Thursday, February 25, 2010

लोक लुभावन रेल बजट

लोकसभा में पेश ममता बनर्जी के लोक लुभावन रेल बजट को विपक्ष के नेताओं ने भले ही पश्चिम बंगाल केन्द्रित कह कर उसका विरोध किया हो पर वे भी इसे 'जन विरोधीÓ बजट नहीं कह सके. निश्चय ही यह रेल मंत्री ममता बनर्जी के लिये एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने सीमित संसाधनों के बाद भी बिना यात्री तथा माल भाड़ा बढ़ाए न सिर्फ समाज के लगभग सभी तबके के हितों की चिंता की, बल्कि उसकी झलक को व्यापक करने का प्रयास भी किया.
दरअसल, ममता बनर्जी के सामने एक कठिन चुनौती थी. मंदी के दौर से उबर रहे देश व बढ़ती महंगाई के बीच सीमित संसाधनों में उन्हें ऐसा बजट पेश करना था जो सत्ता पक्ष को बेहतर राजनीतिक फायदा दिला सके. बजट का पश्चिम बंगाल केन्द्रित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लोकसभा चुनाव में बेहतर सफलता हासिल कर रेल मंत्रालय पर उनके काबिज होने के बाद ही यह कयास लगाये जाने लगे थे कि ममता बनर्जी की निगाहें कहीं और हैं. वस्तुत: वे पश्चिम बंगाल की सत्ता से विगत 30 वर्षों से आरूढ़ माकपानीत वाम मोर्चा को सत्ताच्युत कर खुद उस पर काबिज होना चाहती है. पश्चिम बंगाल में विपक्ष की भूमिका में रहते हुए मतदाताओं को लुभान की बहुत अधिक गुंजाइश नहीं थी. उग्र आंदोलन के जरिये उन्होंने लगातार वहां अपनी पार्टी को ताकतवर बनाया. अब रेल बजट के जरिये उन्होंने वहां के मतदाताओं को लुभान का काम तेज कर दिया है. अगले वर्ष वहां विधानसभा चुनाव हैं. इससे उनकी मंशा जाहिर हो जाती है. इस क्रम में भाकपा नता गुरुदास दासगुप्ता की यह टिप्पणी गौरतलब है कि 'बंगाल मं आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए बजट तैयार किया गया है. ऐसा लगता है कि यह राजनीतिक इरादे से तैयार किया गया है.Ó कहते हैं कि जाकी रही भावना जैसी... इसके पूर्व लालू प्रसाद व नीतीश कुमार के रेल बजट को भी 'बिहार केन्द्रितÓ कह कर उसकी आलोचना की गयी थी. काफी दबाव के बाद भी यात्री व माल भाड़े में बढ़ोत्तरी नहीं करना बल्कि खाद्यान्न किरासन एवं उर्वरकों के किराये में प्रतीकात्मक ही सही थोड़ी कटौती कर राहत देना उनकी मंशा को उजागर कर देता है. 'मातृभूमि स्पेशलÓ के नाम से 21 विशेष रेल गाडिय़ों का परिचालन, 'महिला वाहिनीÓ नाम से महिला रेल सुरक्षाकर्मियों की 12 कंपनियां गठित करने, महिला हॉस्टल व महिला रेल कर्मियों के बच्चों के लिये क्रेज खोले जाने, रेलवे परीक्षाओं में शामिल होने वाली महिलाओं के लिये फॉर्म फीस माफी की घोषणा कर उन्होंने देश ीक आधी आबादी के हितों की वाजिब चिंता की है.
दूरंतों टे्रन की संख्या बढ़ाने, ई-टिकट पर सरचार्ज घटाने, पर्यटकों के लिए विशेष रेल चलाने, कैंसर रोगियों के लिये किराया माफ करने, युवाओं के लिये रोजगार का अवसर बढ़ाने एवं मुंबई उप नगरीय रेल सेवा को व्यापक बनाने समेत समाज के विभिन्न वर्गों के लिये उन्होंने रेल बजट में जो प्रावधान किया है उससे आम यात्रियों को राहत ही मिली है. अत: इसमेें राजनीति की बू देखते हुए इसके विरोध का कोई औचित्य नहीं है. रेल लाइनों का विस्तार, रेलवे की खाली पड़ी जमीनों पर स्कूल अस्पताल खोलने की दिशा में पहल समेत अन्य कई घोषणाओं की बरसात कर ममता बनर्जी ने आम लोगों का मन जीत लिया है.
