अब भी अधूरी है शहीद बिरसा मुंडा का सपना


9 जून, शहादत दिवस पर विशेष
अंग्रेजों की शोषण नीति और असह्म परतंत्रता से भारत वर्ष को मुक्त कराने में अनेक महपुरूषों ने अपनी शक्ति और सामथ्र्य के अनुसार योगदान दिया. इन्हीं महापुरूषों की कड़ी का नाम है - 'भगवान बिरसा मुंडा'. 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' अर्थात हमारे देश में हमारा शासन का नारा देकर भारत वर्ष के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की हुकुमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके, सर नहीं झुकाया बल्कि जल, जंगल और जमीन के हक के लिए अंग्रेजी के खिलाफ 'उलगुलान' अर्थात क्रांति का आह्वान किया. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को चालकद ग्राम में हुआ. बिरसा मुंडा का पैतृक गांव उलिहातु था. इनके जन्म स्थान को लेकर यद्यपि इतिहासकारों में मतभेद है कि उनका जन्म स्थान चालकद है या उलिहातु. बिरसा का बचपन अपने दादा के गांव चालकद में ही बीता. सन 1886 ई0 से जर्मन ईसाई मिशन द्वारा संचालित चाईबासा के एक उच्च विद्यालय में बिरसा दाउद के नाम से दाखिल कराये गए क्योंकि इनके माता-पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था. बिरसा मुंडा को अपने भूमि, संस्कृति पर गहरा लगाव था. उन दिनों मुण्डाओं/मुंडा सरदारों के छिनी गई भूमि पर उन्हें दु:ख था या कह सकते हैं कि बिरसा मुण्डा आदिवासियों के भूमि आंदोलन के समर्थक थे तथा वे वाद-विवाद में हमेशा प्रखरता के साथ आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर हक की वकालत करते थे. पादरी डॉ0 नोट्रेट ने स्वर्ण का राज्य का हवाला देते हुए कहा कि यदि वे लोग ईसाई बने रहे तो और उनका अनुदेशों का पालन करते रहे तो मुंडा सरदारों की छिनी हुई भूमि को वापस करा देंगे. लेकिन 1886-87 में मुंडा सरदारों ने जब भूमि वापसी का आंदोलन किया तो इस आंदोलन को न केवल दबा दिया गया बलिक ईसाई मिशनरियों द्वारा इसकी भत्र्सना की गई जिससे बिरसा मुंडा को गहरा आघात लगा. उनकी बगावत को देखते हुए उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया. फलत: 1890 में बिरसा तथा उसके पिता चाईबासा से वापस आ गए.
1886 से 1890 तक बिरसा का चाईबासा मिशन के साथ रहना उनके व्यक्तितत्व का निर्माण काल था. 1890 में चाईबासा छोडऩे के बाद बिरसा और उसके परिवार ने जर्मन ईसाई मिशन की सदस्यता छोड़ दी क्योंकि मुंडाओं/सरदारों का आंदोलन मिशन के विरूद्ध था और लूथरन चर्च तथा कैथालिक मिशन ने आंदोलन का विरोध किया था. मुंडाओं ने ईसाई धर्म इसलिए अपनाया कि ईसाईयों ने यह भरोसा दिलाया था कि यदि वे ईसाई धर्म अपना लेंगे तो उनकी छिनी गई भूमि व विरासत उन्हें वापस दिला दी जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बिरसा मुंडा का संथाल विद्रोह, चुआर आंदोलन, कोल विद्रोह का भी व्यापक प्रभाव पड़ा. अपने जाति की दुर्दशा, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अस्मिता को खतरे में देख उनके मन में क्रांति की भावना जाग उठी. उन्होंने मन ही मन यह संकल्प लिया कि मुंडाओं का शासनव वे लायेंगे तथा अपने लोगों में जागृति पैदा करेंगे.
बिरसा मुंडा न केवल राजनीतिक जागृति के बारे में संकल्प लिया बल्कि अपने लोगों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागृति पैदा करने का भी संकल्प लिया. बिरसा ने गांव-गांव घुमकर लोगों को अपना संकल्प बताया. उन्होंने 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राजÓ (हमारे देश में हमार शासन) का बिगुल फूंका.
बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ उलगुलान का आह्वान किया. वे उग्र हो गये. शोषकों, ठेकेदारों और अंग्रेजी चाटुकारों को मार भगाने का आह्वान किया. पुलिस को भगाने की इस घटना से आदिवासियों का विश्वास बिरसा मुंडा पर होने लगा. विद्रोह की आग धीरे-धीरे पूरे छोटानागपुर में फैलने लगी. कोल लोग भी विद्रोह में शामिल हुए. लोगों को विश्वास होने लगा कि बिरसा मुंडा भगवान के दूत के रूप में शोषकों से मुक्ति के लिए स्वर्ग से यहां पहुंचे हैं. अब दिकुओं का राज समाप्त हो जाएगा एवं 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' कायम होगा. आदिवासी को यह पूर्ण रूप से विश्वास हो गया कि यदि वे सरकार के खिलाफ खड़े होंगे, सरकार का विद्रोह करेंगे तो उनका खोया हुआ राज भी वापस मिलेगा.
इस विद्रोह ने अंग्रेजी हुकूमत को झकझोर दिया. 22 अगस्त 1895 अंग्रेजी हुकूमत ने बिरसा मुंडा को किसी भी तरह गिरफ्तार करने का निर्णय लिया. जिला अधिकारियों ने बिरसा के गिरफ्तारी के संबंध में विचार-विमर्श किया. जिला पुलिस अधीक्षक, जीआरके मेयर्स को दंड प्रक्रिया संहिता 353 और 505 के तहत बिरसा मुंडा का गिरफ्तारी वारंट का तामिला करने का आदेश दिया गया. दूसरे दिन सुबह मेयर्स, बाबु जगमोहन सिंह तथा बीस सशस्त्र पुलिस बल के साथ बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करने चल पड़े. पुलिस पार्टी 8.30 बजे सुबह बंदगांव से निकली एवं 3 बजे शाम को चालकद पहुंची. बिरसा के घर को उन्होंने चुपके से घेर लिया. एक कमरे में बिरसा मुंडा आराम से सो रहे थे. काफी मशक्कत के बाद बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया. उन्हें संध्या 4 बजे रांची में डिप्टी कलक्टर के सामने पेश किया गया. रास्ते में उनके पीछे भीड़ का सैलाब थी. भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी. ब्रिटिश अधिकारी को आशंका थी उग्र भीड़ कोई उपद्रव न कर बैठे. लेकिन बिरसा मुंडा ने भीड़ को समझाया. बिरसा मुंडा के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. मुकदमा चलाने का स्थान रांची से बदलकर खूंटी कर दिया गया. बिरसा को राजद्रोह के लिए लोगों को उकसाने के आरोप में 50/- रुपये का जुर्माना तथा दो वर्ष सश्रम कारावास की सजा दी गई. उलगुलान की आग जरूर दब गई लेकिन यह चिंगारी बनकर रह गई जो आगे चलकर विस्फोटक रूप धारण किया. 30 नवम्बर 1897 के दिन बिरसा को रांची जले से छोड़ दिया गया.सारांश यहाँ
24 दिसम्बर 1899 को 'उलगुलान' पुन: प्रारंभ कर दिया गया. सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर थाने और रांची जिले के खूंटी, करी, तोरपा, तमाड़ और बसिया थाना क्षेत्रों में उलगुलान की आग दहक उठी. क्रांतिकारियों ने ईसाईयों की भीड़ और गिरजा घरों में तीन चलाये. बसिया में ईसाई मिशन पर तीरों की बौछार की गई. इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र बिंदू खूंटी थाना क्षेत्र था. 07 जनवरी 1900 की बैठक के बाद विद्रोही करीब दस बजे दिन में खूंटी के लिए रवाना हो गये. विद्रोहियों ने खूंटी थाना में हमला कर दिया. थाने में घिरे कांस्टेबलों ने आगे बढ़ते भीड़ पर दो राउंड गोली चलाई पर गोली किसी को नहीं लगी. इससे बिरसा के अनुयायियों को यह विश्वास हो गया कि बिरसा की वाणी सत्य है. गोली नाकामयाब हो जाएगी. इससे विद्रोहियों की हिम्मत बढ़ी और उन्होंने पुलिस पर सिपाही की हत्या भीड़ ने कर दी. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को अंदर से झकझोर दिया. 9 जनवरी 1900 को डोम्बारी से कुछ दूर सैंको से करीब तीन मील उत्तर में सईल रैकब पहाड़ी पर विद्रोहियों की सभा हो रही थी. सभा में तीन, धनुष, भाला, टांगी, गुलेलों से लैस बिरसा के अनुयायियों एवं विद्रोहियों के अंदर अंग्रेजों एवं शोषकों के खिलाफ लड़ाई लडऩे का जज्बा अंतिम चरण में था. तभी पुलिस पार्टी ने उस सभा के सामने आकर विद्राहियों को आत्म समर्पण एवं हथियार डालने को कहा. इतने में ही बिरसा मुंडा का दूसरे सबसे बड़े भक्त नरसिंह मुंडा सामने आकर ललकारते हुए कहा कि 'हमलोगों का राज है, अंग्रेजों का नहींÓ 'अगर हथियार रख देने का सवाल है तो मुण्डाओं को नहीं, अंग्रेजों को हथियार रख देना चाहिए. और अगर लडऩे की बात है तो वे खून के आखिरी बूंद तक लडऩे को तैयार है.Ó तब अंग्रेजी सेना ने भीड़ पर आक्रमण किया और विद्रोहियों को अंग्रेजों ने क्रुरता के साथ दमन किया. लेकिन विद्रोहियों ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये. सईल रकब रकब पहाड़ी पर इस आक्रमण में 40 से लेकर 400 की संख्या में मुंडा लोग लड़ाई में मारे गये. विद्रोहियों पर इस घटना के बाद दमन और तेज हो गया. विद्रोहियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. 03 फरवरी 1900 ई को 500/- रुपये के सरकारी ईनाम के लालच में जीराकेल गांवों के सात व्यक्तियों ने बिरसा मुंडा के गुप्त स्थान के बारे में अंग्रेजों को बताकर धोखे से पकड़ लिया गया. बिरसा को पैदल ही खूंटी के रास्ते रांची पहुंचा दिया गया. हजारों की भीड़ ने तथा बिरसा के अनुयायियों ने बिरसा जिस रास्ते से ले जाया गया उनका अभिवादन किया. 1 जून 1900 को डिप्टी कमिश्नर ने ऐलान किया कि बिरसा मुंडा को हैजास हो गया तथा उनके जीवित रहने की कोई संभावना नहीं है. अंतत: 9 जून 1900 को बिरसा ने जेल में अंतिम सांस ली. बिरसा मुंडा के सपनों की भूमि पर आज विस्थापन का दंश लोग झेल रहे हैं. विकास के नाम पर औद्योगिकीकरण का रास्ता खुल रहा है लेकिन जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए कोई नीति या मसौदा तैयार नहीं है. सामाजिक परम्पराएं, सांस्कृतिक धरोहर बिखने लगी है. समाजवादी ढांचे का आदिवासी समाज पूंजीवादी ताकतों का दंश झेलने पर विवश है. क्या यहां आत्ममंथन करना जरूरी नहीं कि वर्तमान झारखण्ड की स्थिति और बिरसा मुंडा के सपना 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राजÓ कितना प्रासांगिक है? आगे पढ़ें के आगे यहाँ
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बच्ची से बलात्कार के आरोप में इटली में एक और भारतीय पादरी धराया…

