की सुरक्षा पर खतरे के समय हमारी पार्टी ने हमेशा सरकार को सहयोग देने का अपना धर्म निभाया है। इसी प्रकार जब भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार केन्द्र में सत्ता में आई, उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर अपनी नीति बनाने में अन्य पार्टियों का सक्रिय सहयोग मांगा और उनके विचार जानने की कोशिश की। इस स्वस्थ परम्परा को सभी दलों के सहयोग से और भी सुदृढ़ किया जाना चाहिए।

हमारे पड़ोस में पनप रहे सुरक्षा सम्बन्धी वातावरण को देखते हुए, किसी भी हालत में भारत की रक्षा तैयारी में कोई कमी नहीं की जानी चाहिए। भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए जो दो बड़े ख़तरे बने हुए हैं-जिहादी आतंकवाद और नक्सलवाद, उनका सामना करने के लिए अत्याधिक सतर्कता से काम करने और अधिक कारगर रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है। जहां तक आतंकवाद से निपटने में भारत सरकार की कार्यवाही का सम्बन्ध है, उसे घोर अनर्थ ही कहा जा सकता है। पाकिस्तान की शह से 26/11 को मुम्बई पर हुए हमले ने सरकार को अपनी कुछ गलतियों को सुधारने के लिए बाध्य तो किया है। किंतु 26/11 हमले की जांच जिस ढंग से की जा रही है, उससे गंभीर आशंकाएं पैदा होती हैं। ऐसा लगता है कि सरकार उस हमले के जानकारों और साजिश में शामिल स्थानीय कड़ियों का पता लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।

पुणे में ताजा बम विस्फोट इसका उदाहरण है कि संदिग्ध आतंकवादियों के प्रति नरमी बरतने से देष की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। संदिग्ध आतंकवादियों की चिरौरी करना, उन पुलिस अधिकारियों का भी अपमान है जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान आतंकवाद से लड़ने में दिया है। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने संदिग्ध आतंकवादी अड्डों को अपनी तीर्थस्थली बना लिया है। आतंकवादियों के संदिग्ध अड्डों पर राजनीतिज्ञों का बार-बार जाना राष्ट्र के शत्रुओं का हौसला बढ़ा रहा है। दूसरे, पाकिस्तान के साथ हमारी राजनीतिक पहल में स्पष्टता, निरंतरता और ढृढ़ता का अभाव है। पुणे बम विस्फोट से हमारे इस दृष्टिकोण की पुष्टि होती है कि आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। यूपीए को समझना होगा-और मुझे विष्वास है कि यूपीए के राष्ट्रवादी नेता हमारी बात से सहमत होंगे-कि जब देष पर आतंक का साया हो पाकिस्तान से बात न करने की नीति एक वैध कूटनीतिक उपाय है। दुर्भाग्य से यूपीए सरकार आतंकवाद के विरूध्द एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाने में वाजपेयी सरकार की उस नीति को आगे नहीं बढ़ा रही है जो जिहादी आतंकवाद का विष फैलाने वालों को अलग-थलग कर सकती है। विशेषकर, अंतरराष्ट्रीय जगत को यह पहचान कराना जरूरी है कि पाकिस्तान की सत्तारूढ़ राजनीतिक और सैनिक व्यवस्था भारत से कश्मीर को छीनने का अपना मंसूबा पूरा करने के लिए जिहादी आतंकवाद का इस्तेमाल कर रही है। अत: कश्मीर के बारे में पाकिस्तान के किसी भी दावे को न्यायसंगत बताने से आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को निश्चय ही ठेस पहुंचेगी।

मुझे विवश होकर यह कहना पड़ रहा है कि कांग्रेस पार्टी अल्पकालिक वोट बैंक से लाभ उठाने के विचार को त्यागे बिना आतंकवाद के खतरे को देखने से इंकार कर रही है। उदाहरण के लिए, उस पार्टी के वरिष्ठ नेतागण खुलेआम इन दावों का समर्थन कर रहे हैं कि बाटला हाउस में दिल्ली पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई, जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी मारा गया, फर्जी मुठभेड़ थी। जिहादी आंतकवाद से निपटने में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की गलत नीति के विरुध्द भाजपा को अवश्य ही अपनी आवाज उठानी चाहिए, और भाजपा यह आवाज मुखर करती रहेगी।

मजहब आधारित आरक्षण मंजूर नहीं

वोट बैंक की राजनीति उस जल्दबाजी में भी खुल्लम-खुल्ला नजर आती है जिसके चलते कांग्रेस और कम्युनिस्ट दोनों ही मुसलमानों के लिए शिक्षा एवं रोजगार में मजहब-आधारित आरक्षण देने की व्यवस्था करने में एक-दूसरे से होड़ लगाए हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी शिक्षा के व्यापक प्रसार के माध्यम से अपने मुस्लिम बंधुओं के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए किए जाने वाले प्रयासों का समर्थन करती है। वास्तव में उनका पिछड़ापन इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि कांग्रेस पार्टी ने अपने निजी राजनीतिक लाभ के लिए किस कदर उनका शोषण किया है। लेकिन मजहब-आधारित आरक्षण का विचार भारतीय संविधान में की गई मूल व्यवस्था के एकदम विरूध्द है। ऐसा करने से उस समस्त समुदाय का चहुंमुखी विकास होना भी संभव नहीं है। उल्टे यह तो फूट डालने वाला एक उपाय है जो आगे चल कर देश की एकता और अखंडता के लिए नुक्सानदेह साबित होगा, साथ ही मतांतरण को भी शह देगा। आरक्षण्ा के लाभों को दलित ईसाइयों तक पहुंचाने की कोशिश का भी ऐसा ही हानिकारक परिणाम होगा। कांग्रेस एवं कुछ अन्य पार्टियों के द्वारा इस संदर्भ में कोर्ट के आदेषों को न मानना इसे और गंभीर बनाता है। भाजपा, सरकार को यह सख्त चेतावनी देती है कि वे मजहब-आधारित आरक्षण न देंं। हमारी पार्टी ऐसे किसी भी कदम का कड़ा विरोध करेगी।