स्वभावत: इसमें कई घोषणाएं पूर्व का दोहराव होगी. कई घोषणाओं को लेकर यह सवाल पूछा जा सकता है कि उसके लिये संसाधन कहां से जुटाये जाएंगे तथा इसके बिना उसे जमीन पर कैसे उतारा जा सकेगा. ऐसे अनेक किन्तु-परन्तु से जुड़े सवाल उठाकर रेल मंत्री को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है. किसी भी घोषणा से देश के सभी क्षेत्र के लोगों को खुश कर पाना संभव नहीं है. बिहार व झारखंड की अपेक्षाएं उनसे कहीं अधिक थी. यह उम्मीद की जा रही थी कि पूर्व रेलमंत्रियों द्वारा पहले की जा चुकी घोषणाओं को लागू करना जारी रखते हुए वह कुछ और उसमें अपनी ओर से जोड़ेंगी पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ. झारखंड को तो सचमुच अपेक्षा से काफी कम मिला बल्कि कहें कि इसे महज झुनझुना थमा दिया गया अकूत प्राकृतिक संसाधनों ेस मुक्त बन, खदान, उद्योग बहुल इस क्षेत्र ेक तेज विकास के लिये रेलमंत्री से काफी अपेक्षाएं थीं पर ऐसा कुछ नहीं मिला और जो मिला उससे 'ऊंट के मुंह में जीराÓ वाली उक्ति ही चरितार्थ होती है. इससे झारखंड वासियों की नाराजगी स्वाभाविक है. बल्कि सच तो यह है कि झारखंड को कुछ लाभ मिला भी तो वह महज पश्चिम बंगाल का पड़ोसी होने के कारण मिला. अब कुछ और गाडिय़ां यहां से होकर गुजरेंगी, निश्चय ही यह पर्याप्त नहीं है. रेलमंत्री को अपना राजनीतिक हित साधने से अधिक विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते ही बजट प्रावधान तय करना चाहिए था. अब भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है. महज मनमोहक रेल बजट काफी नहीं है यह रेलवे के दीर्घकालिक हितों एवं तेज गति से विकास पथ पर अग्रसर देश की जरूरतों के अनुरूप हो, यह भी जरूरी है. पल लगता है मौजूदा आर्थिक, राजनीतिक हालातों के मद्देनजर रेलमंत्री ने राजनीतिक हितों को अधिक अहमियत दी क्यों? इसे समझना कठिन नहीं है.

2 comments:

Anonymous said...

And Concession in Examination Fees For Minority Students (Muslims & Christians). The RangNath & Sachchar Effect on Rail Budget Too.

February 26, 2010 at 12:19 AM
Anonymous said...

इस रेल बजट का विशेष आकर्षण: अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को रेलवे परिक्षा में फीस माफ़. आगे-आगे देखते जाओ परिक्षा भी माफ़ हो जायेगी. लगता है ममता भी कोंग्रेस की राह पे निकल पडी है, और केंद्र की कोंग्रेस सरकार सच्चर व रंगनाथ कमीशन की सिफारिशे गुप्त रूप से लागू करने को जुट गयी है. शायद सोये हुए हिन्दुओं के खाते में सिर्फ टैक्स भरना ही है! रियायते और सुविधाएं तो सिर्फ वोट बैंक को ही मिलेगी (वो भी टकसा चोरी करनेवाले काम करके) जय हो सेकुलरिज्म.

February 26, 2010 at 2:03 PM

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