स्वामी नित्यानन्द भी इसे पढ़कर शर्मा जायेंगे, क्योंकि वे तो बालिग और सोच-समझ रखने वाली लड़कियों से उनकी मर्जी से सम्बन्ध बनाते थे, जबकि पूरे यूरोप में चर्च के पादरी एक के बाद छोटे-छोटे बच्चों (खासकर लड़कों) के साथ यौन शोषण में लिप्त हैं… उन सभी के पापा यानी “पोप” खुद इन मामलों को दबाने-छिपाने के दोषी पाए गये हैं… और फ़िर भी इधर भारत में सेकुलर गधे, हिन्दुओं को ही नैतिकता का पाठ पढ़ाये जा रहे हैं… पूरी खबर यहाँ पढ़िये…

http://timesofindia.indiatimes.com/india/Indian-priest-accused-of-paedophilia-under-house-arrest-in-Italy-/articleshow/5820083.cms
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सेवा भावना नही सेक्स भावना से काम करता हैं चर्च

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च की दया, शाति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गई। जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च का क्रूर-अनैतिक चेहरा सामने आया, तब 'विशेषाधिकार' का कवच उठाया गया।


कैथोलिक चर्च ने नई परिभाषा गढ़ दी कि उनके धर्मगुरु पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर न तो मुकदमा चल सकता है और न ही उनकी गिरफ्तारी संभव हो सकती है। इसलिए कि पोप बेनेडिक्ट न केवल ईसाइयों के धर्मगुरु हैं, बल्कि वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। एक राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी हो ही नहीं सकती है। जबकि अमेरिका और यूरोप में कैथलिक चर्च और पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी को लेकर जोरदार मुहिम चल रही है। न्यायालयों में दर्जनों मुकदमें दर्ज करा दिए गए हैं और न्यायालयों में उपस्थित होकर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें को आरोपों का जवाब देने के लिए कहा जा रहा है।


यह सही है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के पास वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष का कवच है। इसलिए वे न्यायालयों में उपस्थित होने या फिर पापों के परिणाम भुगतने से बच जाएंगे, लेकिन कैथोलिक चर्च और पोप की छवि तो धूल में मिली ही है। इसके अलावा चर्च में दया, शाति और कल्याण की भावना जागृत करने की जगह दुष्कर्मो की पाठशाला कायम हुई है, इसकी भी पोल खुल चुकी है।

चर्च पादरियों द्वारा यौन शोषण के शिकार बच्चों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया गया और न ही यौन शोषण के आरोपी पादरियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है। इस पूरे घटनाक्रम को अमेरिका-यूरोप की मीडिया ने 'वैटिकन सेक्स स्कैंडल' का नाम दिया हैं।

कुछ दिन पूर्व ही पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड में चर्च पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामले प्रकाश में आने पर इस कुकृत्य के लिए माफी मागी थी।


पोप पर आरोप

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर कोई सतही नहीं, बल्कि गंभीर और प्रमाणित आरोप हैं, जो उनकी एक धर्माचार्य और राष्ट्राध्यक्ष की छवि को तार-तार करते हैं।


अब सवाल यह है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर आरोप हैं क्या? पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर दुष्कर्मी पादरियों को संरक्षण देने और उन्हें कानूनी प्रक्रिया से छुटकारा दिलाने के आरोप हैं। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने कई पादरियों को यौन शोषण के अपराधों से बचाने जैसे कुकृत्य किए हैं, लेकिन सर्वाधिक अमानवीय, लोमहर्षक व चर्चित पादरी लारेंस मर्फी का प्रकरण है। लारेंस मर्फी 1990 के दशक में अमेरिका के एक कैथोलिक चर्च में पादरी थे। उस कैथलिक चर्च में अनाथ, विकलाग और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए एक आश्रम भी था।


पादरी लारेंस मर्फी पर 230 से अधिक बच्चों का यौन शोषण का आरोप है। सभी 230 बच्चे अपाहिज और मानसिक रूप से विकलाग थे। इनमें से अधिकतर बच्चे बहरे भी थे। मानिसक रूप से बीमार और अपाहिज बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की धटना सामने आने पर अमेरिका में तहलका मच गया था। कैथोलिक चर्च की छवि के साथ ही साख पर संकट खड़ा हो गया था। कैथोलिक चर्च में विश्वास करने वाली आबादी इस घिनौने कृत्य से न केवल आक्रोशित थी, बल्कि कैथोलिक चर्च से उनका विश्वास भी डोल रहा था।


