मेरे प्यारे भाइयों, बहनों और प्रतिनिधि बंधुओं
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की इस बैठक में आपके समक्ष मैं अत्यंत हर्ष, विनम्रता एवं गर्व का अनुभव कर रहा हूं। व्यक्ति के जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब वह अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाता, शब्द कम पड़ जाते हैं। मेरे जीवन में आज यह ऐसा ही एक महत्वपूर्ण क्षण है।
मैं आपके उत्साह एवं जोश की उमड़ती लहरों को महसूस करके प्रसन्न हूं। आप अपने साथ न केवल आशाएं और आकांक्षाएं लेकर आए हैं बल्कि हमारे इस महान देश के कोने-कोने से हमारी पार्टी के लाखों-करोड़ों कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों के समर्पण एवं निश्चय की भावना भी साथ लाए हैं। आपमें मातृभूमि की सेवा करने का वही दृढ़संकल्प मुझे दिख रहा है जो मैंने युवा पार्टी कार्यकर्ता के रूप में 1980 में मुंबई में आयोजित भाजपा के स्थापना सम्मेलन में भाग लेते समय देखा था।
राष्ट्रीय परिषद ने मुझ में अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त करके मुझे अभिभूत कर दिया है। मैंने कभी यह आशा नहीं की थी कि एक दिन मुझे इस महान दल के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व ग्रहण करने के लिए कहा जाएगा। मैं जानता हूं , और मैं बिना किसी संकोच के यह कहना चाहूंगा कि हमारी पार्टी में नेतृत्व की अपेक्षित क्षमता रखने वाले व्यक्तियों की कोई कमी नहीं है। अनेक नेतागण हैं जो इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाल सकते थे फिर भी, पार्टी नेतृत्व और आप ने इस पद के लिए सर्वसम्मति से मुझे चुना। पार्टी के एक अनुशासित सिपाही के रूप में, मैें इस उत्तरदायित्व को एक मिशन के रूप में स्वीकार करता हूं।
इस अवसर पर मैं असीम गौरव का अनुभव इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्षता करने का सम्मान एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जो मूलत: एक कार्यकर्ता है। मैं किसी राजनीतिक परिवार से भी नहीं हूं। मेरा जन्म नागपुर में एक साधारण परिवार में हुआ। मैंने राष्ट्रभक्ति एवं समाज सेवा का पहला पाठ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सीखा।
कार्यकर्ताओं की पार्टी
मैं जब यह कहता हूं कि अपनी आरंभिक किशोरावस्था में वार्ड स्तर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में जनसंघ के लिए प्रचार किया करता था, तो इसमें कोई नई बात नहीं है। हमारे बीच यहां उपस्थित बहुत से लोगों ने दीवारों पर नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने जैसी गतिविधियों में शामिल होकर अपने जीवन की शुरूआत की है। याद रहे कि मुम्बई जैसे नगरों में भीड़भरी रेलगाड़ियों में सफर करना आप और मेरे जैसे व्यक्ति के लिए रोजाना का काम है, क्योंकि हम सभी सामान्य नागरिक हैं जो साधारण यात्रियों की दैनिक पीड़ा को दैनिक जीवन में देखते और अनुभव करते रहे हैं।
मेरे राजनीतिक जीवन की यात्रा किसी भी रूप में असाधारण नहीं है। वास्तव में, भाजपा के सभी पूर्ववर्ती अध्यक्ष समर्पित कार्यकर्ता थे जो निचले स्तर से अपने काम के बलबूते पर ऊपर उठे। इसलिए, मैं ऐसा नहीं मानता हूं कि पार्टी का अखिल भारतीय अध्यक्ष बनना व्यक्तिगत रूप से मेरा सम्मान है, बल्कि यह भाजपा की उस गौरवशाली परंपरा का सम्मान है जिसके चलते इसे कार्यकर्ताओं की पार्टी माना जाता है, न कि कोई ऐसी पार्टी जिस पर किसी एक परिवार या खानदान का कब्जा हो। भारत में भाजपा को इसी कारण अधिकतर राजनीतिक पार्टियों से अलग देखा जाता है क्योंकि उन पार्टियों में उच्चतम पद पर कब्जा किसी एक परिवार विशेष के सदस्यों का जन्मसिध्द अधिकार समझा जाता है। भाजपा इसलिए लोकतंत्र के आदर्शों के प्रति दूसरों से अधिक वचनबध्द है। यही वह आधार है, जिससे हम भाजपा को अन्य दलों की तुलना में विशिष्ट पहचान वाली पार्टी कहते हैं।
हमारी शानदार विरासत : डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बलिदानमैं, सर्वप्रथम डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अमर स्मृति को अपनी हार्दिक एवं भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित करना चाहता हूं, जिनके जीवन और सीखों से हमने उस समय से प्रेरणा पाई है जब 1951 में हमारी राजनीतिक यात्रा भारतीय जनसंघ के जन्म के साथ शुरू हुई थी। उनकी दूरदृष्टि आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रही है और सदा करती रहेगी।
”एकात्म मानव दर्शन” या ”इन्टीग्रल हयुम्निज़म” के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय हमारे दृष्टा संस्थापकों में से एक हैं उन्होंने ही यह स्थापित किया कि राष्ट्रवाद और वंचितों का उत्थान-मिलकर समाज के सभी वर्गों के लिए एक सघन राजनीतिक दर्शन हो सकता है। अपने अथक प्रयासों से उन्हाेंने सभी देशभक्तों के एक राजनीतिक दल के लिए विशिष्ट स्थान निर्माण किया।
आज मैं अपनी पार्टी के दो शीर्षस्थ नेताओं का आशीर्वाद पाना चाहता हूं जिन्हें मैंने हमेशा अपना आदर्श माना है- भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी, जिन्होंने पार्टी के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है। आदरणीय श्री अटलजी अपनी उम्र और स्वास्थ्य के चलते अब पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पा रहे। तथापि, राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति विवेकपूर्ण एवं संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जो समझ उनसे हमें मिली है, उनके व्यक्तित्व को जो व्यापक सराहना प्राप्त है और भारत के सर्वोत्ताम प्रधानमंत्रियों में से एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रनिर्माण में जो विशाल योगदान किया है वह भाजपा के लिए सदैव शक्ति एवं गौरव का स्रोत रहेगा। आप सबके साथ मैं भी उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करता हूं।
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आदरणीय श्री आडवाणीजी से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता हूं। जनसंघ के गठन के साथ जिनकी राजनीतिक यात्रा आरंभ हुई और जिन्होंने पिछले छह दशकों में राष्ट्रीय राजनीति की लगभग सभी प्रमुख घटनाओं को न केवल देखा है बल्कि उनमें स्वयं सक्रिय रूप से भाग लिया है, वह श्री आडवाणीजी भारतीय जनता पार्टी के अतीत और वर्तमान को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में हमारे साथ हैं, हमारे पास हैं। वे जिस समर्पण, नि:स्वार्थता और अथक सेवा भावना से काम करते हैं, वह राजनीति की नई पीढ़ी के लिए एक अद्वितीय उदाहरण हैं।
मेरे पूर्ववर्ती अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंहजी के प्रति मैं हृदय से अपना आभार एवं सम्मान प्रकट करता हूं। उन्होंने ऐसे समय में पार्टी को सफल नेतृत्व प्रदान किया जब हमारे संगठन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। मैं समस्त पार्टी की ओर से उनकी सराहनीय सेवाओं के प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूं।
आज मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मैं कृतज्ञता के साथ पार्टी के उन अनेक महान नेताओं का स्मरण करूं जो अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जिनसे मुझे प्रेरणा, प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। मैं स्वर्गीय श्री कुशाभाऊ ठाकरे, और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के प्रति सम्मान और आदरांजलि अर्पित करता हूं। मैं उन अनगिनत सामान्य कार्यकत्तर्ााओं को भी श्रध्दासुमन अर्पित करता हूं जिन्होंने पार्टी के हित के लिए अपने जीवन की आहूति दे दी। इस अवसर पर, मैं पार्टी के उन हजारों-हजार कार्यकर्ताओं का भी अभिनन्दन करना चाहता हूं जो अनेक वर्षों से बगैर किसी पद की अपेक्षा रखे पार्टी के कार्य में जुटे हैं।