नक्सली खतरा

भारत की आन्तरिक सुरक्षा को दूसरा बड़ा खतरा नक्सलवाद से है। इसके कारण वास्तव में हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ही संकट में पड़ जाएगी – इसलिए हमें सख्ती से इसका मुकाबला करना होगा। माओवाद का सिध्दांत और व्यवहार दोनों पूरी तरह भारतीय विचारों एवं धारणाओं और मूल्यों के विरूध्द है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी ताकतें भारत में अशांति फैलाने का प्रयास कर रही हैं और वे इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए माओवादियों को बढ़ावा देने में लगी हुर्इं हैं। भाजपा चाहती है कि सरकार माओवादी नेताओं के प्रति कतई नरमी न दिखाए। हम तथाकथित नागरिक अधिकार संगठनों से भी आग्रहपूर्वक कहना चाहते हैं कि वे इस घातक विचारधारा को वैधता का जामा पहनाने की कोशिश न करें। नि:संदेह, नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में गरीबों के उत्थान और भ्रष्टाचार मुक्त विकास के लिए किये जा रहे समस्त प्रयासों में तेजी लाना आवश्यक है।

उत्तर-पूर्व की स्थिति

भाजपा असम की स्थिति के बारे में भी चिंतित है। राज्य में जब आतंक फैलाने वाले और अलगावाादी तत्वों से सख्ती से निपटने की बात आती है राज्य सरकार ढीली पड़ने लगती है। असम के सम्बन्ध में, केन्द्र, राज्य सरकार और ऑल असम स्टूडेण्ट्स यूनियन के बीच हुए असम समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अद्यतन करने के लिए 31 मार्च, 2010 की तारीख निश्चित की गई थी। क्योंकि उक्त समझौते में इस बात पर विशेष बल दिया गया था कि (मतदाता सूची से) राज्य में अवैध रूप से आकर बसे लोगों का पता लगाया जाए, उनके नाम निकाल दिए जाएं और उन्हें उनके देश में वापस भेज दिया जाए। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अद्यतन करने की बात धोखे से अधिक कुछ नहीं है क्योंकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन आर सी) न तो कभी ठीक था और न ही अब सही स्थिति में है। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि एक नया एन आर सी बनाया जाए। केन्द्र और राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें इससे पहले कि असम की सीमाओं के अंदर एक और बांग्लादेश पैदा हो, और कितने समय तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेंगी ? हमारी यह मांग है कि सरकार और चुनाव आयोग यह सुनिष्चित करें कि आने वाले चुनाव में कोई बांग्लादेषी घुसपैठिया वोट न डाल पाये।

मणिपुर के लगातार आतंकवादी गुटों के चंगुल में बने रहने पर भाजपा का चिंतित होना स्वाभाविक है। यहां सरकारी मशीनरी पूर्णतया ठप्प हो गई है और जनजीवन भूमिगत आतंकवादियों द्वारा पंगु कर दिया गया है। जहां तक इस क्षेत्र में आधारभूत सुविधाएं विकसित करने का सम्बन्ध है, सरकार ने उत्तार-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय (DONER) बनाए जाने के बाद से अब तक कुछ भी नहीं किया है।

मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर भी दिलाना चाहता हूं कि सरकार के कमजोर रवैये ने हमारे आंतरिक सुरक्षा प्रतिष्ठानों की क्षमता और मनोबल पर नकारात्मक असर डाला है। यह चाहे जिहादी हिंसा हो या माओवादी हिंसा, राष्ट्र के सामने जो समस्या मुंह बाएं खड़ीं हैं उन पर बहस होनी चाहिए और एक सही निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए। हम यह पूछना चाहते हैं कि क्या उन पुलिसकर्मियों एवं सुरक्षा बलों के कोई मानवाधिकार नहीं है जो इन राष्ट्रविरोधी तत्वों से लड़ते हुए अपना जीवन बलिदान कर देते हैं?

विकास की समग्र नीति के अभाव में कमजोर पड़ता भारत

मित्रों, जब मैं समाज के अन्दर अशांति और कलह देखता हूं और यह देखता हूं कि किस तरह इन्हें जाति, धर्म, व जनजातीय, भाषायी या क्षेत्रीय पहचान बनाने की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो मैं अपने आपसे सवाल करता हूंं ”आखिर इन समस्याओं की जड़ में क्या है”? इस बारे में मैं दो निष्कर्षों पर पहुंच पाया हूं; पहला, यह कि इन सारी समस्याओं को उन गलत नीतियों एवं कुशासन ने जन्म दिया है जिनके आधार पर इस देश को स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही चलाया जा रहा है। दूसरा, निष्कर्ष यह है कि इन समस्याओं का समाधान समाज के किसी एक या दूसरे वर्ग को संतुष्ट करने की टुकड़ों में बंटी नीति के आधार पर नहीं किया जा सकता है। हमारा देश अनेकानेक विभिन्नताओं का देश है। हमारे समाज के हर वर्ग की आकांक्षाएं हैं। लेकिन इन आकंाक्षाओं को तभी पूरा किया जा सकता है जब ऐसी समग्र नीति अपनाई जाए जिसमें समस्त राष्ट्र का हित निहित हो। सृष्टि में हम सामंजस्य और संतुलन देखते हैं। तो क्यों नहीं मानव समाज में वैसा ही सामंजस्य और संतुलन स्थापित किया जा सकता?