कैथोलिक चर्च को बच्चों के यौन उत्पीड़न पर संज्ञान लेना चाहिए था और सच्चाई उजागर कर आरोपित पादरी पर अपराधिक दंड संहिता चलाने में मदद करनी चाहिए थी, लेकिन कैथोलिक चर्च ने ऐसा किया नहीं। कैथोलिक चर्च को इसमें अमेरिकी सत्ता की सहायता मिली। विवाद के पाव लंबे होने से कैथलिक चर्च की नींद उड़ी और उसने आरोपित पादरी लारेंस मर्फी पर कार्रवाई के लिए वेटिकन सिटी और पोप को अग्रसारित किया था।


पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उस समय नाम कार्डिनल जोसेफ था और वैटिकन सिटी के उस विभाग के अध्यक्ष थे, जिनके पास पादरियों द्वारा बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न किए जाने की जाच का जिम्मा था। पोप बेनेडिक्ट ने पादरी लारेंस मर्फी को सजा दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। बात इतनी भर थी नहीं। बात इससे आगे की थी। मामले को रफा-दफा करने की पूरी कोशिश हुई। लारेंस मर्फी को अमेरिकी काूननों के तहत गिरफ्तारी और दंड की सजा में रुकावटें डाली गई।


वेटिकन सिटी का कहना था कि पादरी लारेंस मर्फी भले आदमी हैं और उन पर दुर्भावनावश यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं। इसमें कैथोलिक चर्च विरोधी लोगों का हाथ है, जबकि मर्फी पर लगे आरोपों की जाच कैथोलिक चर्च के दो वरिष्ठ आर्चविशपों ने की थी। सिर्फ अमेरिका तक ही कैथोलिक चर्च में यौन शोषण का मामला चर्चा में नहीं है, बल्कि वैटिकन सिटी में भी यौन शोषण के कई किस्से चर्चे में रहे हैं।

पुरुष वेश्यावृति के मामले में भी वेटिकन सिटी घिरी हुई है। वैटिकन सिटी में पादरियों द्वारा पुरुष वैश्यावृति के राज पुलिस ने खोले थे। वेटिकन धार्मिक संगीत मंडली के मुख्य गायक टामस हीमेह और पोप बेनेडिक्ट के निजी सहायक एंजलो बालडोची पर पुरुष वैश्या के साथ संबंध बनाने के आरोप लगे थे।


दुष्कर्मी पादरी भारत में भी!

यौन शोषण के आरोपित पादरियों के नाम बदले गए। उन्हें अमेरिका-यूरोप से बाहर भेजकर छिपाया गया, तकि वे आपराधिक कानूनों के जद में आने से बच सकें। खासकर अफ्रीका और एशिया में ऐसे दर्जनों पादरियों को अमेरिका-यूरोप से निकालकर भेजा गया, जिन पर बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप थे। एक ऐसा ही पादरी भारत में कई सालों से रह रहा है। रेवरेंड जोसेफ फ्लानिवेल जयपाल नामक पादरी भारत में कार्यरत है। जयपाल पर एक चौदह वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म करने सहित ऐसे दो अन्य आरोप हैं। अमेरिका के एक चर्च में जयपाल ने वर्ष 2004 में एक अन्य ग्रामीण युवती के साथ बलात्कार किया था। वेटिकन और पोप की कृपा से जयपाल भाग कर भारत आ गया। इसलिए कि बलात्कार की सजा से छुटकारा पाया जा सके। अमेरिकी प्रशासन को जयपाल का अता-पता खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। अमेरिकी प्रशासन के दबाव में वेटिकन ने जयपाल का पता जाहिर किया। वेटिकन ने मामला आगे बढ़ता देख जयपाल को कैथोलिक चर्च से बाहर निकालने की सिफारिश की थी, लेकिन भारत स्थित आर्चविशप परिषद ने जयपाल की बर्खास्ती रोक दी। अमेरिकी प्रशासन जयपाल के प्रत्यर्पण की कोशिश कर रहा है, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन पर मानवाधिकारवादियों का भारी दबाव है, लेकिन जयपाल ने अमेरिका जाकर यौन अपराधों का सामना करने से इनकार कर दिया है।


कैथलिक चर्च के भारतीय आर्चविशपों द्वारा बलात्कारी पादरी जयपाल का संरक्षण देना क्या उचित ठहराया जा सकता है? क्या इसमें भारतीय आर्चविशपों की सरंक्षणवादी नीति की आलोचना नहीं होनी चाहिए। कथित तौर पर कुकुरमुत्ते की तरह फैले मानवाधिकार संगठनों के लिए भी जयपाल कोई मुद्दा क्यों नहीं बना?


रंग लाएगी जनता की मुहिम

अमेरिका-यूरोप में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे की माग जोर से उठ रही है। जगह-जगह प्रदर्शन भी हुए हैं। इंग्लैंड सहित अन्य यूरोपीय देशों में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की यात्राओं में भारी विरोध हुआ है। अनैतिक कृत्य को संरक्षण देने के लिए पोप से इस्तीफा देकर पश्चाताप करने का जनमत तेजी से बन रहा है। पोप के खिलाफ जनमत की इच्छा शायद ही कामयाब होगी। पोप के इस्तीफे का कोई निश्चित संविधान नहीं है। पर इस्तीफे जुड़े कुछ तथ्य हैं, लेकिन ये स्पष्ट नहीं हैं। वर्ष 1943 में पोप पायस बारहवें ने एक लिखित संविधान बनाया था, जिसका मसौदा था कि अगर पोप का अपहरण नाजियों ने कर लिया तो माना जाना चाहिए कि पोप ने त्यागपत्र दे दिया है और नए पोप के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। अब तक न तो नाजियों और न ही किसी अन्य ने किसी पोप का अपहरण किया है। इसलिए पोप पायस बारहवें के सिद्धात को अमल में नहीं लाया जा सका है।


पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर यह निर्भर करता है कि वे त्यागपत्र देंगे या नहीं, पर वेटिकन सिटी की विभिन्न इकाइयों और विभिन्न देशों के कैथोलिक चर्च इकाइयों में अंदर ही अंदर आग धधक रही है। कैथोलिक चर्च की छवि बचाने के लिए कुर्बानी देने के सिद्धात पर जोर दिया जा रहा है। जर्मन रोमन चर्च ने भी पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।


जर्मन रोमन चर्च का कहना है कि वेटिकन सिटी और पोप बेनेडिक्ट ने यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और उनके परिजनो के लिए कुछ नहीं किया है। वेटिकन सिटी में भी यौन शोषण के शिकार बच्चों के परिजनों ने प्रदर्शन और प्रेसवार्ता कर पोप बेनेडिक्ट के आचरणों की निंदा करने के साथ ही साथ न्याय का सामना करने के लिए ललकारा है।


दलदल में कैथोलिक चर्च

आरएल फ्रांसिस। आजकल कैथोलिक धर्मासन पर विराजमान लोग गहन चिंतन में पड़े हुए हैं। उनकी चिंता का मुख्य कारण है वर्तमान चर्च के 'पुरोहितों में व्याप्त यौनाचार'। पुरोहितों में यौन कुंठाओं के पनपते रहने से वे मानसिक रूप से चर्च की अनिवार्य सेवाओं से मुंह मोड़ने लगे हैं। इसका असर कैथोलिक विश्वासियों में बढ़ते आक्रोश के रूप में देखा जा सकता है। विश्वासियों द्वारा चर्च की मर्यादाओं को बरकरार रखने की माग बढ़ती जा रही है और इस आदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप हासिल कर लिया है। इस आदोलन में कैथोलिक युवा वर्ग अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