मैंने सभी बड़े नेताओं एवं आदर्श कार्यकर्ताओं से वह नीति-मंत्र सीखा है जिससे उनका जीवन प्रेरित था: पहले राष्ट्र, फिर पार्टी और अंत में स्वयं। यह मंत्र हमारा मार्गदर्शी सिध्दांत रहा है, और आगे भी रहेगा। मैं पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं से आग्रह करता हूं कि वे इस सिध्दांत का पालन करें, क्योंकि सिर्फ इसी पर चल कर हम लोगों के अधिक अच्छे सेवक बन सकते हैं और भाजपा को राष्ट्र-निर्माण का बेहतर साधन बना सकते हैं। याद रहे राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा है, सुशासन के माध्यम से विकास और अंत्योदय हमारा अंतिम लक्ष्य
है।
इंदौर : अहिल्याबाई होल्कर से प्रेरणाभाजपा की यह मान्यता है कि राजनीतिक पद कोई अलंकरण नहीं है बल्कि, यह किसी भेदभाव के बिना, न्यायपूर्वक एवं निस्वार्थ भाव से लोकसेवा करने केर् कत्ताव्य को निभाने का एक अवसर है। वास्तव में, उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि अपने वह सभी सहयोगियों को समान भाव से देखे। इस न्यायतत्व का स्मरण मुझे इन्दौर की भूमि पर होना स्वाभाविक ही है क्योंकि इस शहर ने भारत के इतिहास के महानतम शासकों में से एक -पुण्यशलोका राजमाता अहिल्याबाई होल्कर की पावन स्मृति को अमर किया है। मालवा राज्य की इस दूरदर्शी महारानी को मैं अपनी श्रध्दांजलि अर्पित करता हूं, जिनका न्याय के प्रति पूर्ण समर्पण सर्वविदित है। उन्होंने घोर आपराधिक कृत्यों में लिप्त अपने ही पुत्र को हाथी के पांव तले कुचलवाने का आदेश देने में कतई संकोच नहीं किया। वह विवेक, अच्छाई, दृढ़ता और सद्गुणों की भव्यमूर्ति थीं; उन्होंने आम लोगों, विशेषकर वनवासी समुदायों के उत्थान के लिए अथक परिश्रम किया। भारत आज एक लोकतंत्र है। फिर भी, अहिल्याबाई होल्कर जैसे शासकों से हमें सुशासन और लोगों के कल्याण की शिक्षा लेनी चाहिए।
इन्दौर पहुंचने के बाद मैंने भारतरत्न डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्मस्थली महू जाकर उनकी स्मृतियों को प्रणाम किया। डॉ. अम्बेडकर सच्चे मानवतावादी थे। उन्हाेंने समाज के कमजोर वर्गों को आवाज दी। उनका जीवन सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता के मूल्यों को चरितार्थ करता है। मैं सबकी ओर से इस महान नेता को अपनी आदरांजलि समर्पित करता
हूं।
आइए, अपनी उपलब्धियों पर बेहतर कल का निर्माण करेंमित्रो, राष्ट्रीय परिषद का सम्मेलन एक ऐसे समय पर हो रहा है जब राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय-दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण घटनाएं घट रही हैं। इनमें से कुछ घटनाओं का भारत के लिए दूरगामी महत्व है, जिसमें चुनौतियां भी हैं और अवसर भी।
हमारी पार्टी को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इन चुनौतियों को हमें साफ तौर पर स्वीकार करना होगा, समझना होगा और दृढ़ता से उनका मुकाबला करना होगा। तथापि, भाजपा के सामने जो चुनौतियां हैं उनके कारण हमें उन वास्तविक अवसरों की ओर से आंखे नहीं मूंद लेनी चाहिए जो हमारे पास हैं। हमें एकजुट होकर, तात्कालिक असफलताओं से प्रभावित न होते हुए पुन: नए जोश एवं उत्साह के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी पार्टी इस देश के हर कोने में मौजूद हैं। छह राज्यों में हमारी सरकारें हैं और तीन अन्य राज्यों में हम गठबंधन सरकारों में शामिल हैं। इनके अलावा तीन अन्य राज्यों में हम प्रमुख विपक्षी दल के रूप में मौजूद हैं। आज तक किसी न किसी समय हम लगभग 20 राज्यों में सत्ताा में रहे हैं। आइए, हम अपनी इन उपलब्धियों की नींव पर बेहतर कल का निर्माण करें। अभी भी कुछ ऐसे राज्य है जहां हमें महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में हमें अपने आपको स्थापित करना है। आइए, हम समाज के सभी वर्गों का विश्वास जीतें और अपने देश के लोगों को वह सब देने का भरपूर प्रयास करें जो उन्हें मिलना ही चाहिए : वह है सुशासन!
विश्व व्यवस्था तेजी से एशिया के पक्ष में परिवर्तित हो रही है
भाजपा राष्ट्रवाद का पर्याय है। अपनी मातृभूमि के विस्मृत गौरव को लौटाना हमारा कर्तव्य है। और हमें यह विश्व व्यवस्था में हो रहे प्रमुख परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में करना है। पश्चिम, और विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्वव्यापी प्रभुत्व तेजी से घट रहा है। पश्चिमी देशों में पिछले वर्ष के वित्ताीय दबाव और आर्थिक मंदी को किसी छोटी-मोटी घटनाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस मंदी का उनकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है। पश्चिमी देशों में अब ऊंची-लागत, व्यर्थ एवं अत्याधिक उपभोक्तावादी जीवन शैलियों के बारे में चिंता जताई जा रही है। अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए सैन्य दल-बल एवं आयुध सामग्री के उत्पादन पर खर्च करने की मजबूरी तो अलग ही है।
नतीजा यह कि विश्व अर्थव्यवस्था का केन्द्र अपरिवर्तनीय रूप से पश्चिम से एशिया की ओर खिसक रहा है। निस्संदेह, इस परिवर्तन का चीन को बहुत लाभ मिला है। लेकिन यह भी सच है कि विश्वभर में अधिक से अधिक लोग अब यह मानने लगे हैं कि भारत शीघ्र ही एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकता है। विश्व को प्रभावित कर रही किसी भी बड़ी समस्या पर अब भारत को शामिल किए बिना और भारत का सहयोग लिए बिना चर्चा नहीं की जाती है – चाहे जलवायु परिवर्तन की बात हो, विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का विषय हो, वैश्विक वित्ताीय ढांचे के पुनर्गठन की बात हो, या फिर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के भूत से निपटने का मसला हो। मैं इस परिवर्तन को भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में देखता हूं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह संभवत: सबसे बड़ा अवसर है जब हमारा देश मजबूत एवं समृध्द बन कर उभर सकता है, जिसका अतंर्राष्ट्रीय बिरादरी में मजबूत स्थान और आवाज हो।
हमें इस अवसर को पहचान कर एक ऐसा कार्यक्रम विकसित करना चाहिए जिसमें हमारी राजनीतिक गतिविधियां, हमारी नीतियां प्रतिबिंबित हाें, और हमारी सरकारों के कार्य-संचालन तथा स्वशासी निकायों के कामकाज में भी उसकी झलक मिले। चूंकि हमारी पार्टी ‘राष्ट्र पहले’ के सिध्दांत पर आधारित है, इसलिए हमें केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों को जहां और जब कभी ऐसा लगे कि इन सरकारों द्वारा ऐसे उचित कदम उठाये जा रहे हैं, जो देश को मजबूत कर सकते हैं और इन नए ऐतिहासिक अवसरों की दिशा में आगे ले जा सकते हैं, तो उन्हें समर्थन और सहयोग देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
नेपाल की स्थिति
भाजपा के लिए नेपाल सिर्फ पड़ोसी राष्ट्र ही नहीं अपितु हमारी ऐतिहासिक सभ्यता का अभिन्न अंग है। यहां विषाल हिमालय बसता है जो हमारी सभ्यता का पालनहार एवं रक्षक है। हम नेपाल की सुरक्षा, समृध्दि और विकास के लिए उतने ही कृतसंकल्प हैं जितने भारत के लिए। भाजपा नेपाल की अषांत स्थिति से चिंतित है। हम सरकार से अपील करते हैं कि वह नेपाल के साथ सम्बन्ध फिर से मजबूत किये जायें और उन शक्तियों को परास्त किया जाए जो दोनों ही देषों के प्रति दुर्भावना रखती हैं।
रणनीतिक विषयों पर एक समान राष्ट्रीय दृष्टिकोण आवश्यक
मैं, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के नेताओं से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वे राष्ट्र के महत्वपूर्ण हितों को प्रभावित करने वाले सभी अहम् विषयों के बारे में, विपक्ष के साथ संवाद और सहयोग पर आधारित, एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाएं। भारत – अमेरिका परमाणु संधि करते समय, वो ऐसा नहीं कर सके। कोपनहेगन सम्मेलन में भारत की नीति निर्धारण करने के समय भी वे विफल हुए। उन्होंने तब भी ऐसा नहीं किया जब पश्चिम में आई आर्थिक मंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। दुर्भाग्य से उनका वही रवैया उन दो नाजुक विषयों के बारे में विपक्ष को विश्वास में न लेने में भी बराबर झलकता है, जिनका सीधा सम्बन्ध राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सुरक्षा से है। प्रसंगवश दोनों समस्याएं कांग्रेस द्वारा की गई घोर गलतियों से जन्मी हैं। इन गलतियों के चलते – जिन्हें आज का कांग्रेस नेतृत्व स्वीकार करने से इंकार करता है – भारत को पिछले कई दशकों से भारी कीमत चुकानी पड़ी है और भारी नुकसान सहना पड़ा है।