व्यक्ति और समाज का सद्भावपूर्ण विकास पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ”एकात्म मानवतावाद” की विशिष्ट पहचान है; भाजपा इसे अपना पथप्रदर्शक मानती है। दुर्भाग्यवश, हमारे देश के नीति निर्माताओं के दृष्टिकोण में इसकी कोई झलक नजर नहीं आती। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही सबसे लम्बी अवधि तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने हमेशा उन नीतियों का पालन किया है जिनके कारण आज विकास में गंभीर असंतुलन दिखाई देता है। ये असंतुलन दोनों प्रकार के हैं- सामाजिक और भौगोलिक। आर्थिक समृध्दि की होड़ में हमारे लोगों को नैतिकता के मापदण्डों की अवहेलना करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है और इसमें धनी एवं प्रभावशाली लोग सबसे आगे हैं। भारत के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे पर इसका बहुत खराब प्रभाव पड़ रहा है।

भारत के विकास में असंतुलन को सुधारने का एक ही तरीका है कि अंत्योदय के सिध्दांत पर चला जाए अर्थात् घोर गरीबी को समाप्त किया जाए, प्रत्येक भारतीय परिवार को मूलभूत सुविधाएं दी जाएं, और यह सुनिश्चित किया जाए कि समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्तियों को भी जीवन में ऊपर उठने के अवसर प्राथमिकता पर प्राप्त हों। भारत में स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय तथा अन्य संत, एवं महापुरूषों ने इसी सिध्दांत पर बल दिया है। राजनीति में प्रवेश करने के बहुत पहले से, संत तुकाराम की इन पंक्तियों ने मेरे मन पर गहरी छाप अंकित कर दी थी। मैं आज भी इन पंक्तियों से प्रेरणा प्राप्त करता हूं।

जे का रंजले, त्सायी म्हाणे जो आपुले!

तोची साधु ओलखाव देव तेथेची जानावा!!

(वह जो दलितों, उत्पीड़ितों एवं दुखियों को अपना मानकर अपनाता है, एक सच्चा साधु या एक पवित्र पुरूष है। ईश्वर उसी पुरूष/महिला के अन्दर बसता है।)

इसलिए मैं अपनी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं, समर्थकों से आग्रह करता हूं कि वे स्वयं को अंत्योदय के आदर्श के प्रति पुन: समर्पित करें।

अंत्योदय

मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि हमने हाल ही में अंत्योदय नाम से एक नूतन अभियान शुरू किया है।

यह एक ऐसा अभियान है जिसमें सामाजिक सक्रियता के माध्यम से विकास के लिए राजनीति को प्रोत्साहित किया जाएगा। हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी के सभी कार्यकर्ता हमारी संगठनात्मक इकाइयां और प्रत्येक स्तर पर हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र में कम से कम एक सेवा और विकास परियोजना अवश्य चलाएं। इसके जरिए हमारे कार्यकर्ताओं को समाज के वंचित वर्गों तक पहुंचने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। हमारी सदैव यह सोच रही है कि राजनीति, सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन का एक साधन है। हम सभी लोगों से आज यह अपेक्षा है कि इस महान राष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति में सेवा के तत्व को पुन: शामिल करने का संकल्प उठाया जाए। अगर आप दृढ़संकल्प के साथ प्रयास करें तो आप सहज ही ऐसी गतिविधियों को अपना सकते हैं और अंतिम व्यक्ति की सेवा करने का संतोष प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए हम अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने हेतु पार्टी के अन्दर एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे, जो उनका मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उनके काम का आकलन भी कर सके। अंत्योदय अभियान की संकल्पना और कार्यप्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए एक ‘मोनोग्राफ’ प्रकाशित किया जा रहा है। हमने इस राष्ट्रीय परिषद की बैठक के आयोजन स्थल पर सेवा परियोजनाओं के कुछ कार्यों की प्रदर्शनी भी लगाई है।

इस लक्ष्य को तभी पूरी तरह हासिल किया जा सकता है जब लोगों को लाभप्रद एवं निर्वाहयोग्य जीविका प्रदान करने वाली अर्थव्यवस्था के बारे में एक सार्वजनिक नीति निर्धारित की जाए। भारतीय संदर्भ में, इसका मतलब यह है कि आर्थिक विकास की सफलता की परख इस आधार पर की जा सकती है कि क्या हमारी कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इतना पुनरून्जीवित कर दिया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक रोजगार एवं रहन-सहन के उत्कृष्ट साधन मुहैया कराए जा सकें। हमें स्वीकार करना होगा कि भारत इस कसौटी पर खरा नहीं उतरा है। शहरों और गांवों के बीच तेजी से बढ़ती खाई और शहरों के अन्दर असमानताओं का बढ़ते जाना भी चिंता का विषय बना हुआ है।

क्या यह गरीबी बढ़ाओ नहीं है?

इस सम्बन्ध में कांग्रेस की विफल नीतियों की पुष्टि आधिकारिक स्रोतों से हो रही हैं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार डा0 सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में बनी समिति ने हाल ही में यह खुलासा किया है कि भारत में गरीबों की संख्या 12 प्रतिशत से बढ़ गई है। और आगे यह बताया गया है कि ग्रामीण भारत में गरीबी 42 प्रतिशत है न कि 28 प्रतिशत जैसाकि पहले अनुमान लगाया गया था। इसकी तुलना इस तथ्य से करें कि हाल ही के वर्षों में भारत के धनाढय लोगों के एक छोटे से वर्ग की संपन्नता में चमत्कारिक वृध्दि हुई है। क्या यह इस चेतावनी का संकेत नहीं है कि नीति की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है?