अमेरिका के रोमन कैथोलिक चर्च के छह करोड़ 30 लाख अनुयायी हैं यानी अमेरिका की कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग कैथोलिक अनुयायियों का है। साथ ही यहा के बिशपों एवं कार्डीनलों का वेटिकन [पोप] पर सबसे अधिक प्रभाव है। जब कभी नए पोप का चुनाव होता है तो यहा के कार्डीनलों के प्रभाव को साफ देखा जा सकता है। यहा के कैथोलिक विश्वासी चर्च अधिकारियों की कारगुजारियों के प्रति अधिक सचेत रहते हैं। वर्तमान समय में विश्वभर के कैथोलिक धर्माधिकारियों, पुरोहितों में तीन 'डब्ल्यू' यानी वैल्थ, वाइन एंड वूमेन का बोलबाला है। इस प्रकार का अनाचार कैथोलिक चर्च के अंदर लगातार घर कर रहा है।


चारों और से सेक्स स्कैंडलों में घिरते वेटिकन ने अपने बचाव के लिए अमेरिका की यहूदी लाबी और इस्लामिक संगठनों को अपने निशाने पर ले लिया है। अब यह प्रश्न भी उठने लगा है कि वेटिकन एक राज्य है या केवल उपासना पंथ का एक मुख्यालय? क्यों पोप को एक धार्मिक नेता के साथ-साथ राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा दिया जाता है? क्यों वेटिकन संयुक्त राष्ट्र संघ में पर्यवेक्षक है? क्यों वेटिकन को दूसरे देशों में अपने राजदूत नियुक्त करने का अधिकार मिला है? क्यों वेटिकन किसी भी देश के कानून से ऊपर है?


अब समय आ गया है कि वेटिकन को अपने साम्राज्यवाद को रोककर आत्मशुद्धि की तरफ बढ़ना चाहिए। आतीत में की गई अपनी गलतियों को मानते हुए भविष्य में उसे न दोहराने का कार्य करना चाहिए। अपने को राष्ट्र की बजाय धार्मिक मामलों तक सीमित रखना चाहिए।

सभार दैनिक जागरण

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इलेक्ट्रोनिक मीडिया का काम समझ में नहीं आता

आजकल एक चैनल दिनभर ब्रकिंग न्यूज ही दिखाता रहता है. समझ में तो ये नहीं आता कि ये न्यूज चैनल 'समाचार किसे कहते हैं. समय समय पर मीडिया के रोल पर सवाल भी उठते रहते हैं. सवाल उठना भी वाजिब है. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि मैं प्रिंट मीडिया की नहीं मैं तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात कर रहा हूं. भारत में प्रिंट मीडिया का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी शैशवकाल में हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया हमारे समाज के आइने के समान है. लेकिन पिछले 8 सालों में जितने भी इलेक्ट्रोनिक मीडिया खुले है. उससे तो एक बात साफ है कुछ को छाड़ दे तो सभी का काम पैसा कमाना ही है. आज मीडिया का काम पैसा कमाना ही है.
आज मीडिया अपना असल काम ही भूल गई है. सानिया और शोएब की शादी ने जितने न्यूज बटोरे है और इस कंट्रोवर्सी को सभी न्यूज चैनल ने 24 घंटे दिखाया. लेकिन इस बीच दंतेवाड़ा में 80 से ज्यादा जवान शहीद हो गये तो किसी भी न्यूज चैनल ने ऐसी रिपोर्टिंग नहीं कि जैसी की जानी थी. आप ही बोलिए जितने समय में आपने सानिया-शोएब का ड्रामा देखा, जितने उनके बारे में जाना क्या आप दंतेवाड़ा में मारे गए शहीदों के बारे में जान पाए हैं? नहीं ना. मैं स्पष्ट भी कर सकता हूं आप किसी एक शहीद का नाम बताइये आप नहीं बता पायेंगे.
आप न्यूज चैनल किसे कहेंगे. उस चैनल को जो भूतों पर भी एक घंटे का स्पेशल एपीसोड चलाते हैं. हद तो तब लगती है जब एक न्यूज चैनल ने अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा की स्वास्थ्य यानी सेहत का राज वाला एक अफ्रिकी सेब खोज निकाला फिर क्या दिन भर में 20 बार हमने वो समाचार देखें. हाल ही में अखण्ड भारत का सबसे बड़ा महाकुंभ का समापन हुआ करोड़ों लोग इसमें शामिल हुए. फिर भी इसे सारे मीडिया ने नजर अंदाज किया. थोड़े-थोड़े समाचार और विशेष बुलेटिन को छोड़कर किसी ने इसकी गहराई से आम जनता तक लाने की कोशिश भी नहीं की खैर आम जनता तो जानती है फिर भी दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से कई गुणा बड़ा यह कुंभ था बगैर किसी सुख सुविधा के यह कुंभ संपन्न हो गया ओर सफल भी रहा. खबरो का चुनाव कैसे करना है या खबर कौन सी लेनी है यह मीडया अच्छी तरह जानती है. लेकिन शायद विज्ञापन और टीआरपी के पीछे मीडिया भाग रही है. खबर का असर किस पर होता है उसका आप पर या सरकार पर. मीडिया का काम सच उजागर करना है और वो कहां तक सफल हुए है आप ही जानते हैं. लेकिन भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी सफल नहीं हुई है शहर से गांवों तक मीडिया को जाना होगा. टोना टोटका, जादू, भूत और साधु महात्मा वाले प्रोग्राम को बंद कर असल बिंदू पर आना होगा.
-चंदन कुमार साहू
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जमशेदपुर में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् का अपमान

जमशेदपुर। 'वंदे मातरम्', एक ऐसा शब्द जिसके ओजपूर्ण स्वर से ही रग-रग में देशभक्ति का जोश पैदा हो जाता है। इस गीत का गान करते हुए हजारों देशभक्त देश पर कुर्बान हो गए लेकिन विग इंग्लिश स्कूल, छोटा गोविंदपुर में बच्चों को जो डायरी दी गई है, उसमें बंकिमचंद्र चटर्जी की कालजयी रचना 'वंदे मातरम्' की पंक्तियों के साथ ऐसा मजाक किया गया है कि बंकिमचंद्र की आत्मा भी कराह उठे। जब यह मामला प्रकाश में आया तो स्कूल प्रबंधन अब मुंह छिपाए घूम रहा है। उधर, राज्य के शिक्षा मंत्री हेमलाल मुर्मू को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने कहा कि मामले को गंभीरता से लिया जाएगा। यह भारतीयों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। अगर जांच में स्कूल प्रबंधन दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इधर, पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त रबीन्द्र कुमार अग्रवाल ने कहा कि अभी उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। संज्ञान में आते ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
विग इंग्लिश स्कूल के प्राचार्य जेके बनर्जी ने माना कि गंभीर चूक है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि छापने वाला गलत छाप दिया तो मैं क्या करूं। यह जानते हुए कि राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' गलत छपा है, स्कूल प्रबंधन ने छात्रों के बीच डायरी वितरित कर दी। दो महीने बीत जाने के बावजूद स्कूल प्रबंधन को यह पता भी नहीं है कि डायरी में जो राष्ट्रगीत छपा है, वह गलत है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कोल्हान विभाग प्रमुख अमिताभ सेनापति ने कहा कि राष्ट्रगीत का अपमान देशद्रोह के समान है। उन्होंने विद्यालय प्रबंधन को चेताते हुए कहा कि अगर जल्द सुधार नहीं किया गया तो एबीवीपी उग्र आंदोलन करेगा।
डायरी में छपे राष्ट्रगीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं ---
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजभीतलां
भास्यभयामलां मांतरम्
भाुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्-
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल भाोभिनीम्
सुखदां वरदां मातरम्

साभार-दैनिक जागरण
चंदन कुमार
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पाक में हिंदू लड़की को जबरन इस्लाम कुबूल कराए जाने का दावा