पहली भूल का संबंध चीन के साथ भारत के संबंधों को लेकर है। भाजपा चीन के साथ मैत्रीपूर्ण अच्छे पड़ोसी जैसे सम्बन्ध रखने और सहयोग करने के पक्ष में है। क्योंकि दोनों देश प्राचीन एशियाई सभ्यता के अनूठे उदाहरण हैं। किन्तु, अब चीन एक विश्वव्यापी शक्ति के रूप में उभर रहा है, और शायद यही कारण है कि भारत के प्रति उसका रवैया बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं है। चीन की इस नीयत के कारण सीमा विवाद को सुलझाने में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। इसके विपरीत, चीन बार-बार अरूणाचल प्रदेश पर अपने अधिकार का अवैध दावा अनेक आक्रमक तरीकों से व्यक्त करने लगा है। हाल-ही में, हमारी अपनी सरकार ने स्वीकार किया है कि चीन ने सीमा के दूसरे इलाकों में भारतीय क्षेत्र के अन्दर घुसने की कोशिश की है। इसे हल्के तरीके से नहीं लिया जा सकता, जैसाकि सरकार वास्तव में करती दिख रही है। भारत के अड़ोस-पड़ोस में चीनी सेना की बढ़ती मौजूदगी और पाकिस्तान में एक सैन्य अड्डा बनाने के बारे में बीजिंग की योजना चिंता का विषय है। भाजपा मांग करती है कि भारत-चीन सम्बन्धों के बारे में सरकार विपक्ष के साथ विचार-विमर्श कर एक सामरिक नीति अपनाए। हमें विष्वास है कि चीन जानता है कि सन् 2010, 1962 नहीं है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ही इन दो महान सभ्यताओं को आगे ले जा सकता है। इस सम्बन्ध में, मैं आपको यह सूचित करना चाहता हूं कि हमने चीन के साथ लगी अपनी सीमा की सुरक्षा पर मंडराते खतरों का आकलन करने के लिए उत्ताराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भगतसिंह कोश्यारीजी की अध्यक्षता में एक पांच-सदस्यीय अध्ययन-दल गठित किया है।
जम्मू और कश्मीर
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा जम्मू एवं कश्मीर का है। कष्मीर सभी भारतीयों और विषेषकर भाजपा के लिए बलिदान का प्रतीक है। यही वह भूमि है जहां डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय अखण्डता की सच्ची भावना के लिए अपना जीवन आहूत कर दिया। कश्मीर के मुद्दे पर यूपीए सरकार जिस राह पर बढ़ रही है भारत के लिए खतरनाक सिध्द हो सकता है। ऐसा लगता है कि ये सरकार बाहरी दबावों में आकर भारत के इस दावे के साथ समझौता कर रही है कि पाक अधिकृत कश्मीर सहित समूचा जम्मू एवं कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू एवं कश्मीर में नेशनल कान्फं्रेस – कांग्रेस गठबंधन सरकार पाक-समर्थित अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया अपना रही है। जम्मू एवं कश्मीर की भारत के साथ सम्पूर्ण संवैधानिक एकात्मता करने हेतु उपाय करने के बजाय, यूपीए सरकार ऐसा दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश कर रही है कि मानों कश्मीर पर विशेष ढंग से बात करने की जरूरत है। अगर सरकार इसी नीति पर चलने वाली है, तो कश्मीर को वास्तव में अलग करने की मांग के आगे घुटने टेकने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। मैं यह बात मुख्य रूप से यूपीए को चेताने तथा कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों में सही सोच रखने वाले लोगों सहित अपने देशवासियों को सचेत करने के लिए कह रहा हूं कि वर्तमान घटनाक्रम यूं ही चलता रहा तो इसका नतीजा वही होगा जो 1947 की भारी भूल के कारण हुआ था। भारतीय जनता पार्टी ऐसा कभी नहीं होने देगी। जम्मू व कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए हम कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार हैं। इस संदर्भ में, पार्टी पाकिस्तान के साथ आज की स्थिति में, किसी भी तरह की समग्र वार्ता पर अपना सख्त विरोध दर्ज कराना चाहती है।
जम्मू व कश्मीर के सम्बन्ध में, एक और महत्वपूर्ण बात मैं कहना चाहता हूं। हाल में, इस मुद्दे पर काफी बहस हो चुकी है कि मुम्बई शहर सभी भारतीय लोगों का है या नहीं। यह एक अनावश्यक विवाद है। मेरी धारणा और भाजपा की धारणा इस बारे में स्पष्ट है कि समूचा भारत, बगैर जाति, मज़हब, नस्ल और भाषाई भेदभाव के सभी भारतीयों के लिए है। हमारा विश्वास है कि संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ई) हम सभी को भारत के किसी भी भाग में रहने और बसने की संवैधानिक गारंटी देता है जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता मजबूत होती है। इसी सिध्दांत के आधार पर हम कष्मीर के, भारत में सम्पूर्ण संवैधानिक एकात्मकता की बात करते है। हमने हमेशा भाषायी, क्षेत्रीय और मजहबी पहचानों को भारत की वास्तविकता मानते हुए कहा है कि ये सभी पहचान, अंतत: भारतीयपन की वृहत राष्ट्रीय पहचान में जुड़ जाती हैं। निस्संदेह इनमें संघर्ष का कोई सवाल नहीं है। फिर भी, मैं इस बात से चकित एवं दु:खी हूं कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी नेता निश्चयपूर्वक यह कहने के लिए आगे नहीं आया कि मुम्बई सहित अन्य भारतीय शहरों की तरह, श्रीनगर भी सभी भारतीयों का है और यहां भी भारत के अन्य भागों से आए भारतीय लोगों को कश्मीर में बसने और रोजगार पाने का बराबर का अधिकार है। इस दिशा में पहल करने के लिए, कांग्रेस पार्टी – जो केन्द्र और जम्मू व कश्मीर दोनों स्थानों पर सत्ता में है – को चाहिए कि उन लाखों कश्मीरी पंडितों को वापस वहां बसाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जिन्हें कश्मीर में उनके अपने घरों से जबरन बाहर निकाल दिया गया था।
वोट बैंक राजनीति, भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा
भारतीय जनता पार्टी का यह मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा चाहे बाहरी सुरक्षा हो या आन्तरिक, संकीर्ण राजनीतिक या सामाजिक विवादों से ऊपर है। भारत की सुरक्षा पर खतरे के समय हमारी पार्टी ने हमेशा सरकार को सहयोग देने का अपना धर्म निभाया है। इसी प्रकार जब भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार केन्द्र में सत्ता में आई, उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर अपनी नीति बनाने में अन्य पार्टियों का सक्रिय सहयोग मांगा और उनके विचार जानने की कोशिश की। इस स्वस्थ परम्परा को सभी दलों के सहयोग से और भी सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
हमारे पड़ोस में पनप रहे सुरक्षा सम्बन्धी वातावरण को देखते हुए, किसी भी हालत में भारत की रक्षा तैयारी में कोई कमी नहीं की जानी चाहिए। भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए जो दो बड़े ख़तरे बने हुए हैं-जिहादी आतंकवाद और नक्सलवाद, उनका सामना करने के लिए अत्याधिक सतर्कता से काम करने और अधिक कारगर रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है। जहां तक आतंकवाद से निपटने में भारत सरकार की कार्यवाही का सम्बन्ध है, उसे घोर अनर्थ ही कहा जा सकता है। पाकिस्तान की शह से 26/11 को मुम्बई पर हुए हमले ने सरकार को अपनी कुछ गलतियों को सुधारने के लिए बाध्य तो किया है। किंतु 26/11 हमले की जांच जिस ढंग से की जा रही है, उससे गंभीर आशंकाएं पैदा होती हैं। ऐसा लगता है कि सरकार उस हमले के जानकारों और साजिश में शामिल स्थानीय कड़ियों का पता लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।