ऐसी ही एक सच्चाई संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों सम्बन्धी विभाग के हवाले से सामने आई है, जो यूपीए सरकार के लम्बे-चौड़े दावों को झुठलाती है। यू.एन.डी.ई.एस.ए. के आंकड़ों से पता चलता है कि सिर्फ वर्ष 2009 में ही और 1.36 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए। इससे यह साबित होता है कि कांग्रेस के नेतृत्व में गठित सरकार ने ”गरीबी हटाओ” का लक्ष्य हासिल करने के बजाय, वास्तव में ”गरीबी बढ़ाओ” का लक्ष्य पाने में सफलता पाई है।

अनियंत्रित मूल्यवृध्दि से त्रस्त गरीब एवं मध्यम वर्ग

यह सरकार किसानों की आत्महत्याएं रोकने में पूरी तरह फेल हुई है। बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करने में इसकी असफलता ने महंगाई से पीड़ित हमारे देश के कमजोर वर्गों के जीवन को और दूभर बना दिया है। मैं यहां इस बात पर बल देना चाहता हूं कि केवल गरीब वर्ग ही सरकार की गलत नीतियों का शिकार नहीं बना है। अनिवार्य वस्तुओं के आसमान छूते दामों के कारण मध्यम वर्ग भी बहुत मुश्किल में पड़ा हुआ है। मई 2009 में हुए पिछले संसदीय चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री, डा0 मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि उनकी सरकार मूल्यों में कमी लाने के लिए 100-दिन की कार्य-योजना प्रस्तुत करेगी। लगता है प्रधानमंत्री अपना वादा भूल गए है। सच तो यह है कि यूपीए सरकार के सत्ता में लौटने पर दामों में जितनी अधिक वृध्दि हुई है उसकी मिसाल हाल के इतिहास में नहीं मिलेगी। ऐसा लगता है, मानों हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का मूल्यवृध्दि पर न तो कोई नियंत्रण रह गया है और न ही दामों को कम करने में उनकी कोई रूचि है। मुद्रास्फीति को रोकने के लिए कोई ठोस एवं कारगर कदम उठाने के बजाय सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ा रही हैं, जिसका पूरी अर्थव्यवस्था पर क्रमिक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। जहां आम आदमी की कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार ने अपने ही सहयोगियों पर दोष-मढ़ने का खेल खेलना शुरू कर दिया है-कांग्रेस के नेतागण मूल्य-वृध्दि के लिए एनसीपी नेता और कृषि मंत्री शरद पवार को दोष दे रहे हैं तो शरद पवार सरकार में बैठे दूसरे लोगों पर दोषारोपण कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में मंत्री-परिषद के ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के सिध्दांत को तार-तार कर दिया गया है। मूल्य वृध्दि को रोकने में सरकार की विफलता के लिए भाजपा देश के प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह और यूपीए की प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराती है। याद रहे कि केन्द्र में जब भी कांग्रेस की सरकार बनती है, कीमतें बढ़ती हैं और लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं, और जब भी गैर – कांग्रेस सरकार बनती है तो कीमतों में कमी होती है।

मैं यहां पर कमोडिटी एक्सचेंज घोटाले की ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूं जिससे मूल्यवृध्दि और बढ़ी है। साढ़े चार लाख करोड़ रूपए के व्यापार में कमोडिटी एक्सचेंज द्वारा 1 प्रतिशत से कम यानी साढ़े चार हजार करोड़ से कम की वास्तविक डिलीवरी दी गई। कमोडिटी एक्सचेंज की सट्टेबाजी तथा बाजार को अपने ढंग से चलाने की पध्दति के चलते गेहूं, शक्कर, चना, जीरा, आलू जैसी आवश्यक वस्तुओं की बनावटी कमी बनाई गई और इससे व्यापक मूल्यवृध्दि हुई। हमने इस महाघोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है।

पिछले आठ महीनों के दौरान यूपीए सरकार के कामकाज पर नजर डालें तो हर व्यक्ति के मन में कई प्रश्न उठते हैं। क्या यह सरकार वास्तव में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रित करना चाहती है? क्या यह सरकार किसानों की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने में सक्षम है? क्या यह सरकार बढ़ती बेरोजगारी को कारगर ढंग से रोक सकती है?

भारत के विकास और शासन के लिए एक नए मॉडल की आवश्यकता

मित्रों, चूंकि हम केन्द्र में विपक्षी दल हैं, अत: हमारा यह कर्तव्य है कि हम सरकार की गलत नीतियों का विरोध करें, उन्हें रोकेने की कोशिश करें। हम इस कार्य को पूरी ताकत से करेंगे। परंतु लोगों को हम से और अनेक अपेक्षाएं हैं। हमारी पार्टी केन्द्र में सत्ता में रह चुकी है और हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी पुन: सत्ता में आए, इसलिए हमारा यह भी कर्तव्य बनता है कि हम उन विविध समस्याओं का हल खोजें जिनका सामना भारत को करना पड़ रहा है। भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास से न तो लोग खुश हैं और न ही हम खुश हैं, क्योंकि विकास में असंतुलन की भरमार है, और शासन में घोर भ्रष्टाचार एवं अकुशलता व्याप्त है। जैसाकि मैं पहले कह चुका हूं, राष्ट्र के सामने मौजूद अधिकतर समस्याओं का जाति, वर्ण, भाषा या ऐसे ही दूसरे कारणों से कोई सरोकार नहीं है। उनकी जड़ तो विकास की गलत नीतियों और दोषपूर्ण शासन व्यवस्था में है। मैं यह बताना आवश्यक समझता हूं कि देश में आज 55000 मेगावाट उर्जा की कमी है और बारहवीं योजना में उर्जा उत्पादन के लिए हमारे पास कोयले का कोई भंडार नहीं है। यह उर्जा की कमी हमारे महान राष्ट्र के विकास को अवरूध्द कर रही है; और इसका कारण सरकार की अदूरदर्शिता है।