इस्लामाबाद ।। पाकिस्तान के प्रमुख वाधिकार कार्यकर्ता अंसामानर बर्नी ने मुल्क के पंजाब प्रान्त में एक हिन्दू लड़की को अगवा करके उससे जबरन इस्लाम कुबूल करवाए जाने का शुक्रवार को दावा किया ।
बर्नी का कहना है कि उनके संगठन अंसार बर्नी ट्रस्ट इंटरनैशनल को रहीम यार खां जिले के लियाकतपुर स्थित काची मंडी में मेंघा राम की 15 साल की बेटी गजरी को 21 दिसम्बर 2009 को उसके मुस्लिम पड़ोसी द्वारा अगवा किए जाने का पता लगा है।
बर्नी ने कहा कि तलाश करने पर गजरी के माता-पिता को मालूम हुआ कि उनकी बेटी की शादी करवाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाया गया है और इस वक्त वह दक्षिणी पंजाब स्थित एक मदरसे में दुश्वारियों भरी जिंदगी जी रही है। उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन लड़की के अपहरण के मामले पर टिप्पणी से इनकार कर रहा है।
देश के मानवाधिकार मंत्री रह चुके बर्नी ने एक गैर मुस्लिम लड़की को जबरन इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करने की घटना की निंदा करते हुए उसे फौरन मुक्त करने की मांग की है
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चूंकि आंध्रप्रदेश में गिराया गया मन्दिर, बाबरी ढाँचा नहीं है, इसलिये सेकुलर रुदालियाँ रोने वाली नहीं है…

विगत 17 मार्च को ईसाईयों के एक समूह ने सेमुअल राजशेखर रेड्डी के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में एक कदम और उठाया। आंध्रप्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के मंगलागुण्टा में एक 100 साल पुराना मन्दिर कुछ ईसाई युवकों द्वारा ढहा दिया गया (यह राम मन्दिर है और दलितों की बस्ती में स्थित है)। स्थानीय लोगों का आरोप है कि तहसीलदार की भी इसमें मिलीभगत है। शुरुआत में तो पुलिस ने भी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी की, फ़िर भी बाकायदा नामजद FIR दर्ज की गई है जिसमें मन्दिर गिराने वाले ईसाई युवकों के नाम दिये गये हैं…। पहले भी मन्दिर गिराने की ऐसी कोशिशों का प्रतिरोध किया गया था, लेकिन इस वर्ष रामनवमी उत्सव (24 मार्च) की तैयारियों के बीच एक हमले में 16 मार्च को यह मन्दिर गिरा दिया गया। ईसाईयों ने न सिर्फ़ मन्दिर गिराया बल्कि राम की मूर्ति भी तोड़ दी। इसके बाद हरिजन रामालय सुरक्षा समिति के सदस्यों पर प्राणघातक हमला भी किया गया।

तेलुगु अखबार की कटिंग



दर्ज की गई FIR की प्रति, जिसमें ईसाई युवकों के नाम दिये गये हैं…





अब दिक्कत यह है कि इस मामले पर रोनाधोना मचाने वाली सेकुलर और वामपंथी रुदालियाँ इसलिये चुप हैं क्योंकि यह बाबरी ढाँचा नहीं है… सिर्फ़ एक मन्दिर है और विधर्मियों द्वारा मन्दिरों के तोड़े जाने पर हल्ला मचाने की परम्परा हमारे यहाँ नहीं है…

खबर यहाँ देखें…
http://www.crusadewatch.org/index.php?option=com_content&task=view&id=1066&Itemid=90
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चर्च लगा है हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने में और मिडीया का है मौन सर्मथन

जिस तरह से कुछ दिन से सिर्फ हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने का काम किया जा रहा है उसका पर्दाफाश मैंगलोर पुलिस ने किया है इस सिलसिले में पुलिस नें तीन आदमी को हिरासत में लिया और उसके चौकस पर डंडा मारने पर उसने जो बातें बताई वह चौकाने बाला था।

पुलिस के द्वारा पकराये गये तीनों आरोपियों ने बताया कि वह किस तरह से चर्च के इशारा पर हिन्दु साधु-सन्यासियों को डुप्लिकेट का सेक्स विडीयों बना कर उन्हें बदनाम करने का कोशिश करता है इस काम के लिये चर्च से उसे पैसा मिलता हैं।

इस सभी घटना कर्म में सबसे चौकाने बाली बात यह है कि जो मिडीया हिन्दु साधु-सन्यासियों को बदनाम करने बाला विडीयों दिन भर दिखाता था वही मिडीया इस खबर में चुप्पी साधे बैठा है। मिडीया के इस चुप्पी को चर्च का मैन समर्थन माना जाना चाहिये।

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धर्मनिरपेक्षतावादी बयानों का विरोधाभास देखिये::कांग्रेस पार्टी का असली चेहरा

1.हजारों सिखों का कत्लेआम – एक गलती और कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार – एक राजनैतिक समस्या
2. गुजरात में कुछ हजार लोगों द्वारा मुसलमानों की हत्या – एक विध्वंस और बंगाल में गरीब प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी – गलतफ़हमी
3. गुजरात में “परजानिया” पर प्रतिबन्ध – साम्प्रदायिक, और “दा विंची कोड” और “जो बोले सो निहाल” पर प्रतिबन्ध – धर्मनिरपेक्षता
4. कारगिल हमला – भाजपा सरकार की भूल और चीन का 1962 का हमला – नेहरू को एक धोखा
5. जातिगत आधार पर स्कूल-कालेजों में आरक्षण – सेक्यूलर और अल्पसंख्यक संस्थाओं में भी आरक्षण की भाजपा की मांग – साम्प्रदायिक
6. सोहराबुद्दीन की फ़र्जी मुठभेड़ – भाजपा का सांप्रदायिक चेहरा ओर ख्वाजा यूनुस का महाराष्ट्र में फ़र्जी मुठभेड़ – पुलिसिया अत्याचार
7. गोधरा के बाद के गुजरात दंगे - मोदी का शर्मनाक कांड और मेरठ, मलियाना, मुम्बई, मालेगांव आदि-आदि-आदि दंगे - एक प्रशासनिक विफ़लता
8. हिन्दुओं और हिन्दुत्व के बारे बातें करना – सांप्रदायिक ओर इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बातें करना – सेक्यूलर
9. संसद पर हमला – भाजपा सरकार की कमजोरी और अफ़जल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद फ़ांसी न देना – मानवीयता
10. भाजपा के इस्लाम के बारे में सवाल – सांप्रदायिकता ओर कांग्रेस के “राम” के बारे में सवाल – नौकरशाही की गलती
11. यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीती – सोनिया को जनता ने स्वीकारा ओर मोदी गुजरात में चुनाव जीते – फ़ासिस्टों की जीत
12. सोनिया मोदी को कहती हैं “मौत का सौदागर” – सेक्यूलरिज्म को बढ़ावा ओर जब मोदी अफ़जल गुरु के बारे में बोले – मुस्लिम विरोधी
क्या इससे बड़ी दोमुंही, शर्मनाक, घटिया और जनविरोधी पार्टी कोई और हो सकती है?
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केरल के इदुक्की जिले में दंगा – किसी सेकुलर न्यूज़ चैनल पर कोई खबर नहीं…

केरल के इदुक्की जिले का व्यापारिक मुख्यालय थोडुपुज़ा में गत शुक्रवार को उग्र मुस्लिमों की भीड़ ने जमकर दंगा मचाया, कई दुकानों में आग लगाई और लूटपाट की। जुमे की नमाज़ के बाद मस्जिदों से बाहर निकले सैकड़ों मुसलमान इस बात पर आरोप लगा रहे थे कि स्थानीय न्यूमैन कॉलेज बी कॉम के एक प्रश्नपत्र में पैगम्बर मोहम्मद और अल्लाह के बारे में अपमानजनक प्रश्न पूछा गया है, लेकिन जैसा कि हमेशा होता है मुसलमानों का किसी लोकतान्त्रिक पद्धति पर विश्वास तो है नहीं, न कोई पुलिस रिपोर्ट, न कॉलेज प्रशासन से कोई शिकायत की, बस पागल की तरह उठे और जुमे की नमाज़ के बाद दंगा मचाना शुरु कर दिया।

इस दंगे में कई पुलिसवाले और मासूम राहगीर जख्मी हुए, तथा दंगाईयों ने थोडुपुझा के श्रीकृष्ण स्वामी मन्दिर के मुख्य द्वार को भी तोड़ दिया (यानी शिकायत कॉलेज प्रशासन से, लेकिन निशाना हिन्दुओं पर… इस प्रकार के ठस लोग हैं ये)। सड़क चलती महिलाओं और 12वीं की परीक्षा देने जा रहे विद्यार्थियों को भी नहीं छोड़ा गया और जमकर पीटा गया।