पुणे में ताजा बम विस्फोट इसका उदाहरण है कि संदिग्ध आतंकवादियों के प्रति नरमी बरतने से देष की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। संदिग्ध आतंकवादियों की चिरौरी करना, उन पुलिस अधिकारियों का भी अपमान है जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान आतंकवाद से लड़ने में दिया है। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने संदिग्ध आतंकवादी अड्डों को अपनी तीर्थस्थली बना लिया है। आतंकवादियों के संदिग्ध अड्डों पर राजनीतिज्ञों का बार-बार जाना राष्ट्र के शत्रुओं का हौसला बढ़ा रहा है। दूसरे, पाकिस्तान के साथ हमारी राजनीतिक पहल में स्पष्टता, निरंतरता और ढृढ़ता का अभाव है। पुणे बम विस्फोट से हमारे इस दृष्टिकोण की पुष्टि होती है कि आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। यूपीए को समझना होगा-और मुझे विष्वास है कि यूपीए के राष्ट्रवादी नेता हमारी बात से सहमत होंगे-कि जब देष पर आतंक का साया हो पाकिस्तान से बात न करने की नीति एक वैध कूटनीतिक उपाय है। दुर्भाग्य से यूपीए सरकार आतंकवाद के विरूध्द एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाने में वाजपेयी सरकार की उस नीति को आगे नहीं बढ़ा रही है जो जिहादी आतंकवाद का विष फैलाने वालों को अलग-थलग कर सकती है। विशेषकर, अंतरराष्ट्रीय जगत को यह पहचान कराना जरूरी है कि पाकिस्तान की सत्तारूढ़ राजनीतिक और सैनिक व्यवस्था भारत से कश्मीर को छीनने का अपना मंसूबा पूरा करने के लिए जिहादी आतंकवाद का इस्तेमाल कर रही है। अत: कश्मीर के बारे में पाकिस्तान के किसी भी दावे को न्यायसंगत बताने से आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को निश्चय ही ठेस पहुंचेगी।
मुझे विवश होकर यह कहना पड़ रहा है कि कांग्रेस पार्टी अल्पकालिक वोट बैंक से लाभ उठाने के विचार को त्यागे बिना आतंकवाद के खतरे को देखने से इंकार कर रही है। उदाहरण के लिए, उस पार्टी के वरिष्ठ नेतागण खुलेआम इन दावों का समर्थन कर रहे हैं कि बाटला हाउस में दिल्ली पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई, जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी मारा गया, फर्जी मुठभेड़ थी। जिहादी आंतकवाद से निपटने में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की गलत नीति के विरुध्द भाजपा को अवश्य ही अपनी आवाज उठानी चाहिए, और भाजपा यह आवाज मुखर करती रहेगी।
मजहब आधारित आरक्षण मंजूर नहीं
वोट बैंक की राजनीति उस जल्दबाजी में भी खुल्लम-खुल्ला नजर आती है जिसके चलते कांग्रेस और कम्युनिस्ट दोनों ही मुसलमानों के लिए शिक्षा एवं रोजगार में मजहब-आधारित आरक्षण देने की व्यवस्था करने में एक-दूसरे से होड़ लगाए हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी शिक्षा के व्यापक प्रसार के माध्यम से अपने मुस्लिम बंधुओं के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए किए जाने वाले प्रयासों का समर्थन करती है। वास्तव में उनका पिछड़ापन इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि कांग्रेस पार्टी ने अपने निजी राजनीतिक लाभ के लिए किस कदर उनका शोषण किया है। लेकिन मजहब-आधारित आरक्षण का विचार भारतीय संविधान में की गई मूल व्यवस्था के एकदम विरूध्द है। ऐसा करने से उस समस्त समुदाय का चहुंमुखी विकास होना भी संभव नहीं है। उल्टे यह तो फूट डालने वाला एक उपाय है जो आगे चल कर देश की एकता और अखंडता के लिए नुक्सानदेह साबित होगा, साथ ही मतांतरण को भी शह देगा। आरक्षण्ा के लाभों को दलित ईसाइयों तक पहुंचाने की कोशिश का भी ऐसा ही हानिकारक परिणाम होगा। कांग्रेस एवं कुछ अन्य पार्टियों के द्वारा इस संदर्भ में कोर्ट के आदेषों को न मानना इसे और गंभीर बनाता है। भाजपा, सरकार को यह सख्त चेतावनी देती है कि वे मजहब-आधारित आरक्षण न देंं। हमारी पार्टी ऐसे किसी भी कदम का कड़ा विरोध करेगी।
नक्सली खतरा
भारत की आन्तरिक सुरक्षा को दूसरा बड़ा खतरा नक्सलवाद से है। इसके कारण वास्तव में हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ही संकट में पड़ जाएगी – इसलिए हमें सख्ती से इसका मुकाबला करना होगा। माओवाद का सिध्दांत और व्यवहार दोनों पूरी तरह भारतीय विचारों एवं धारणाओं और मूल्यों के विरूध्द है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी ताकतें भारत में अशांति फैलाने का प्रयास कर रही हैं और वे इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए माओवादियों को बढ़ावा देने में लगी हुर्इं हैं। भाजपा चाहती है कि सरकार माओवादी नेताओं के प्रति कतई नरमी न दिखाए। हम तथाकथित नागरिक अधिकार संगठनों से भी आग्रहपूर्वक कहना चाहते हैं कि वे इस घातक विचारधारा को वैधता का जामा पहनाने की कोशिश न करें। नि:संदेह, नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में गरीबों के उत्थान और भ्रष्टाचार मुक्त विकास के लिए किये जा रहे समस्त प्रयासों में तेजी लाना आवश्यक है।
उत्तर-पूर्व की स्थिति
भाजपा असम की स्थिति के बारे में भी चिंतित है। राज्य में जब आतंक फैलाने वाले और अलगावाादी तत्वों से सख्ती से निपटने की बात आती है राज्य सरकार ढीली पड़ने लगती है। असम के सम्बन्ध में, केन्द्र, राज्य सरकार और ऑल असम स्टूडेण्ट्स यूनियन के बीच हुए असम समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अद्यतन करने के लिए 31 मार्च, 2010 की तारीख निश्चित की गई थी। क्योंकि उक्त समझौते में इस बात पर विशेष बल दिया गया था कि (मतदाता सूची से) राज्य में अवैध रूप से आकर बसे लोगों का पता लगाया जाए, उनके नाम निकाल दिए जाएं और उन्हें उनके देश में वापस भेज दिया जाए। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अद्यतन करने की बात धोखे से अधिक कुछ नहीं है क्योंकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन आर सी) न तो कभी ठीक था और न ही अब सही स्थिति में है। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि एक नया एन आर सी बनाया जाए। केन्द्र और राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें इससे पहले कि असम की सीमाओं के अंदर एक और बांग्लादेश पैदा हो, और कितने समय तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेंगी ? हमारी यह मांग है कि सरकार और चुनाव आयोग यह सुनिष्चित करें कि आने वाले चुनाव में कोई बांग्लादेषी घुसपैठिया वोट न डाल पाये।
मणिपुर के लगातार आतंकवादी गुटों के चंगुल में बने रहने पर भाजपा का चिंतित होना स्वाभाविक है। यहां सरकारी मशीनरी पूर्णतया ठप्प हो गई है और जनजीवन भूमिगत आतंकवादियों द्वारा पंगु कर दिया गया है। जहां तक इस क्षेत्र में आधारभूत सुविधाएं विकसित करने का सम्बन्ध है, सरकार ने उत्तार-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय (DONER) बनाए जाने के बाद से अब तक कुछ भी नहीं किया है।
मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर भी दिलाना चाहता हूं कि सरकार के कमजोर रवैये ने हमारे आंतरिक सुरक्षा प्रतिष्ठानों की क्षमता और मनोबल पर नकारात्मक असर डाला है। यह चाहे जिहादी हिंसा हो या माओवादी हिंसा, राष्ट्र के सामने जो समस्या मुंह बाएं खड़ीं हैं उन पर बहस होनी चाहिए और एक सही निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए। हम यह पूछना चाहते हैं कि क्या उन पुलिसकर्मियों एवं सुरक्षा बलों के कोई मानवाधिकार नहीं है जो इन राष्ट्रविरोधी तत्वों से लड़ते हुए अपना जीवन बलिदान कर देते हैं?
विकास की समग्र नीति के अभाव में कमजोर पड़ता भारत
मित्रों, जब मैं समाज के अन्दर अशांति और कलह देखता हूं और यह देखता हूं कि किस तरह इन्हें जाति, धर्म, व जनजातीय, भाषायी या क्षेत्रीय पहचान बनाने की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो मैं अपने आपसे सवाल करता हूंं ”आखिर इन समस्याओं की जड़ में क्या है”? इस बारे में मैं दो निष्कर्षों पर पहुंच पाया हूं; पहला, यह कि इन सारी समस्याओं को उन गलत नीतियों एवं कुशासन ने जन्म दिया है जिनके आधार पर इस देश को स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही चलाया जा रहा है। दूसरा, निष्कर्ष यह है कि इन समस्याओं का समाधान समाज के किसी एक या दूसरे वर्ग को संतुष्ट करने की टुकड़ों में बंटी नीति के आधार पर नहीं किया जा सकता है। हमारा देश अनेकानेक विभिन्नताओं का देश है। हमारे समाज के हर वर्ग की आकांक्षाएं हैं। लेकिन इन आकंाक्षाओं को तभी पूरा किया जा सकता है जब ऐसी समग्र नीति अपनाई जाए जिसमें समस्त राष्ट्र का हित निहित हो। सृष्टि में हम सामंजस्य और संतुलन देखते हैं। तो क्यों नहीं मानव समाज में वैसा ही सामंजस्य और संतुलन स्थापित किया जा सकता?