भारतीय जनता पार्टी, निस्संदेह एन.डी.ए. सरकार द्वारा की पहलों और उपलब्धियों पर गर्व करती है। अब चूंकि हमें केन्द्र में और राज्यों में सरकार चलाने का अनुभव प्राप्त है तो उस आधार पर हमें विकास और शासन व्यवस्था का एक वैकल्पिक मॉडल तैयार करना चाहिए, उसका प्रचार करना चाहिए और उसे कार्यान्वित करना चाहिए। मैं समझता हूं, पार्टी के समक्ष यह एक अत्यंत महत्चपूर्ण कार्य है।

इस विषय पर मैं आपके सम्मुख अपने कुछ विचार रखना चाहता हूं। 1947 से भारत अब बहुत आगे बढ़ चुका है; जब सोवियत मॉडल से प्रभावित होकर, सरकार द्वारा संचालित उद्यमों को राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पिछले छह दशकों में हमने भारत के उद्यमी वर्ग की क्षमताओं में व्यापक वृध्दि होती देखी है। इसी अवधि में हमने यह भी जाना कि सरकारें, कुल मिलाकर आर्थिक कार्यकलापों को दक्षता के साथ चलाने में विफल हुई हैं। अब हमें अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को नया रूप देकर पुराने मॉडल का पूरी तरह त्याग कर देना चाहिए। सरकार का काम है कुशल योजना बनाना, ठोस एवं स्पष्ट नियमों का निर्माण करना और उन्हें कारगर रूप से लागू करना। आर्थिक गतिविधियों को चलाने का वास्तविक कार्य गैर-सरकारी उद्यमों के जिम्मे छोड़ दिया जाना चाहिए।

जब मैं उद्यमों की बात करता हूं, तो मेरा अभिप्राय सिर्फ बड़ी कंपनियों से नहीं है। हमारे लघु और मध्यम स्तर के उद्यमों में असीम क्षमता है, जिसका दुर्भाग्यवश सरकार की काम करने संबंधी गलत एवं असंवेदनशील नीतियों ने गला घोंट दिया है। यहां तक कि सहकारी संस्थाओं की विशाल क्षमता का भी दमन कर दिया गया। इसके अलावा, सरकारी उद्यमों को भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के लिए चारागाह बना दिया गया है- जिसका प्रमाण है कि प्रधानमंत्री ने अपने सहयोगियों को नागरिक विमानन, दूर संचार, वस्त्र उद्योग, कोयला एवं खनन विभाग तथा अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रीय संसाधनों की लूट-खसोट करने की छूट दे दी है। इसके अतिरिक्त अनैतिक राजनीतिज्ञों तथा उच्च अधिकारियों ने कुछ भ्रष्ट उद्योगपतियों के साथ सांठ-गांठ कर ली है, जिसके कारण सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार और अपराधों को अत्यधिक बढ़ावा मिला है। दुर्भाग्य की बात है कि कानून लागू करने की जिम्मेवारी उठाने वाली एजेंसियां और न्याय प्रणाली से जुड़े कुछ लोग भी सम्भवतया इस सांठ-गांठ में लिप्त हैं। इस सांठ-गांठ को तोड़ना, स्वस्थ उद्यमिता को प्रोत्साहित करना और कानून-सम्मत तथा लोकोन्मुखी आर्थिक विकास सुनिश्चित करना ही सरकार का उद्देष्य होना चाहिए।

‘गांव चलो’ : भाजपा का नया विजन, तकनालॉजी -आधारित ग्रामोदय

भारत के लिए किसी वैकल्पिक आर्थिक प्रणाली की पहली अपेक्षा यह होगी कि कृषि एवं ग्रामीण विकास की सुनियोजित उपेक्षा को समाप्त किया जाए। ‘ग्रामोदय’ का लक्ष्य महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय दोनों को बहुत प्रिय था। कांग्रेसी नेताओं ने ग्रामीण भारत को सिर्फ सपने दिखाए; उन्होंने देहात की जरूरतों की न तो कोई परवाह की, और न ही उसकी क्षमता को वास्तव में समझने का प्रयास किया। आज की सबसे पहली अपेक्षा यह है कि सरकारी नीतियों में अनुकूल परिवर्तन किए जाएं ताकि कृषि और आधारभूत संरचना में भरपूर सार्वजनिक एवं निजी निवेश को बढ़ावा मिले। किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को कम लागत और आसान शर्तों पर पूंजी प्रदान की जाए ताकि भू और जल संसाधनों में वृध्दि हो सके, स्थानीय रुप से कृषि प्रसंस्करण उद्यमों को महत्व देने की व्यवस्था की जा सके, भण्डारण और विपणन तथा संचालन सुविधाओं का निर्माण किया जा सके और अधिक पैदावार देने वाले खेती के तरीकों को अपनाया जा सके, जैसे की विज्ञान और तकनीक पर आधारित जैविक खेती। मूलभूत सुविधाओं का निर्माण करने के कई कार्य सरकार के अकुशल विभागों से निकाल कर ग्रामीण उद्यमियों को सौंपे जा सकते हैं जिनकी देख रेख करने के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों को वही प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो शहरी क्षेत्रों को दी जाती है।

विकास और शासन-प्रणाली की वैकल्पिक व्यवस्था में एक और महत्वूपर्ण अपेक्षा पर मैं बल देना चाहूंगा। संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के बारे में कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनी पीठ थपथपाए जाने के बावजूद, पंचायती राज संस्थाओं और नगर-पालिकाओं के प्रभावी वित्ताीय एवं प्रशासनिक सशक्तिकरण के लिए अब तक कुछ भी नहीं किया गया है। अत: मेरा यह विचार है कि केन्द्रीय कर-राजस्व का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा सीधे ही ग्राम पंचायतों एवं नगर-पालिकाओं को आवंटित किया जाए। इसी प्रकार, स्पेशल कम्पोनेट प्लान के अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों हेतु जनजाति उप-योजना के लिए पूंजी मुहैया कराई जानी चाहिए और इन निधियों का उपयोग इन समुदायों के कल्याण तथा लोकतांत्रिक कार्यों में उनकी प्रतिभागिता सुनिश्चित करते हुए किया जाना चाहिए।