केरल की “कमीनिस्ट” सरकार के पुलिस अधिकारियों ने प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ पर केस दर्ज किया है, जबकि कॉलेज के अन्य प्रोफ़ेसरों का कहना है कि अकेले जोसेफ़ को दोषी ठहराना ठीक नहीं, क्योंकि प्रश्नपत्र तैयार करने वाली एक कमेटी होती है।

इस मामले में पेंच यह है कि न्यूमैन कॉलेज की स्थापना डायोसीज़ ऑफ़ कोठामंगलम द्वारा कार्डिनल न्यूमैन की याद में की गई थी। आशंका व्यक्त की जा रही है कि ईसाईयों के एक ग्रुप ने जानबूझकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच दंगा फ़ैलाने के लिये यह चाल खेली है। दीपिका.कॉम नामक मलयाली वेबसाईट ने चतुराईपूर्ण तरीके से जोसफ़ को सीपीएम का सदस्य बताकर इस मामले से “चर्च” की भूमिका को गायब कर दिया। इस प्रकार की “हरकत” और शरारत लगातार जारी रहेगी… अमूमन अनपढ़ मुस्लिमों में दिमाग तो घुटने से भी नीचे ही होता है, किसी मुल्ला ने शुक्रवार को कुछ बका और ये निकल पड़े हथियार लेकर बिना कुछ सोचे-समझे।

इस मामले में ईसाई बेहद चालाक हैं, पहले मुस्लिम और ईसाई अलग-अलग होकर हिन्दुओं को मारेंगे, फ़िर बाद में आपस में लड़ेंगे…। वैसे तो पूरी दुनिया में ईसाईयों ने मुस्लिमों के पिछवाड़े में डण्डा कर रखा है, लेकिन फ़िलहाल भारत में इन्हें ये हिन्दुओं से लड़वायेंगे… क्योंकि जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है इनमें दिमाग नाम की कोई चीज़ तो होती नहीं… बस “इस्लाम खतरे में है…” सुनाई दे जाये, तो ये निकल पड़ेंगे…।

रही राष्ट्रीय मीडिया की बात, तो पुण्य प्रसून वाजपेयी को अमिताभ-सीलिंक मामले, रवीश कुमार को गुजरात मामले और रजत शर्मा को मूर्खतापूर्ण जादू-टोने वाली खबरों से फ़ुरसत मिले तब ये दिखायें, और उनके “असली मालिक” बरेली के दंगों की तरह, ऐसे किसी भी दंगे को ब्लैक आउट करने को कहते रहें… तो वह भी क्या करें…
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मंदिरों और मुर्तियों को तोड़ना धार्मिक काम मानतें हैं मुस्लमान

मजहब नही सिखाता आपस में बैर करना जिस किसी ने कहा है वह सरासर झूठ कहा हैं अगर इस्लाम कि शिक्षा को देखों तो हमें पता चलता है कि किस तरह से मजहब हमें सिखाता है आपस में बैर करना। विस्तार से जानने के लिये निचे का खबर पढे़।


हिन्दवी से लिया गया
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तुम्हारी बहन बहन दुसरों की बहन माल

सोच सकते हैं कितना घटिया मानसिकता है यैसे लोगों का कितने गिरे लोग हैं ये जो यैसा सोचते हैं कि सिर्फ उनके ही बहू-बेटीयों का इज्जत होता है दुसरों का नही कल मेंरे पास किसी मित्र का एक ई-मेल जिसमें एम.एफ.हूसैन को उसी के अन्दाज में तमाचा मारा गया था देख कर थोडा़ आच्छा लगा खुशी भी हुई अगर हूसैन का ई-मेल आईडी रहता तो उसको भी भेज देता।

आज मेरे एक मित्र ने मुझे एक ब्लाग लिंक भेजा जिसमें हूसैन माँ, बहन और बीबी का नंगा चित्र लगा हुआ था लेकिन ब्लाग ने लेख के द्वारा तर्क या कहिये कुतर्क के द्वारा सभी को यह मनवाने का कोशीश कर रहा था कि जिस किसीने यह चित्र बनाया वह मानसिक दिवालिया या पागल किस्म का आदमी है। मैने उसके पुरे ब्लाग को छान मारा कि शायद यह लेखक हिन्दुओं के भावना को आहत करने वाले हूसैन के चित्र के लिये भी कभी हूसैन को गरियाया होगा लेकिन मुझे सफलता नही मिला उसके द्वारा लिखे गये कई दुसरे लेख को पढा़ तब समझ में आया कि यह लेखक शायद कोई हूसैन कि तरह मानसिक विकृति बाला है जिसे हिन्दूओं के भावना को आहत करने में मान्सिक शुख मिलता है।







आखिर कौन हैं ये लोग जो हूसैन जैसे मानिसक दिवालिया जिहादी मानसिकता वालों के अवाज में अवाज मिला कर उसके साथ खरा नजर आता है इसके लिये हमें थोडा़ फ्लैश बैक में जाना होगा जब इस देश में अंग्रेजो का शासन था।

जब इस देश में अँग्रेज का शासन था उस समय इस देश में दो तरह के लोग थे एक जो अंग्रेज से लडा़ करते थे और दुसरा जो अंग्रेस के साथ खडा़ रहता था और इस देश के जनता को प्रडतारित करने में उसका मदद किया करता था यैसे आदमी को अंग्रेजो के द्वारा फेके गये टुकरे पर पला करते थे और अंग्रेजों को खुश करने के लिये किसी भी हद तक गिर जाया करते थे यहाँ तक अपनी बहन-बेटियों को भी तशतरी में परोस कर अंग्रेजो के सामने भोग लगाने के लिये रख दिया करते थे। उसके बदले में अंग्रेजों के फेके गये रोटी पर अपना पेट पालते थे।

इनका दुर्भाग्य अंग्रेज को इस देश से जाना पारा। यह देश आजाद आजादी के मतबालों ने जम कर खूशी मनाया लेकिन देश के दलालों के शरीर में बहने बाला दलाली का खुन ये नही बदल पायें। दलाली करने कि इनकी आदत जैसी कि तैसी बनी रही जिसका नतिजा यह हूआ कि समय समय पर यह अपने अवैध बाप को खोजने के लिये कभी चीन तो कभी पाकिस्तान कि ओर मूँह उठा कर देखने लगे कि कही से इनके अवैध बाप आयें और हम देशभक्त हिन्दुस्तानियों पर कहर बरपायें जिससे इन्हें मानसिक शुख मिले। ये यैसे दलाल हैं जिन्हें माँ भारता का नंगा चित्र बनाने बाला हूसैन को ये अपने पिता तुल्य मानतें हैं लेकिन माँ भारत के सच्चे सपूत इन्हें नाग कि तरह डसते हैं।

अन्त में

आरती भारत माता की जिसको नहीं सुहाती है
भारत भू की गौरव गाथा जीभ नहीं गा पाती है
हो सकता है बहुत बड़ा हो, पर भारत का भक्त नहीं
आदमी उसको कहने में शर्म बहुत ही आती है
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हमें मजबुर मत करो इस्लाम का बुराई करने के लिये

इधर कई दिनों से कुछ मुस्लिम ब्लागर जो हिन्दु धर्म के बारे में ज्यादा जानते नही हैं अपने अधकचरे जानकारी के द्वारा हिन्दु धर्म को कोसते नजर आते हैं जिनका सिर्फ एक ही काम है हिन्दु धर्म को निचा दिखाना वे अपने अधकचरा जानकारी के द्वारा महान हिन्दु के अच्छाई को भी बुराई बना कर दिखाने का कोशीश कर रहें हैं वैसे ब्लागर को चेतावनी देना चाहता हू हमें मजबुर मत करो इस्लाम का बुराई करने का नही तो यैसे कई ब्लागर हैं जो इस्लाम के कमी को अच्छी तरह जानते है लेकिन अपने अच्छे संस्कार के चलते अपने धर्म के साथ इस्लाम का भी इज्जत करते हैं कही यैसा ना हो कि यैसे हिन्दु ब्लागर भी वही काम करने लगे जो इस्लामिक ब्लागर कर रहें हैं। इसे इस्लामिक ब्लागर चेतावनी के रुप में लें अन्यथा .................................।
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बरेली के दंगे - साँपों को दूध, गिद्ध भोजन और सेकुलर मीडिया