व्यक्ति और समाज का सद्भावपूर्ण विकास पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ”एकात्म मानवतावाद” की विशिष्ट पहचान है; भाजपा इसे अपना पथप्रदर्शक मानती है। दुर्भाग्यवश, हमारे देश के नीति निर्माताओं के दृष्टिकोण में इसकी कोई झलक नजर नहीं आती। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही सबसे लम्बी अवधि तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने हमेशा उन नीतियों का पालन किया है जिनके कारण आज विकास में गंभीर असंतुलन दिखाई देता है। ये असंतुलन दोनों प्रकार के हैं- सामाजिक और भौगोलिक। आर्थिक समृध्दि की होड़ में हमारे लोगों को नैतिकता के मापदण्डों की अवहेलना करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है और इसमें धनी एवं प्रभावशाली लोग सबसे आगे हैं। भारत के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे पर इसका बहुत खराब प्रभाव पड़ रहा है।
भारत के विकास में असंतुलन को सुधारने का एक ही तरीका है कि अंत्योदय के सिध्दांत पर चला जाए अर्थात् घोर गरीबी को समाप्त किया जाए, प्रत्येक भारतीय परिवार को मूलभूत सुविधाएं दी जाएं, और यह सुनिश्चित किया जाए कि समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्तियों को भी जीवन में ऊपर उठने के अवसर प्राथमिकता पर प्राप्त हों। भारत में स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय तथा अन्य संत, एवं महापुरूषों ने इसी सिध्दांत पर बल दिया है। राजनीति में प्रवेश करने के बहुत पहले से, संत तुकाराम की इन पंक्तियों ने मेरे मन पर गहरी छाप अंकित कर दी थी। मैं आज भी इन पंक्तियों से प्रेरणा प्राप्त करता हूं।
जे का रंजले, त्सायी म्हाणे जो आपुले!
तोची साधु ओलखाव देव तेथेची जानावा!!
(वह जो दलितों, उत्पीड़ितों एवं दुखियों को अपना मानकर अपनाता है, एक सच्चा साधु या एक पवित्र पुरूष है। ईश्वर उसी पुरूष/महिला के अन्दर बसता है।)
इसलिए मैं अपनी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं, समर्थकों से आग्रह करता हूं कि वे स्वयं को अंत्योदय के आदर्श के प्रति पुन: समर्पित करें।
अंत्योदय
मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि हमने हाल ही में अंत्योदय नाम से एक नूतन अभियान शुरू किया है।
यह एक ऐसा अभियान है जिसमें सामाजिक सक्रियता के माध्यम से विकास के लिए राजनीति को प्रोत्साहित किया जाएगा। हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी के सभी कार्यकर्ता हमारी संगठनात्मक इकाइयां और प्रत्येक स्तर पर हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र में कम से कम एक सेवा और विकास परियोजना अवश्य चलाएं। इसके जरिए हमारे कार्यकर्ताओं को समाज के वंचित वर्गों तक पहुंचने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। हमारी सदैव यह सोच रही है कि राजनीति, सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन का एक साधन है। हम सभी लोगों से आज यह अपेक्षा है कि इस महान राष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति में सेवा के तत्व को पुन: शामिल करने का संकल्प उठाया जाए। अगर आप दृढ़संकल्प के साथ प्रयास करें तो आप सहज ही ऐसी गतिविधियों को अपना सकते हैं और अंतिम व्यक्ति की सेवा करने का संतोष प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए हम अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने हेतु पार्टी के अन्दर एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे, जो उनका मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उनके काम का आकलन भी कर सके। अंत्योदय अभियान की संकल्पना और कार्यप्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए एक ‘मोनोग्राफ’ प्रकाशित किया जा रहा है। हमने इस राष्ट्रीय परिषद की बैठक के आयोजन स्थल पर सेवा परियोजनाओं के कुछ कार्यों की प्रदर्शनी भी लगाई है।
इस लक्ष्य को तभी पूरी तरह हासिल किया जा सकता है जब लोगों को लाभप्रद एवं निर्वाहयोग्य जीविका प्रदान करने वाली अर्थव्यवस्था के बारे में एक सार्वजनिक नीति निर्धारित की जाए। भारतीय संदर्भ में, इसका मतलब यह है कि आर्थिक विकास की सफलता की परख इस आधार पर की जा सकती है कि क्या हमारी कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इतना पुनरून्जीवित कर दिया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक रोजगार एवं रहन-सहन के उत्कृष्ट साधन मुहैया कराए जा सकें। हमें स्वीकार करना होगा कि भारत इस कसौटी पर खरा नहीं उतरा है। शहरों और गांवों के बीच तेजी से बढ़ती खाई और शहरों के अन्दर असमानताओं का बढ़ते जाना भी चिंता का विषय बना हुआ है।
क्या यह गरीबी बढ़ाओ नहीं है?
इस सम्बन्ध में कांग्रेस की विफल नीतियों की पुष्टि आधिकारिक स्रोतों से हो रही हैं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार डा0 सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में बनी समिति ने हाल ही में यह खुलासा किया है कि भारत में गरीबों की संख्या 12 प्रतिशत से बढ़ गई है। और आगे यह बताया गया है कि ग्रामीण भारत में गरीबी 42 प्रतिशत है न कि 28 प्रतिशत जैसाकि पहले अनुमान लगाया गया था। इसकी तुलना इस तथ्य से करें कि हाल ही के वर्षों में भारत के धनाढय लोगों के एक छोटे से वर्ग की संपन्नता में चमत्कारिक वृध्दि हुई है। क्या यह इस चेतावनी का संकेत नहीं है कि नीति की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है?
ऐसी ही एक सच्चाई संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों सम्बन्धी विभाग के हवाले से सामने आई है, जो यूपीए सरकार के लम्बे-चौड़े दावों को झुठलाती है। यू.एन.डी.ई.एस.ए. के आंकड़ों से पता चलता है कि सिर्फ वर्ष 2009 में ही और 1.36 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए। इससे यह साबित होता है कि कांग्रेस के नेतृत्व में गठित सरकार ने ”गरीबी हटाओ” का लक्ष्य हासिल करने के बजाय, वास्तव में ”गरीबी बढ़ाओ” का लक्ष्य पाने में सफलता पाई है।
अनियंत्रित मूल्यवृध्दि से त्रस्त गरीब एवं मध्यम वर्ग
यह सरकार किसानों की आत्महत्याएं रोकने में पूरी तरह फेल हुई है। बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करने में इसकी असफलता ने महंगाई से पीड़ित हमारे देश के कमजोर वर्गों के जीवन को और दूभर बना दिया है। मैं यहां इस बात पर बल देना चाहता हूं कि केवल गरीब वर्ग ही सरकार की गलत नीतियों का शिकार नहीं बना है। अनिवार्य वस्तुओं के आसमान छूते दामों के कारण मध्यम वर्ग भी बहुत मुश्किल में पड़ा हुआ है। मई 2009 में हुए पिछले संसदीय चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री, डा0 मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि उनकी सरकार मूल्यों में कमी लाने के लिए 100-दिन की कार्य-योजना प्रस्तुत करेगी। लगता है प्रधानमंत्री अपना वादा भूल गए है। सच तो यह है कि यूपीए सरकार के सत्ता में लौटने पर दामों में जितनी अधिक वृध्दि हुई है उसकी मिसाल हाल के इतिहास में नहीं मिलेगी। ऐसा लगता है, मानों हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का मूल्यवृध्दि पर न तो कोई नियंत्रण रह गया है और न ही दामों को कम करने में उनकी कोई रूचि है। मुद्रास्फीति को रोकने के लिए कोई ठोस एवं कारगर कदम उठाने के बजाय सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ा रही हैं, जिसका पूरी अर्थव्यवस्था पर क्रमिक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। जहां आम आदमी की कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार ने अपने ही सहयोगियों पर दोष-मढ़ने का खेल खेलना शुरू कर दिया है-कांग्रेस के नेतागण मूल्य-वृध्दि के लिए एनसीपी नेता और कृषि मंत्री शरद पवार को दोष दे रहे हैं तो शरद पवार सरकार में बैठे दूसरे लोगों पर दोषारोपण कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में मंत्री-परिषद के ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के सिध्दांत को तार-तार कर दिया गया है। मूल्य वृध्दि को रोकने में सरकार की विफलता के लिए भाजपा देश के प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह और यूपीए की प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराती है। याद रहे कि केन्द्र में जब भी कांग्रेस की सरकार बनती है, कीमतें बढ़ती हैं और लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं, और जब भी गैर – कांग्रेस सरकार बनती है तो कीमतों में कमी होती है।
मैं यहां पर कमोडिटी एक्सचेंज घोटाले की ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूं जिससे मूल्यवृध्दि और बढ़ी है। साढ़े चार लाख करोड़ रूपए के व्यापार में कमोडिटी एक्सचेंज द्वारा 1 प्रतिशत से कम यानी साढ़े चार हजार करोड़ से कम की वास्तविक डिलीवरी दी गई। कमोडिटी एक्सचेंज की सट्टेबाजी तथा बाजार को अपने ढंग से चलाने की पध्दति के चलते गेहूं, शक्कर, चना, जीरा, आलू जैसी आवश्यक वस्तुओं की बनावटी कमी बनाई गई और इससे व्यापक मूल्यवृध्दि हुई। हमने इस महाघोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है।
पिछले आठ महीनों के दौरान यूपीए सरकार के कामकाज पर नजर डालें तो हर व्यक्ति के मन में कई प्रश्न उठते हैं। क्या यह सरकार वास्तव में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रित करना चाहती है? क्या यह सरकार किसानों की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने में सक्षम है? क्या यह सरकार बढ़ती बेरोजगारी को कारगर ढंग से रोक सकती है?