पार्टी के सम्मानित साथियो, मैं ग्रामीण भारत के विकास की क्षमता की बात सिर्फ किताबी ज्ञान से नहीं, बल्कि अपने व्यवहारिक व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कर रहा हूं। उदाहरण के लिए, कुछ जनजाति क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन तथा वन्यप्राणी पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय उद्यमियों द्वारा वहां अच्छी सड़कों एवं होटलों का निर्माण किया जा रहा है। यह प्रमाणित हो चुका है एक गाय, एक नीम का पेड़ और एक परिवार संपूर्ण रूप से एक आर्थिक व्यवहारिक एकक हो सकता है।

भारत के वैकल्पिक विकास मॉडल का लक्ष्य होना चाहिए – ”गांव चलो।” अच्छी सड़कें, यातायात के सार्वजनिक साधन, विश्व-स्तर की संचार और सूचना प्रौद्योगिकी सुविधाओं की उपलब्धता, 24×7 बिजली सप्लाई, जल तथा अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, कुशल वित्तीय सेवाऐं और बाज़ार से सम्पर्क की सुविधाओं से ग्रामीण भारत की तस्वीर एकदम बदल जाएगी। इससे ग्रामीण भारत में नए प्रकार के बहुत ही कुशल और अत्यधिक महत्वपूर्ण उद्यमों को बढ़ावा मिलेगा। 21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी, बायो-तकनालॉजी, नानो-तकनालॉजी और ऊर्जा की बचत तथा सामग्री की बचत करने वाले वैज्ञानिक आविष्कारों से उत्पादन एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों का विकेन्द्रीकरण तथा वितरण होगा। पर्यावरण की रक्षा करने की बाध्यता ने इसे वैश्विक आवश्यकता बना दिया है। अत: हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो इस कार्य को गति दे सकें। हमें न केवल ग्रामीण लोगों को शहरों की ओर पलायन करने से रोकना होगा बल्कि हमें ऐसी वास्तविक स्थितियां पैदा करनी होंगी कि शहरी लोग भारत के आधुनिक गांवों में जाएं और वहां रहने लगें। भाजपा इस नए सपने को साकार करने का अग्रदूत बन सकती है; 21वीं सदी की यही मांग है और हमें उसे पूरा कर दिखाना है।

असंगठित श्रमिकों की व्यथा

मित्रो, मैं अब असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की समस्याओं की बात करना चाहता हूं। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतीहर मजदूरों और फेरीवालों, टैक्सी एवं रिक्शा चलानेवालों, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों, कुलियों ओर विक्रेताओं को अपना गुजारा करने और अस्तित्व बनाए रखने के लिए अनगिनत कठिनाइयों से गुजरना पड़ रहा है। भाजपा यह महसूस करती है कि उनके दु:ख तकलीफों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। मैं उन परम्परागत कारीगरों, विशेषकर विश्वकर्मा समुदाय के पांच उप-समुदायों अर्थात् लुहारों, बढ़ई, कांसा/तांबा ढालने वालों, मूर्तिकार और सुनारों के बारे में कुछ कहना चाहता हूं, जिन्हें भगवान विश्वकर्मा का वंशज माना जाता है। हस्तषिल्प विकास के लिए केन्द्र सरकार की बहुत सी योजनाएं है किन्तु परम्परागत कारीगरों के हितों पर वास्तव में कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अत: चूंकि खेतीहर मजदूरों के बाद यह सर्वाधिक बड़ा वर्ग है, इसलिए उनकी शिकायतों को निपटाया जाना चाहिए।

सुशासन की हमारी उपलब्धियां

मित्रों, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि भाजपा के नेतृत्व में चल रही राज्य सरकारें वास्तव में अंत्योदय के सपने को साकार करने की दिशा में बढ़ रही हैं। गुजरात ने अपने गांवों को 24X7 बिजली सप्लाई करने में सफलता पाई है। इस राज्य ने हाल ही में गरीब कल्याण मेलों के आयोजन का एक सराहनीय कदम उठाया है। बिहार ने भी एनडीए की सरकार के तहत अपने यहां बहुत अच्छी प्रगति की है। मध्य प्रदेश में, लाडली लक्ष्मी तथा ऐसी ही अन्य कई योजनाओं ने शानदार सफलता हासिल की है। छत्ताीसगढ़ सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने में जो महती कार्य किया है, उसकी भी प्रशंसा की जानी चाहिए। कर्नाटक सरकार, सम्भवतया देश की पहली सरकार है जिसने विजन 2020 योजना बनाकर, उस पर कार्यान्वयन भी शुरु किया है। इसी प्रकार भाजपा शासन के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश पहला ‘कार्बन-न्यूटरल’ राज्य बनने जा रहा है, जबकि उत्ताराखण्ड ऊर्जा उत्पादन की महात्वाकांक्षी योजनाओं पर अमल कर रहा है। पंजाब में भी हम नए विकास कार्यक्रमों की पहल कर रहे हैं और हम आशा करते हैं कि हमारी नई झारखण्ड सरकार भी अच्छा काम करेगी। लेकिन इन सफलताओं का अर्थ यह नहीं है कि हम आत्मसंतुष्ट होकर बैठ जाएं। हमें अपने कार्य में निरंतर सुधार करते रहना होगा। अगर गैर-भाजपा शासित राज्यों में कुछ अनुकरणीय पहल दिखती है तो हमें उसे अपनाने से परहेज नहीं करना चाहिए।