बरेली में मौलाना तौकीर रज़ा खान को माया सरकार ने रिहा कर दिया है और फ़िर से दंगे शुरु हो गये हैं…
बरेली के दंगों को "हरामखोर सेकुलर मीडिया" ने पूरी तरह से ब्लैक आऊट कर दिया है… मूर्ख हिन्दू हमेशा की तरह शान्ति का राग अलाप रहे हैं, भाजपा महिला बिल पास करवाने के लिये कांग्रेस का साथ दे रही है और उत्तरप्रदेश में हिन्दुओं की परवाह करने वाला कोई नहीं है…

http://news.rediff.com/report/2010/mar/12/clashes-in-bareilly-after-accused-cleric-freed.htm

पिछली कुछ खबरों का संकलन इधर पढ़िये…

गिरफ्तार धर्मगुरू के समर्थन में उतरी उलेमा काउंसिल

दो मार्च को जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था

बरेली में बीते सप्ताह हुई सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में गिरफ्तार मुस्लिम धर्मगुरू एवं इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष तौकीर रजा खान को तुरंत रिहा किए जाने की मांग करते हुए उलेमा काउंसिल ने सड़कों पर उतरकर विरोध की धमकी दी है।

काउंसिल के राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद ताहिर मदनी ने बुधवार को आजमगढ़ में संवाददाताओं से कहा कि अगर अगले दो दिनों में बरेली पुलिस ने धर्मगुरू तौकीर रजा को रिहा नहीं किया तो हजारों की संख्या में उनके समर्थक राज्य भर में सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने राज्य सरकार को मुस्लिम विरोधी करार दिया।

मदनी ने कहा कि धर्मगुरू को सलाखों के पीछे डालने से उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस का अल्पसंख्यक विरोधी चेहरा सामने आ गया है। धर्मगुरू पर लगाए गए धार्मिक उन्माद फैलाने जैसे सारे आरोप बेबुनियाद हैं।

उन्होंने कहा कि बरेली शहर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के असली गुनहगारों को पकड़ने के बजाए सरकार और पुलिस अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बना रही है। पुलिस असली गुनहगारों को बचा रही है। उल्लेखनीय है कि बरेली पुलिस ने सोमवार को धर्मगुरू तौकीर रजा खान को गत 2 मार्च को एक धार्मिक जुलूस के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

http://www.youtube.com/watch?v=Jo5u_Wej-PY

http://www.youtube.com/watch?v=9sIafXVSwmc


बरेली: कर्फ्यू हटा फिर भी है तनाव

बरेली. उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दंगा भड़काने के आरोप में इत्तेजाद मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां की गिरफ्तारी के विरोध में दरगाह ए आला हजरत के सज्जादानशी सुब्हानी मियां के नेतृत्व में शुरु किया गया अनिश्चितकालीन धरना आज भी जारी है।


शहर में व्याप्त तनाव के मद्देनजर चारों हिंसाग्रस्त क्षेत्नों में आज कफ्यरू में शाम चार बजे से छह बजे तक केवल दो घंटे की ही ढील दी गई है। एहतियातन शहर के सभी स्कूल कालेज आज भी बंद कर दिए गए हैं और आज सिर्फ बोर्ड परीक्षाएं ही होंगी।


दूसरी ओर स्थिति का जायजा लेने के लिए प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कर्मवीर सिंह और गृह विभाग के प्रमुख सचिव फतेहबहादुर सिंह के दौरे के बाद कल देर रात सरकार ने बरेली के जिलाधिकारी आशीष कुमार गोयल और पुलिस उपमहानिरीक्षक एम.के. बशाल का तबादला कर दिया।


पीलीभीत के जिलाधिकारी अनिल गर्ग ने बरेली के जिलाधिकारी का अतिरिक्त प्रभार और श्री बशाल के स्थान पर ए. टी. एस. इलाहाबाद जोन श्री राजीव सब्बरवाल ने आज बरेली के पुलिस उप महानिरीक्षक का कामकाज संभाल लिया।


गौरतलब है कि बरेली के प्रेमनगर क्षेत्र के भीड़-भाड़ वाले कोहाडापीर इलाके से एक धार्मिक जुलूस निकाले जाने से पहले शहर के संजयनगर, कोहाडापीर, सराय चहाबाई, शाहदाना, कुतुबखाना, किला और बानखना समेत कई स्थानों पर दो संप्रदायों के बीच हिंसक झड़प हुई थी।

बरेली जाते समय रीता बहुगुणा जोशी गिरफ्तार (गिद्धों के दौरे शुरु)

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कर्फ्यूग्रस्त शहर बरेली जाते समय कांग्रेस की राज्य इकाई की अध्यक्ष डा. रीता बहुगुणा जोशी को शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस के अनुसार जोशी बरेली जाना चाहती थीं लेकिन सुरक्षा कारणों के मद्देनजर उन्हें इटौंजा में ही गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ देर बाद पुलिस ने डा. जोशी और अन्य कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया।

इस बीच डा. जोशी ने कहा कि वह घटनास्थल का दौरा करने और शहर में स्थिति का जायजा लेने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बरेली जा रही थीं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी पर रोष व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें बरेली नहीं जाने देना उनके लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात है।

उन्होंने इस घटना की जांच के लिए बरेली के सांसद प्रवीन सिंह ऎरन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच दल का गठन किया है। जांच दल के सदस्य के रूप में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनिल शास्त्री और पूर्व सांसद बेगम नूरबानो शामिल हैं। जांच दल बरेली पहुंचकर अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को देगा।

नहीं पहुंच सके शिवपाल, अहमद हसन (कुछ और गिद्ध आये)

हिंसाग्रस्त इलाकों में दौरा करने आ रहे नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव और नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद अहमद हसन को शहर पहुंचने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया। सैफई से चले शिवपाल सिंह यादव व उनके साथ आ रहे एमएलसी राकेश राना को फतेहगढ़ में गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं लखनऊ से चले अहमद हसन को मलिहाबाद में गिरफ्तार किया गया।



बरेली में फ्लैगमार्च के साथ क‌र्फ्यू में ढील

बरेली। जुलूस-ए-मुहम्मदी के मार्ग विवाद को लेकर भड़की हिंसा पर काबू के साथ अब शहर बरेली में जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। गुरुवार को प्रशासन ने नरमी तो बरती लेकिन, फ्लैगमार्च की चौकसी में ही क‌र्फ्यू में चार घंटे ढील दी गई। इस दौरान लोग खरीददारी के लिए बाजार में उमड़ पड़े। गनीमत रही कि ढील के दौरान कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं है।

गौरतलब है कि जुलूस-ए-मुहम्मदी के बाद हुए उपद्रव में शहर का बड़ा हिस्सा जल उठा था। दर्जनों घर और दुकानें फूंक दी गई। महिलाओं और बच्चों तक को भी उपद्रवियों ने नहीं बख्शा। पुलिस के जवानों समेत तमाम लोग घायल भी हुए। पुलिस को सैकड़ों राउंड फायरिंग करनी पड़ी थी। करीब चार घंटे तक तांडव चलता रहा, जिसके बाद प्रशासन को बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर और किला में क‌र्फ्यू लगा दिया। बुधवार को शहर के मुअज्जिज लोगों के साथ मीटिंग के बाद प्रशासन ने गुरुवार को प्रभावित क्षेत्र में चार और अन्य इलाकों में शाम पांच बजे तक क‌र्फ्यू में ढील का ऐलान कर दिया।