भारत के विकास और शासन के लिए एक नए मॉडल की आवश्यकता
मित्रों, चूंकि हम केन्द्र में विपक्षी दल हैं, अत: हमारा यह कर्तव्य है कि हम सरकार की गलत नीतियों का विरोध करें, उन्हें रोकेने की कोशिश करें। हम इस कार्य को पूरी ताकत से करेंगे। परंतु लोगों को हम से और अनेक अपेक्षाएं हैं। हमारी पार्टी केन्द्र में सत्ता में रह चुकी है और हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी पुन: सत्ता में आए, इसलिए हमारा यह भी कर्तव्य बनता है कि हम उन विविध समस्याओं का हल खोजें जिनका सामना भारत को करना पड़ रहा है। भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास से न तो लोग खुश हैं और न ही हम खुश हैं, क्योंकि विकास में असंतुलन की भरमार है, और शासन में घोर भ्रष्टाचार एवं अकुशलता व्याप्त है। जैसाकि मैं पहले कह चुका हूं, राष्ट्र के सामने मौजूद अधिकतर समस्याओं का जाति, वर्ण, भाषा या ऐसे ही दूसरे कारणों से कोई सरोकार नहीं है। उनकी जड़ तो विकास की गलत नीतियों और दोषपूर्ण शासन व्यवस्था में है। मैं यह बताना आवश्यक समझता हूं कि देश में आज 55000 मेगावाट उर्जा की कमी है और बारहवीं योजना में उर्जा उत्पादन के लिए हमारे पास कोयले का कोई भंडार नहीं है। यह उर्जा की कमी हमारे महान राष्ट्र के विकास को अवरूध्द कर रही है; और इसका कारण सरकार की अदूरदर्शिता है।
भारतीय जनता पार्टी, निस्संदेह एन.डी.ए. सरकार द्वारा की पहलों और उपलब्धियों पर गर्व करती है। अब चूंकि हमें केन्द्र में और राज्यों में सरकार चलाने का अनुभव प्राप्त है तो उस आधार पर हमें विकास और शासन व्यवस्था का एक वैकल्पिक मॉडल तैयार करना चाहिए, उसका प्रचार करना चाहिए और उसे कार्यान्वित करना चाहिए। मैं समझता हूं, पार्टी के समक्ष यह एक अत्यंत महत्चपूर्ण कार्य है।
इस विषय पर मैं आपके सम्मुख अपने कुछ विचार रखना चाहता हूं। 1947 से भारत अब बहुत आगे बढ़ चुका है; जब सोवियत मॉडल से प्रभावित होकर, सरकार द्वारा संचालित उद्यमों को राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पिछले छह दशकों में हमने भारत के उद्यमी वर्ग की क्षमताओं में व्यापक वृध्दि होती देखी है। इसी अवधि में हमने यह भी जाना कि सरकारें, कुल मिलाकर आर्थिक कार्यकलापों को दक्षता के साथ चलाने में विफल हुई हैं। अब हमें अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को नया रूप देकर पुराने मॉडल का पूरी तरह त्याग कर देना चाहिए। सरकार का काम है कुशल योजना बनाना, ठोस एवं स्पष्ट नियमों का निर्माण करना और उन्हें कारगर रूप से लागू करना। आर्थिक गतिविधियों को चलाने का वास्तविक कार्य गैर-सरकारी उद्यमों के जिम्मे छोड़ दिया जाना चाहिए।
जब मैं उद्यमों की बात करता हूं, तो मेरा अभिप्राय सिर्फ बड़ी कंपनियों से नहीं है। हमारे लघु और मध्यम स्तर के उद्यमों में असीम क्षमता है, जिसका दुर्भाग्यवश सरकार की काम करने संबंधी गलत एवं असंवेदनशील नीतियों ने गला घोंट दिया है। यहां तक कि सहकारी संस्थाओं की विशाल क्षमता का भी दमन कर दिया गया। इसके अलावा, सरकारी उद्यमों को भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के लिए चारागाह बना दिया गया है- जिसका प्रमाण है कि प्रधानमंत्री ने अपने सहयोगियों को नागरिक विमानन, दूर संचार, वस्त्र उद्योग, कोयला एवं खनन विभाग तथा अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रीय संसाधनों की लूट-खसोट करने की छूट दे दी है। इसके अतिरिक्त अनैतिक राजनीतिज्ञों तथा उच्च अधिकारियों ने कुछ भ्रष्ट उद्योगपतियों के साथ सांठ-गांठ कर ली है, जिसके कारण सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार और अपराधों को अत्यधिक बढ़ावा मिला है। दुर्भाग्य की बात है कि कानून लागू करने की जिम्मेवारी उठाने वाली एजेंसियां और न्याय प्रणाली से जुड़े कुछ लोग भी सम्भवतया इस सांठ-गांठ में लिप्त हैं। इस सांठ-गांठ को तोड़ना, स्वस्थ उद्यमिता को प्रोत्साहित करना और कानून-सम्मत तथा लोकोन्मुखी आर्थिक विकास सुनिश्चित करना ही सरकार का उद्देष्य होना चाहिए।
‘गांव चलो’ : भाजपा का नया विजन, तकनालॉजी -आधारित ग्रामोदय
भारत के लिए किसी वैकल्पिक आर्थिक प्रणाली की पहली अपेक्षा यह होगी कि कृषि एवं ग्रामीण विकास की सुनियोजित उपेक्षा को समाप्त किया जाए। ‘ग्रामोदय’ का लक्ष्य महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय दोनों को बहुत प्रिय था। कांग्रेसी नेताओं ने ग्रामीण भारत को सिर्फ सपने दिखाए; उन्होंने देहात की जरूरतों की न तो कोई परवाह की, और न ही उसकी क्षमता को वास्तव में समझने का प्रयास किया। आज की सबसे पहली अपेक्षा यह है कि सरकारी नीतियों में अनुकूल परिवर्तन किए जाएं ताकि कृषि और आधारभूत संरचना में भरपूर सार्वजनिक एवं निजी निवेश को बढ़ावा मिले। किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को कम लागत और आसान शर्तों पर पूंजी प्रदान की जाए ताकि भू और जल संसाधनों में वृध्दि हो सके, स्थानीय रुप से कृषि प्रसंस्करण उद्यमों को महत्व देने की व्यवस्था की जा सके, भण्डारण और विपणन तथा संचालन सुविधाओं का निर्माण किया जा सके और अधिक पैदावार देने वाले खेती के तरीकों को अपनाया जा सके, जैसे की विज्ञान और तकनीक पर आधारित जैविक खेती। मूलभूत सुविधाओं का निर्माण करने के कई कार्य सरकार के अकुशल विभागों से निकाल कर ग्रामीण उद्यमियों को सौंपे जा सकते हैं जिनकी देख रेख करने के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों को वही प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो शहरी क्षेत्रों को दी जाती है।
विकास और शासन-प्रणाली की वैकल्पिक व्यवस्था में एक और महत्वूपर्ण अपेक्षा पर मैं बल देना चाहूंगा। संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के बारे में कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनी पीठ थपथपाए जाने के बावजूद, पंचायती राज संस्थाओं और नगर-पालिकाओं के प्रभावी वित्ताीय एवं प्रशासनिक सशक्तिकरण के लिए अब तक कुछ भी नहीं किया गया है। अत: मेरा यह विचार है कि केन्द्रीय कर-राजस्व का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा सीधे ही ग्राम पंचायतों एवं नगर-पालिकाओं को आवंटित किया जाए। इसी प्रकार, स्पेशल कम्पोनेट प्लान के अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों हेतु जनजाति उप-योजना के लिए पूंजी मुहैया कराई जानी चाहिए और इन निधियों का उपयोग इन समुदायों के कल्याण तथा लोकतांत्रिक कार्यों में उनकी प्रतिभागिता सुनिश्चित करते हुए किया जाना चाहिए।
पार्टी के सम्मानित साथियो, मैं ग्रामीण भारत के विकास की क्षमता की बात सिर्फ किताबी ज्ञान से नहीं, बल्कि अपने व्यवहारिक व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कर रहा हूं। उदाहरण के लिए, कुछ जनजाति क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन तथा वन्यप्राणी पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय उद्यमियों द्वारा वहां अच्छी सड़कों एवं होटलों का निर्माण किया जा रहा है। यह प्रमाणित हो चुका है एक गाय, एक नीम का पेड़ और एक परिवार संपूर्ण रूप से एक आर्थिक व्यवहारिक एकक हो सकता है।