कुछ नई पहलें

अब मैं कुछ नए कार्यक्रमों की चर्चा करना चाहता हूं जिन्हें पार्टी संगठन में आरंभ करने की हमारी योजना है।

1- हम प्रत्येक स्तर पर हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं, पार्टी के अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों की क्षमताओं का निर्माण करने के उद्देश्य से एक बड़ा राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने जा रहे हैं। इस प्रशिक्षण महा-योजना को शीघ्र ही अन्तिम रूप दिया जाएगा। मेरी अपेक्षा है कि पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो और परिणामोन्मुखी तरीके से पार्टी में सेवा करे। पार्टी के सभी स्तरों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक व्यापक पाठयक्रम भी शीघ्र ही तैयार किया जाएगा। बहुत शीघ्र हम ई-प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू करने जा रहे हैं। मैं यहां यह बता देना चाहता हूं कि पार्टी आगे से जिम्मेदारी देते समय कार्यकर्ताओं की क्षमता एवम् उनके कार्य निष्पादन को महत्व देने वाली है, अत: यह सभी के हित में है कि कार्यकर्ता शीघ्रातिशीघ्र प्रशिक्षित हों। मैं सभी राज्य इकाइयों से अनुरोध करता हूं कि वे अपने यहां पार्टी में प्रशिक्षण केन्द्रों के साथ-साथ अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करें।

2- हम अपनी पार्टी के सभी स्तरों पर पदाधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के कार्य की भी समीक्षा करेंगे। अच्छा काम करने वालों को सम्मानित किया जाएगा। सर्वश्रेष्ठ काम करने वाले सांसद, विधायक या विधान परिषद के सदस्य और नगर पार्षद तथा सरपंच को भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की योजना है। इस योजना का विस्तृत विवरण शीघ्र ही प्रस्तुत किया जाएगा। एक ओर जब कार्य करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा, तब कार्य न करने वालों को प्रेरणा भी मिलेगी। जैसाकि मैंने पहले संकेत दिया कि हमारी पार्टी में सभी की प्रगति, उसकी कार्य निष्पादनता पर निर्भर होगी। अत: मैं सभी पार्टी संगठन इकाइयों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और अपनी सरकारों को उनकी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने का सुझाव दे रहा हूं। ऐसी रिपोर्टों से न केवल वृह्तर उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करने में सहायता मिलेगी अपितु इससे पार्टी इकाइयों को अपना आकलन करना सम्भव करना होगा।

3- हम ‘फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी’ को पुन: शुरू करने वाले हैं; यह एक ऐसा मंच है जिसमें भाजपा के गैर-सदस्यों, हितैषियों को शामिल किया जाता है। सभी राष्ट्रभक्त नागरिक इस मंच में शामिल हो सकते हैं जो यह मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी भारत को एक जीवंत गणराज्य बनाने को सही मायने में आगे ले जा सकती है।

4- अपनी पार्टी को सषक्त बनाने के लिए हम सभी आधुनिक संचार सुविधाओं का उपयोग भी करेंगे। हमें इसका अहसास है कि तकनालॉजी की भी अपनी सीमाएं हैं। यह व्यक्तिगत सम्पर्क का स्थान नहीं ले सकती। फिर भी, हम एक परियोजना क्रमिक तौर पर आरंभ करेंगे, जिसे हमने ‘लोक संग्रह के लिए तकनालॉजी’ परियोजना का नाम दिया है। इसके जरिए हम युवा पीढ़ी तक पहुंचने का प्रयास करेंगे क्योंकि वे इस सुविधा का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं। अगर हम यह सुविधा उन्हें मुहैया करा दें, तो इसका उपयोग करके वे हमारे राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल हो सकेंगे।

5- मैं अपनी सभी राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे अपनी युवा विकास योजनाओं पर ध्यान दें ताकि ये योजनाएं युवाओं को अधिक रोजगार क्षमतावान, कुषल व समर्थ बना सकें।

6- मुझे गर्व है कि भारतीय जनता पार्टी एकमात्र पार्टी जिसमें महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है बावजूद इसके कि देष में महिला नेतृत्व वाली कई पार्टियां मौजूद हैं। पर यह आरक्षण ही काफी नहीं। हम सभी को यह सुनिष्चित करना होगा कि महिलाओं को और अधिक जिम्मेदारी मिले और हर कदम पर उनकी सहायता की जाए ताकि वे समर्थ बने। महिला सषक्तिकरण से ही सषक्त समाज की कल्पना साकार होगी।

7- समाज-नीति और संगठन में भी राष्ट्रवाद, विकास, गरीबी उन्मूलन, नैतिक मूल्य एवं अनुषासन यह हमारे नींव के पत्थर होंगे। हम संगठन में सामूहिक भाव से चलेंगे परन्तु अनुषासनहीनता सहन नहीं की जाएगी। ध्यान रहे कि लोग हमें परम्परागत मूल्यों वाली पार्टी के रूप में देखतें है। अत: हम भ्रष्टाचार को कतई बर्दाशत नहीं करेंगे।

अयोध्या में भव्य राममंदिर

भाजपा अयोध्या में भव्य भव्य राममंदिर बनाने के लिए कृत संकल्प है। इस हेतु एक राष्ट्रीय आंदोलन हो चुका है जिसमें अनेक कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहूति दी है। हालांकि न्यायालय में यह प्रकरण विचाराधीन है किन्तु न्यायालय द्वारा इसका संतोषजनक हल संभव नहीं लगता क्योंकि इसमें कोई जीतेगा तो कोई हारेगा। आज इस मंच से मैं, अपने मुस्लिम भाईयों से अपील करता हूं कि वे हिन्दुओं की भावनाओं के प्रति सहृदयता का परिचय देते हुए भव्य राम मंदिर बनाने का पथ प्रशस्त करने हेतु वे आगे आएं। इससे देष में भाईचारे एवं विकास के एक नये युग का सूत्रपात होगा।