गुरुवार छह बजे जैसे ही क‌र्फ्यू हटा तो 36 घंटों से घरों में कैद लोग सड़कों पर निकल आए। जरूरत की चीजें खरीदने के लिए दुकानों पर कतारें लग गईं।

उपद्रव में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए इलाकों चाहबाई, गुद्दड़बाग, कोहाड़ापीर, बानखाना में हालात सामान्य रहे। काफी तादाद में लोग घरों से निकले। कोहाड़ापीर और कुतुबखाना पर चंद घंटों में ही रोज की तरह ही जाम की स्थिति बन गई। मेयर सुप्रिय ऐरन, राज्यसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव, पूर्व सासंद संतोष गंगवार, विधायक अता उर रहमान, तमाम व्यापारी नेता और समाजसेवी भी पहुंचे।



तौकीर रजा की रिहाई फिर टली

बरेली। आईएमसी के प्रमुख तौकीर रजा खां की जमानत अर्जी पर फैसला फिर से गुरुवार पर टल गया है। बुधवार को एडीजे प्रथम अश्रि्वनी कुमार की अदालत में मौलाना की जमानत अर्जी पर सुनवाई शुरू हुई तो दंगा पीड़ित पक्षकारों की ओर से 17 अधिवक्ताओं ने अर्जी दी कि फैसला देने से पहले उनका पक्ष भी सुन लिया जाए। यह भी कहा गया कि इसके लिए पीड़ित पक्ष को दो दिन की मोहलत चाहिए। इस पर अदालत ने एक दिन का समय देने का आदेश दिया। इसीलिए अब सुनवाई गुरुवार 11 मार्च को होगी और पीड़ित पक्ष अपना हलफनामा प्रस्तुत करेगा। बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने जमानत अर्जी पर बहस करते हुए दलीलें दी कि अभियुक्त तौकीर रजा खां इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामजद मुल्जिम नहीं हैं। यदि वह घटनास्थल पर मौजूद होते तो उन्हें भी नामजद किया गया होता। वह निर्दोष हैं और पूरे प्रकरण में उनका कोई रोल प्रमाणित नहीं है इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए।

अभियोजन पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता [फौजदारी] राजेश कुमार यादव ने जमानत अर्जी का विरोध किया। सुनवाई के दौरान 17 अधिवक्ताओं ने अदालत में जो अर्जी प्रस्तुत कीं वे पूरनलाल, सीमा मौर्य, जमुना प्रसाद मौर्य, उमाकांत मौर्य, रामकृष्ण आकाश सक्सेना, पुष्पेंदु शर्मा की ओर से थी। इन लोगों का दावा है कि इनकी करोड़ों की सम्पत्ति इस दंगे में नष्ट हो चुकी है और उनके पास जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं बचा है। पीड़ित पक्ष ने तौकीर रजा खां के खिलाफ लंबित फौजदारी के आधा दर्जन मुकदमों का विवरण देकर उनका आपराधिक इतिहास भी तलब करने का अनुरोध किया।

बरेली शहर क‌र्फ्यू और फोर्स के हवाले

बरेली। शहर के बिगड़े हालात फिलहाल सुधरते नहीं दिख रहें हैं। खासकर आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां की गिरफ्तारी के बाद तनाव और बढ़ गया है। प्रशासन किसी हाल में नया बवाल नहीं लेना चाहता। लिहाजा उसने नया सेक्योरिटी प्लान लागू कर दिया है। अब तकरीबन पूरा शहर ही क‌र्फ्यू की जद में आ चुका है। मेन रोड पर सन्नाटा पसरा है तो गलियों में सख्ती बढ़ा दी गई है। मंगलवार को पूरा शहर ही छावनी बना दिया गया।

दो मार्च को उपद्रव के बाद जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी। क‌र्फ्यू में भी ढील लगातार बढ़ रही थी और लोग सड़कों पर निकलने लगे थे। एकाएक दंगा भड़काने के आरोप में मौलाना तौकीर की गिरफ्तारी के बाद शहर पुराने ढर्रे पर लौट गया। कोतवाली, बारादरी, प्रेमनगर, किला थाना क्षेत्र ही नहीं। अब तकरीबन पूरा शहर क‌र्फ्यू के जद में आ गया है। सीबीगंज, इज्जतनगर, सुभाषनगर, कैंट और बिथरी इलाके में भी मार्केट पूरी तरह बंद हो गए। इक्का-दुक्का दुकानें ही खुलीं। सभी प्रमुख सड़कों को पीएसी और आरएएफ के हवाले कर दिया गया। किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। लोकल पुलिस के अलावा पीएसी के जवान चप्पे-चप्पे पर नजर रखे हुए हैं।

चूंकि मौलाना तौकीर के समर्थक देहात क्षेत्र में भी हैं। लिहाजा शहर के बाहरी इलाकों में भी गश्त बढ़ा दी गई है। आईटीबीपी और बीएसएफ की टुकड़ियां भी प्रशासन ने मांग ली हैं। अगर जल्द हालात सामान्य नहीं हुए तो कुछ आरएएफ और बुलाई जाएगी। डीएम आशीष कुमार गोयल, डीआईजी एमके बशाल समेत पूरा अमला शहर में गश्त करता रहा। विरोध की रणनीति बना रहे लोग गांधीगिरी पर उतर आए और छिटपुट जगह गिरफ्तारियां भी दी गर्ई। डीआईजी एमके बशाल ने बताया कि क‌र्फ्यू में सख्ती बरकरार रहेगी।
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अखिर ये किसका पैदाईस है।

मैं ब्लागर नही हू ब्लागिग नही करता हू लेकिन बिकाउ मिडीया के समाचार देखने और पढ़ने से ज्यादा अच्छा ब्लागरों के ब्लाग को पढ़ना लेकिन कुछ दिन से देख रहा हू कि ब्लागर जगत में एक भूचाल सा दिख रहा है गालि-गलैज के द्वारा अपने अपने खानदान के व्यक्तित्व का प्रर्दशन करने बाले मुर्ख ब्लागरों का संख्या कुछ दिनों में कुछ ज्यादा हो गया है जो अपने धर्म से ज्यादा दुसरों के धर्म में रुची दिखातें हैं। उसमें भी दुसरे के धर्म कि बुराईयों को खोजने में कुछ ज्यादा व्यस्त रहतें है शायद उन्हें पता नही है चाँद पर थुकने बाले के मूँह पर ही थुक गीरता है। नाम बदल कर या दुसरे धर्म के अनुसार नाम रख कर धर्म को गाली देने या धर्म के बुराई खोजने बाले इतना तो बतादे उनके शरीर में खुन किसका वह रहा है नाम का या का.............. का।

ब्लाग कोई थुकने की जगह नही है इसे स्वच्छ बनाये रखें या फिर यह बता कि आप पैदाईस किसके है।
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समान नागरिक संहिता के पक्ष में है उच्चतम न्यालय

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खुदीराम बोस की समाधि पर बना शौचालय


पटना : विधानसभा में विधायक किशोर कुमार ने शुक्रवार को आजादी की लडाई के अमर सेनानी शहीद खुदीराम बोस से जुडे ऐतिहासिक स्थलो की बदहाली का मामला उठाया और सरकार से उन स्थलो को राष्‍टीय स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग की. विधानसभा में शून्य काल कें दौरान निर्दलीय किशोर कुमार ने कहा कि फांसी के बाद शहीद खुदीराम बोस का मुजफ्‌फरपुर के बर्निंगघाट पर अंतिम संस्कार किया गया था लेकिन उस स्थल पर शौचालय बना दिया गया है. इसी तरह किंग्सफोर्ड को जिस स्थल पर बम मारा गया था उस स्थल पर मुर्गा काटने और बेचने का धंधा हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह शहीदों के प्रति घोर अपमान और अपराध है. विधायक ने राज्य सरकार से इस मामले को गंभीरता से लेने और शहीद खुदीराम बोस से जुडे ऐतिहासिक स्थलो को संरक्षित कर पर्यटक धरोहर और राज्‍कीय स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग की ताकि आने वाली पीढी इससे प्रेरणा ले.
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