भारत के वैकल्पिक विकास मॉडल का लक्ष्य होना चाहिए – ”गांव चलो।” अच्छी सड़कें, यातायात के सार्वजनिक साधन, विश्व-स्तर की संचार और सूचना प्रौद्योगिकी सुविधाओं की उपलब्धता, 24×7 बिजली सप्लाई, जल तथा अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, कुशल वित्तीय सेवाऐं और बाज़ार से सम्पर्क की सुविधाओं से ग्रामीण भारत की तस्वीर एकदम बदल जाएगी। इससे ग्रामीण भारत में नए प्रकार के बहुत ही कुशल और अत्यधिक महत्वपूर्ण उद्यमों को बढ़ावा मिलेगा। 21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी, बायो-तकनालॉजी, नानो-तकनालॉजी और ऊर्जा की बचत तथा सामग्री की बचत करने वाले वैज्ञानिक आविष्कारों से उत्पादन एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों का विकेन्द्रीकरण तथा वितरण होगा। पर्यावरण की रक्षा करने की बाध्यता ने इसे वैश्विक आवश्यकता बना दिया है। अत: हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो इस कार्य को गति दे सकें। हमें न केवल ग्रामीण लोगों को शहरों की ओर पलायन करने से रोकना होगा बल्कि हमें ऐसी वास्तविक स्थितियां पैदा करनी होंगी कि शहरी लोग भारत के आधुनिक गांवों में जाएं और वहां रहने लगें। भाजपा इस नए सपने को साकार करने का अग्रदूत बन सकती है; 21वीं सदी की यही मांग है और हमें उसे पूरा कर दिखाना है।
असंगठित श्रमिकों की व्यथा
मित्रो, मैं अब असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की समस्याओं की बात करना चाहता हूं। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतीहर मजदूरों और फेरीवालों, टैक्सी एवं रिक्शा चलानेवालों, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों, कुलियों ओर विक्रेताओं को अपना गुजारा करने और अस्तित्व बनाए रखने के लिए अनगिनत कठिनाइयों से गुजरना पड़ रहा है। भाजपा यह महसूस करती है कि उनके दु:ख तकलीफों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। मैं उन परम्परागत कारीगरों, विशेषकर विश्वकर्मा समुदाय के पांच उप-समुदायों अर्थात् लुहारों, बढ़ई, कांसा/तांबा ढालने वालों, मूर्तिकार और सुनारों के बारे में कुछ कहना चाहता हूं, जिन्हें भगवान विश्वकर्मा का वंशज माना जाता है। हस्तषिल्प विकास के लिए केन्द्र सरकार की बहुत सी योजनाएं है किन्तु परम्परागत कारीगरों के हितों पर वास्तव में कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अत: चूंकि खेतीहर मजदूरों के बाद यह सर्वाधिक बड़ा वर्ग है, इसलिए उनकी शिकायतों को निपटाया जाना चाहिए।
सुशासन की हमारी उपलब्धियां
मित्रों, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि भाजपा के नेतृत्व में चल रही राज्य सरकारें वास्तव में अंत्योदय के सपने को साकार करने की दिशा में बढ़ रही हैं। गुजरात ने अपने गांवों को 24X7 बिजली सप्लाई करने में सफलता पाई है। इस राज्य ने हाल ही में गरीब कल्याण मेलों के आयोजन का एक सराहनीय कदम उठाया है। बिहार ने भी एनडीए की सरकार के तहत अपने यहां बहुत अच्छी प्रगति की है। मध्य प्रदेश में, लाडली लक्ष्मी तथा ऐसी ही अन्य कई योजनाओं ने शानदार सफलता हासिल की है। छत्ताीसगढ़ सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने में जो महती कार्य किया है, उसकी भी प्रशंसा की जानी चाहिए। कर्नाटक सरकार, सम्भवतया देश की पहली सरकार है जिसने विजन 2020 योजना बनाकर, उस पर कार्यान्वयन भी शुरु किया है। इसी प्रकार भाजपा शासन के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश पहला ‘कार्बन-न्यूटरल’ राज्य बनने जा रहा है, जबकि उत्ताराखण्ड ऊर्जा उत्पादन की महात्वाकांक्षी योजनाओं पर अमल कर रहा है। पंजाब में भी हम नए विकास कार्यक्रमों की पहल कर रहे हैं और हम आशा करते हैं कि हमारी नई झारखण्ड सरकार भी अच्छा काम करेगी। लेकिन इन सफलताओं का अर्थ यह नहीं है कि हम आत्मसंतुष्ट होकर बैठ जाएं। हमें अपने कार्य में निरंतर सुधार करते रहना होगा। अगर गैर-भाजपा शासित राज्यों में कुछ अनुकरणीय पहल दिखती है तो हमें उसे अपनाने से परहेज नहीं करना चाहिए।
कुछ नई पहलें
अब मैं कुछ नए कार्यक्रमों की चर्चा करना चाहता हूं जिन्हें पार्टी संगठन में आरंभ करने की हमारी योजना है।
1- हम प्रत्येक स्तर पर हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं, पार्टी के अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों की क्षमताओं का निर्माण करने के उद्देश्य से एक बड़ा राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने जा रहे हैं। इस प्रशिक्षण महा-योजना को शीघ्र ही अन्तिम रूप दिया जाएगा। मेरी अपेक्षा है कि पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो और परिणामोन्मुखी तरीके से पार्टी में सेवा करे। पार्टी के सभी स्तरों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक व्यापक पाठयक्रम भी शीघ्र ही तैयार किया जाएगा। बहुत शीघ्र हम ई-प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू करने जा रहे हैं। मैं यहां यह बता देना चाहता हूं कि पार्टी आगे से जिम्मेदारी देते समय कार्यकर्ताओं की क्षमता एवम् उनके कार्य निष्पादन को महत्व देने वाली है, अत: यह सभी के हित में है कि कार्यकर्ता शीघ्रातिशीघ्र प्रशिक्षित हों। मैं सभी राज्य इकाइयों से अनुरोध करता हूं कि वे अपने यहां पार्टी में प्रशिक्षण केन्द्रों के साथ-साथ अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करें।
2- हम अपनी पार्टी के सभी स्तरों पर पदाधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के कार्य की भी समीक्षा करेंगे। अच्छा काम करने वालों को सम्मानित किया जाएगा। सर्वश्रेष्ठ काम करने वाले सांसद, विधायक या विधान परिषद के सदस्य और नगर पार्षद तथा सरपंच को भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की योजना है। इस योजना का विस्तृत विवरण शीघ्र ही प्रस्तुत किया जाएगा। एक ओर जब कार्य करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा, तब कार्य न करने वालों को प्रेरणा भी मिलेगी। जैसाकि मैंने पहले संकेत दिया कि हमारी पार्टी में सभी की प्रगति, उसकी कार्य निष्पादनता पर निर्भर होगी। अत: मैं सभी पार्टी संगठन इकाइयों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और अपनी सरकारों को उनकी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने का सुझाव दे रहा हूं। ऐसी रिपोर्टों से न केवल वृह्तर उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करने में सहायता मिलेगी अपितु इससे पार्टी इकाइयों को अपना आकलन करना सम्भव करना होगा।
3- हम ‘फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी’ को पुन: शुरू करने वाले हैं; यह एक ऐसा मंच है जिसमें भाजपा के गैर-सदस्यों, हितैषियों को शामिल किया जाता है। सभी राष्ट्रभक्त नागरिक इस मंच में शामिल हो सकते हैं जो यह मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी भारत को एक जीवंत गणराज्य बनाने को सही मायने में आगे ले जा सकती है।