भाजपा का भारत विज़न 2025

मैं कह सकता हूं कि भारत के पास प्राकृतिक और मानवीय सभी संसाधन मौजूद हैं, जिनके बलबूते पर यह देश पूर्ण विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम है। हम अपने साधनों का उपयोग करके बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं, स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाएं दे सकते हैं, सबके लिए घर व रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं और भारत के सौ करोड़ से अधिक लोगों को उज्जवल भविष्य दे सकते हैं। यदि ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है तो इसका एक ही कारण समझ में आता है – अच्छी नीतियों एवं सुशासन का अभाव। लेकिन भाजपा के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि गलत नीतियों का पालन करने के लिए दूसरों की बस आलोचना करते रहें; हमें उनकी जगह बेहतर नीतियां प्रस्तुत करने के लिए आगे आना होगा। हमें देश के समक्ष खड़ी समस्याओं के बारे में ही चर्चा नहीं करनी है, बल्कि उन समस्याओं से निपटने के लिए व्यावहारिक एवं कारगर समाधान प्रस्तुत करने में भी अग्रणी भूमिका निभानी होगी। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों का एक समूह गठित करने का निर्णय किया है जिसे भारत विजन-2025 (2025 का भारत) दस्तावेज तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इस समूह में पार्टी के वरिष्ठ नेता होंगे जिन्होंने केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है और वे भी रहेंगे जो राज्य सरकारों में मुख्यमंत्री, मंत्री के रूप में कार्यरत हैं या इन पदों पर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा सांसदों, विधायकों और मेयरों के साथ-साथ विषय का विशिष्ट ज्ञान रखने वाले लोगों को भी शामिल किया जाएगा जो भाजपा के समर्थक हैं। मैं सभी से अपील करता हूं कि वे इसके लिए अपने सुझाव भेजें।

इस अवसर पर आप सबसे मैं यह निवेदन भी करना चाहता हूं कि समाज के वंचित वर्गों-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों तक अपनी पूरी पहुंच बनाने में कोई कसर न छोड़ें। लोग उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो उनके दुखड़ों को सुनें और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में मददगार बन सकें। वे अवश्य ही हमसे जुड़ना चाहेंगे बशर्ते कि हम सही तरीके से उनके पास पहुंचे। याद रखें, इस बार हम असफल नहीं हो सकते। आइए हम मिलकर यह संकल्प करें कि नई पहल, नई शुरूआत के द्वारा अपने वोटों की हिस्सेदारी में कम से कम 10 प्रतिशत की वृध्दि करें।

हमें याद रखना चाहिए सबके सिर्फ सोचने भर से भारत एक महाशक्ति नहीं बन जाएगा। इसे सच साबित करने के लिए हमें अथक परिश्रम करना होगा। सार्वजनिक जीवन में आने की प्रेरणा या उद्देश्य का पुनरावलोकन करना होगा। हम सिर्फ यही क्यों चाहते हैं कि पार्टी में कोई पद मिल जाए, चुनाव में खड़े होने के लिए एक टिकट मिल जाए या मंत्रालय में कोई पद प्राप्त हो जाए आदि-आदि। क्या हम इससे भी उच्चतर उद्देश्य और राजनीति से भी अधिक शक्तिशाली किसी लक्ष्य से प्रेरणा प्राप्त नहीं कर सकते ? जैसे कि अपने वंचित बंधुओं के चेहरों पर मुस्कान लाना, किसानों की उस व्यथा का अन्त करना जिसके कारण हजारों किसानों को आत्महत्या करने पर बाध्य होना पड़ा, उस कुपोषण को समाप्त करना जिसकी वजह से हजारों जनजाति बच्चे मर रहे हैं, हमारे प्रतिभाशाली युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना। क्या भारत को फिर से ऐसा जाग्रत राष्ट्र बनाना लक्ष्य नहीं हो सकता जो हमें अभिप्रेरित कर सके?

मेरे प्रिय सहयोगियों, आगे का रास्ता आसान नहीं है। मार्ग में अनेक चुनौतियां हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख मैं पहले ही कर चुका हूं। हमें जल्दी सफलता की आशा नहीं करनी चाहिए, न ही सिर्फ उस उद्देश्य से काम करना चाहिए। अस्थायी असफलताओं से हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। तत्काल मिली उपलब्धियों से हमें अति उत्साहित भी नहीं होना चाहिए। हमारी सफलता की कसौटी यह होगी कि हम भारत को चहुंमुखी प्रगति के मार्ग पर ले जाने में कितना अधिक और कितनी जल्दी निर्धारित दिशा में बढ़ते हैं ताकि भारत अपना खोया गौरव एवं महानता पुन: प्राप्त कर सके।

हमें ऐसे भारत का निर्माण करना है, जो भूख से मुक्त हो, भय और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, और विषमता एवं हर प्रकार के अन्याय से भी मुक्त हो। हम भारत को स्वावलम्बी, सामर्थ्यवान और पराक्रमी बनाना चाहते हैं। हम ऐसा भारत बनाना चाहते हैं जिसके अन्दर शांति और सद्भाव हो और जो पूरे विश्व में शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे। एक ऐसा भारत जिसकी प्राचीन बौध्दिक-भौतिक शक्ति, सांस्कृतिक आलोक, सभ्यताजन्य प्रतिभा और आध्यात्मिक बल से पुन:र्जीवित करके जिसे नई अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक ले जाया जा सके।

. . . .याद रहे कि 21 वीं सदी निर्विवादित रूप से हिन्दुस्तान की है, हमारी महान भारतमाता की है !

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