4- अपनी पार्टी को सषक्त बनाने के लिए हम सभी आधुनिक संचार सुविधाओं का उपयोग भी करेंगे। हमें इसका अहसास है कि तकनालॉजी की भी अपनी सीमाएं हैं। यह व्यक्तिगत सम्पर्क का स्थान नहीं ले सकती। फिर भी, हम एक परियोजना क्रमिक तौर पर आरंभ करेंगे, जिसे हमने ‘लोक संग्रह के लिए तकनालॉजी’ परियोजना का नाम दिया है। इसके जरिए हम युवा पीढ़ी तक पहुंचने का प्रयास करेंगे क्योंकि वे इस सुविधा का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं। अगर हम यह सुविधा उन्हें मुहैया करा दें, तो इसका उपयोग करके वे हमारे राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल हो सकेंगे।
5- मैं अपनी सभी राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे अपनी युवा विकास योजनाओं पर ध्यान दें ताकि ये योजनाएं युवाओं को अधिक रोजगार क्षमतावान, कुषल व समर्थ बना सकें।
6- मुझे गर्व है कि भारतीय जनता पार्टी एकमात्र पार्टी जिसमें महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है बावजूद इसके कि देष में महिला नेतृत्व वाली कई पार्टियां मौजूद हैं। पर यह आरक्षण ही काफी नहीं। हम सभी को यह सुनिष्चित करना होगा कि महिलाओं को और अधिक जिम्मेदारी मिले और हर कदम पर उनकी सहायता की जाए ताकि वे समर्थ बने। महिला सषक्तिकरण से ही सषक्त समाज की कल्पना साकार होगी।
7- समाज-नीति और संगठन में भी राष्ट्रवाद, विकास, गरीबी उन्मूलन, नैतिक मूल्य एवं अनुषासन यह हमारे नींव के पत्थर होंगे। हम संगठन में सामूहिक भाव से चलेंगे परन्तु अनुषासनहीनता सहन नहीं की जाएगी। ध्यान रहे कि लोग हमें परम्परागत मूल्यों वाली पार्टी के रूप में देखतें है। अत: हम भ्रष्टाचार को कतई बर्दाशत नहीं करेंगे।
अयोध्या में भव्य राममंदिर
भाजपा अयोध्या में भव्य भव्य राममंदिर बनाने के लिए कृत संकल्प है। इस हेतु एक राष्ट्रीय आंदोलन हो चुका है जिसमें अनेक कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहूति दी है। हालांकि न्यायालय में यह प्रकरण विचाराधीन है किन्तु न्यायालय द्वारा इसका संतोषजनक हल संभव नहीं लगता क्योंकि इसमें कोई जीतेगा तो कोई हारेगा। आज इस मंच से मैं, अपने मुस्लिम भाईयों से अपील करता हूं कि वे हिन्दुओं की भावनाओं के प्रति सहृदयता का परिचय देते हुए भव्य राम मंदिर बनाने का पथ प्रशस्त करने हेतु वे आगे आएं। इससे देष में भाईचारे एवं विकास के एक नये युग का सूत्रपात होगा।
भाजपा का भारत विज़न 2025
मैं कह सकता हूं कि भारत के पास प्राकृतिक और मानवीय सभी संसाधन मौजूद हैं, जिनके बलबूते पर यह देश पूर्ण विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम है। हम अपने साधनों का उपयोग करके बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं, स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाएं दे सकते हैं, सबके लिए घर व रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं और भारत के सौ करोड़ से अधिक लोगों को उज्जवल भविष्य दे सकते हैं। यदि ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है तो इसका एक ही कारण समझ में आता है – अच्छी नीतियों एवं सुशासन का अभाव। लेकिन भाजपा के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि गलत नीतियों का पालन करने के लिए दूसरों की बस आलोचना करते रहें; हमें उनकी जगह बेहतर नीतियां प्रस्तुत करने के लिए आगे आना होगा। हमें देश के समक्ष खड़ी समस्याओं के बारे में ही चर्चा नहीं करनी है, बल्कि उन समस्याओं से निपटने के लिए व्यावहारिक एवं कारगर समाधान प्रस्तुत करने में भी अग्रणी भूमिका निभानी होगी। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों का एक समूह गठित करने का निर्णय किया है जिसे भारत विजन-2025 (2025 का भारत) दस्तावेज तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इस समूह में पार्टी के वरिष्ठ नेता होंगे जिन्होंने केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है और वे भी रहेंगे जो राज्य सरकारों में मुख्यमंत्री, मंत्री के रूप में कार्यरत हैं या इन पदों पर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा सांसदों, विधायकों और मेयरों के साथ-साथ विषय का विशिष्ट ज्ञान रखने वाले लोगों को भी शामिल किया जाएगा जो भाजपा के समर्थक हैं। मैं सभी से अपील करता हूं कि वे इसके लिए अपने सुझाव भेजें।
इस अवसर पर आप सबसे मैं यह निवेदन भी करना चाहता हूं कि समाज के वंचित वर्गों-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों तक अपनी पूरी पहुंच बनाने में कोई कसर न छोड़ें। लोग उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो उनके दुखड़ों को सुनें और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में मददगार बन सकें। वे अवश्य ही हमसे जुड़ना चाहेंगे बशर्ते कि हम सही तरीके से उनके पास पहुंचे। याद रखें, इस बार हम असफल नहीं हो सकते। आइए हम मिलकर यह संकल्प करें कि नई पहल, नई शुरूआत के द्वारा अपने वोटों की हिस्सेदारी में कम से कम 10 प्रतिशत की वृध्दि करें।
हमें याद रखना चाहिए सबके सिर्फ सोचने भर से भारत एक महाशक्ति नहीं बन जाएगा। इसे सच साबित करने के लिए हमें अथक परिश्रम करना होगा। सार्वजनिक जीवन में आने की प्रेरणा या उद्देश्य का पुनरावलोकन करना होगा। हम सिर्फ यही क्यों चाहते हैं कि पार्टी में कोई पद मिल जाए, चुनाव में खड़े होने के लिए एक टिकट मिल जाए या मंत्रालय में कोई पद प्राप्त हो जाए आदि-आदि। क्या हम इससे भी उच्चतर उद्देश्य और राजनीति से भी अधिक शक्तिशाली किसी लक्ष्य से प्रेरणा प्राप्त नहीं कर सकते ? जैसे कि अपने वंचित बंधुओं के चेहरों पर मुस्कान लाना, किसानों की उस व्यथा का अन्त करना जिसके कारण हजारों किसानों को आत्महत्या करने पर बाध्य होना पड़ा, उस कुपोषण को समाप्त करना जिसकी वजह से हजारों जनजाति बच्चे मर रहे हैं, हमारे प्रतिभाशाली युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना। क्या भारत को फिर से ऐसा जाग्रत राष्ट्र बनाना लक्ष्य नहीं हो सकता जो हमें अभिप्रेरित कर सके?
मेरे प्रिय सहयोगियों, आगे का रास्ता आसान नहीं है। मार्ग में अनेक चुनौतियां हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख मैं पहले ही कर चुका हूं। हमें जल्दी सफलता की आशा नहीं करनी चाहिए, न ही सिर्फ उस उद्देश्य से काम करना चाहिए। अस्थायी असफलताओं से हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। तत्काल मिली उपलब्धियों से हमें अति उत्साहित भी नहीं होना चाहिए। हमारी सफलता की कसौटी यह होगी कि हम भारत को चहुंमुखी प्रगति के मार्ग पर ले जाने में कितना अधिक और कितनी जल्दी निर्धारित दिशा में बढ़ते हैं ताकि भारत अपना खोया गौरव एवं महानता पुन: प्राप्त कर सके।
हमें ऐसे भारत का निर्माण करना है, जो भूख से मुक्त हो, भय और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, और विषमता एवं हर प्रकार के अन्याय से भी मुक्त हो। हम भारत को स्वावलम्बी, सामर्थ्यवान और पराक्रमी बनाना चाहते हैं। हम ऐसा भारत बनाना चाहते हैं जिसके अन्दर शांति और सद्भाव हो और जो पूरे विश्व में शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे। एक ऐसा भारत जिसकी प्राचीन बौध्दिक-भौतिक शक्ति, सांस्कृतिक आलोक, सभ्यताजन्य प्रतिभा और आध्यात्मिक बल से पुन:र्जीवित करके जिसे नई अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक ले जाया जा सके।
. . . .याद रहे कि 21 वीं सदी निर्विवादित रूप से हिन्दुस्तान की है, हमारी महान भारतमाता की है !
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